इसे जनरल मॉडल भी कहा जाता है क्योंकि इसे अमेरिका के जनरल जॉर्ज गर्वनर ने दिया था। इसे व्यापक संदर्भ में समझने के लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना होगा-
कोई,
किसी घटना पर बात करता है,
प्रतिक्रिया,
स्थिति,
माध्यम,
सामग्री,
किस रूप में,
परिप्रेक्ष्य, भेजने लायक संदेश,
किस निष्कर्ष के साथ,
E व M के बीच फैक्टर- चयन, संदर्भ, उपलब्धता।
- प्रोपेगैंडा मॉडल-
इसे नॉम चॉम्स्की व एडवर्ड हेरमेन ने दिया है, इसे उन्होंने अपनी किताब ‘मैन्युफैक्चरिंग कंसेंट’ में दिया था। इसके अनुसार संचार में पाँच फ़िल्टर काम करते हैं, जो खबरों को प्रभावित करते हैं। यह पांच फिल्टर हैं-
ओनरशिप ,फंडिंग, सोर्स, क्रेडिबिलिटी, एंटी -टेररिज्म। प्राइवेट मीडिया ‘बिजनेस’ है। कॉरपोरेट मीडिया प्रोपेगैंडा कैसे चलाती है व इसका आमजन पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह प्रोपेगैंडा मॉडल बताता है।
जनमाध्यमों की सैद्धान्तिकी: अभिप्राय एवं आवश्यकता, आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जनमाध्यम सैद्धांतिकी की भूमिका, जनमत निर्माण में भूमिका, मनोशास्त्रीय, समाजशास्त्रीय और मार्क्सवादी सैद्धान्तिकी, लोकतांत्रिक भागीदारी का सिद्धांत
( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
जनमाध्यमों की सैद्धान्तिकी: अभिप्राय एवं आवश्यकता-
किसी भी संस्था के कुछ आदर्श होते हैं, जिन पर वह संस्था काम करती है। यह आदर्श, नियम-उसूल समाज में उसकी उपयोगिता तय करते हैं जिन्हें सैद्धान्तिकी कहा जाता है।
मीडिया संस्था की शुरुआत के समय कुछ आदर्श तथा नियम तय किए गए, जिनको आधार मानकर, मूल मानकर संस्था को अपना काम करना होता है इसे ही जनमाध्यमों की सैद्धांतिकी कहा गया।जनमाध्यमों की सैद्धान्तिकी यानी Basic set of rules and regulations.
जनमाध्यमों के संदर्भ में भी कुछ सिद्धांत तय किए गए हैं जो इनका आधार है तथा जनमाध्यमों से यह अपेक्षा की गई है कि अपना मूल बनाए रखेंगे।
●जनमाध्यम विकास की बात करेंगे।
●लोगों की आम जन की बात करेंगें।
●सूचना में मौलिकता होगी।
●समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की कोशिश होगी।
●खबरों के विभिन्न विषयों में संतुलन बनाए रखेंगे।
●निष्पक्ष रहेंगे। ये सिद्धांत ही जनमाध्यमों का मूल हैं, अगर इनका क्षरण हुआ तो जनमाध्यम अपना अस्तित्व और आधार खो देंगे।
इस सैद्धान्तिकी की आवश्यकता इसलिए है ताकि उसे अपने होने की वजह पता हो।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जनमाध्यम सैद्धांतिकी की भूमिका-
यदि वर्तमान समय की बात की जाए तो पत्रकारिता में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन देखने को मिलते हैं। यह परिवर्तन सकारात्मक भी हैं और नकारात्मक भी। जब तक सकारात्मक परिवर्तन है तब तो ठीक है लेकिन यदि परिवर्तन की दिशा नकारात्मक हो जाए तो उसे सुधारने की और अपनी मूल भावना को फिर से याद करने की जरूरत महसूस होती है। यह जनमाध्यमों की सैद्धान्तिकी ही वर्तमान दौर में मीडिया को टूटता खम्भा होने से बचा सकती है।
इस कारण इन सिद्धांतों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।आज के दौर में, मीडिया को अपने सिद्धांतों को दोहराने की जरूरत है क्योंकि पत्रकारिता अपने मूल से भटक गई है। उसकी राह पैशन से प्रोफेशन की ओर हो गई है। अब पत्रकारिता पैसा कमाने का जरिया हो गई है। अखबार और चैनल प्रोडक्ट हो गए हैं। संस्थान का लाभ सर्वोपरि हो गया है। उपभोक्तावाद की आड़ में विज्ञापनों की भरमार हो गई है। पेड न्यूज़ ने अपने पाँव गंभीरता से पसारने शुरू कर दिए हैं।
इन सभी कारणों से इसकी जरूरत है ताकि मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझे, नैतिकता बनाए रखे, कार्य प्रणाली में सुधार करे। मीडिया, खुद का ही असल उद्देश्य समझे और अपने सिद्धांतों को प्रभावी रूप से लागू कर पाए।
जनमत निर्माण में भूमिका-
किसी भी विषय पर समान राय/ विचार/ दृष्टिकोण ही जनमत कहलाता है। इन समान विचारों की सामूहिकता को जनसंचार माध्यम अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। किन विषयों पर जनता किस तरीके से अभिव्यक्ति दे रही है इससे जनमत का निर्माण होता है। जनमत से राजनीति और समाज दोनों ही व्यापक रूप से प्रभावित होते हैं।
जनमत निर्माण में चार अवस्थाएं होती हैं-
1) समस्या उत्पन्न होना
2) समस्या पर विचार-विमर्श
3) विकल्पी समाधान प्रस्तुत करना
4) जनमत का प्रकट होना
जनमत निर्माण के दौरान सबसे पहले हमारे सामने प्रश्न होता है, ये प्रश्न ही असल में हमारी समस्या है। इस प्रश्न पर बातचीत की जाती है, डिबेट की जाती है, परिचर्चा होती है, सामूहिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। उस सवाल के जवाब तलाशे जाते हैं। इस प्रकार एक विकल्प या एक समाधान सबके सामने आता है, यह समाधान ही जनता एवं विशेषज्ञों की राय होती है, इसे जनमाध्यम द्वारा हर व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है। यही है जनमत का प्रकट होना।
जनमत निर्माण के साधन- जनमत निर्माण विभिन्न तरीकों से किया जाता है। जनमत निर्माण के साधन हैं- समाचार पत्र-पत्रिकाएं, ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल, विभिन्न आंदोलन, सर्वे, टीवी, रेडियो, सिनेमा। विभिन्न घटनाएं भी जनमत को आवश्यक रूप से प्रभावित करती हैं, उनका केवल घटित होना ही नहीं बल्कि जिस ढ़ंग से उनकी व्याख्या की जाती है,वह भी महत्वपूर्ण है।
मनोशास्त्रीय, समाजशास्त्रीय और मार्क्सवादी सैद्धान्तिकी–
( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
मनोशास्त्रीय सैद्धान्तिकी- यह मानव-केंद्रित है। इस सिद्धांत का मानना है, कि यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस खबर को देखना चाहता है, इसके लिए माध्यम का चयन भी वह स्वयं अपने विवेक से करता है। यह सैद्धान्तिकी कहती है कि संचार, संबंध स्थापित करने की प्रक्रिया न होकर मानव विकास की प्रक्रिया है। व्यक्ति पर कोई भी माध्यम या खबर थोपी नहीं जा सकती है, उसे संचारक द्वारा बाध्य नहीं किया जा सकता है।
जरूरी कारक- ●भावनात्मक जुड़ाव ●सामाजिक जुड़ाव ●व्यक्तिगत जुड़ाव ●मानसिक जुड़ाव ●आर्थिक जुड़ाव
समाजशास्त्रीय सैद्धान्तिकी– यह समाज केंद्रित है। इसका मानना है कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक संचार के साधनों की और संचार की पहुंच हो। समाजशास्त्रीय सिद्धांत यह कहता है कि कोई भी सूचना समाज के लिए प्रसारित की जाती है और उसका समाज पर प्रभाव जाना जाता है। समाजशास्त्रीय सिद्धांत का यह भी मानना है कि जैसा समाज होता है, मीडिया भी वैसा ही काम करता है।
मार्क्सवादी सैद्धांतिकी –इसका मानना है कि संचार, संबंध स्थापित करने के लिए होना चाहिए। उसमें भले कोई भी सूचना या मनोरंजन ना हो लेकिन उससे व्यक्तियों के संबंध मजबूत होने चाहिए।
मार्क्सवादी सिद्धांत के 3 पहलू माने जाते हैं- सूचनात्मक, अन्योन क्रिया और अंतर वैयक्तिक।
सूचनात्मक पहलू यानी संचार, सूचना के आदान-प्रदान की प्रक्रिया है। अन्योन क्रिया यानी कि एक दूसरे के साथ संचार के द्वारा संबंध बनाए जाने चाहिए। अंतर वैयक्तिक यानी केवल सूचना का आदान प्रदान ही संचार नहीं होता बल्कि उसके लिए विचारों का आदान-प्रदान भी जरूरी है। मार्क्सवादी सैद्धान्तिकी समाज केंद्रित होती है। इसका यह भी मानना है कि सूचना, मनोरंजन, शिक्षा व जानकारी का आदान-प्रदान नहीं है तो चलेगा, लेकिन लोगों के बीच संबंध जरूर बनने चाहिए।
लोकतांत्रिक भागीदारी का सिद्धांत-
( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
यह सिद्धांत, नियामक सिध्दांत के अंतर्गत आता है। इसे Understanding Uniform Communication नामक किताब से लिया गया है। लोकतांत्रिक भागीदारी के सिद्धांत को जर्मन थिंकर मैकवेल ने दिया था। इसमें लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप जनता की सहभागिता सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है। इसका मानना है कि मीडिया को पूंजीवादी नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे उसकी विषय-वस्तु पर प्रभाव पड़ता है। साथ ही मीडिया को लोकतांत्रिक प्रणाली में अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए। उसे अपने नागरिकों के मुद्दों को उठाना चाहिए और उनके अधिकारों के बारे में बताना चाहिए। क्षेत्रवाद, जातिवाद, समाजवाद, साम्यवाद, समतावाद; ये सब पहले से ही मीडिया में विद्यमान है।
इसमें मानव अधिकारों को जोड़ने की जरूरत है और मीडिया को इन सभी मुद्दों की खबरें दिखानी चाहिए और समाज से विभिन्न प्रकार की कुरीतियों को हटाने का प्रयास करना चाहिए और ऐसी संस्कृति, जो समाज को उत्थान की ओर ले जाए, को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। इस सिद्धांत का यह भी मानना है कि मानव अधिकारों की बात करना बहुत जरूरी है क्योंकि उससे फिर कई मुद्दे अपने आप ही सुलझ जाएंगे।
Keval education purpose ke liye samagri ka upyog kare.anya aur kisi kaam ke liye nahi. Online classes ke dauran sahayata ke liye. Thank you
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