जिस प्रकार से किसी फिल्म के निर्माण के छायांकन में छायाकार अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और डायरेक्टर के साथ मिलकर फोटोग्राफी को मोशन में डालकर उसे जीवंत करने का प्रयास करता है, वही कार्य किसी फिल्म में ऑडियो रेकॉर्डिंग(cinematography and voice recording) का होता है।
पर वास्तव में, यह फ़िल्म का आधा काम ही होता है आधा काम तब पूरा होता है जब उसमें आवाज हो, उससे भी आगे उसमें शोर या कहें बाधा उत्पन्न करने वाले तत्व न हो। अगर ऐसा नही हुआ तो दर्शक डिस्ट्रक्ट होकर आपके द्वारा बनाये गए फ़िल्म को बीच मे ही छोड़ कर बाहर आ सकते हैं और आप घाटे में जा सकते हैं।
ऐसे में फ़िल्म के लिए ऑडियो रिकॉर्ड(cinematography and voice recording) करते समय किन बातों का ध्यान रखें, ताकि आपका ऑडियो अच्छे से रिकॉर्ड हो और आपके लिए कोई बाधा भी उत्पन्न न हो। सबसे करनी चाहिए और ऐसा संभव न होने पर एक शांत जगह का निर्माण करना चाहिए ताकि ऑडियो बिना शोर के रिकॉर्ड हो सके।
ऑडियो में शोर या बाधा उत्पन्न न हो इसके लिए आपको तीन C’s का पालन करना बहुत जरूरी है। जिसका मतलब है clear, clean एंड Consistant.
क्लियर का तात्पर्य है कि आप उस आवाज को साफ तौर पर सुन पा रहे हैं जिसे आप सुनना चाह रहे हैं। क्लीन का मतलब यह है कि आपने जिस आवाज को रिकॉर्ड किया है, क्या उसमें साफ आवाज है या कोई आवाज उसमें से आरही है जो कि नहीं आनी चाहिए थी, वहीं कंसिस्टेन्ट के मतलब है कि ऑडियो का वॉल्यूम और उसकी क्वालिटी में तारतम्यता होना चाहिए जब तक ऑडियो के visuals में मांग न हो।
महत्वपूर्ण बिंदु
- माइक बीम पोल का प्रयोग करते हुएसब्जेक्ट्स के 45 डिग्री एंगल पर होना चाहिए परंतु उसे साउंड क्वालिटी के अनुसार दाएं या बाएं, ऊपर या नीचे किया जा सकता है। यह ज्यादा अच्छा होगा कि बीम पोल को आरामदायक रूप में पकड़ा जाए।
- साउंड मिक्सर/रिकॉर्डिंग फ्रीक्वेंसी को आदर्श रूप में 48.0 KHz(किलो हर्ट्ज) फ़िल्म की शूटिंग के लिए और 44.1 KHz म्यूजिक रिकॉर्डिंग के लिए किया जाता है।
- आवाज के सेंसटिविटी को बाद में रेगुलेट कर के उसके लेवल को ऊपर नीचे किया जा सकता है।
- ऑडियो रेकॉर्डिंग में यह प्रीफर किया जाता है कि ऑडियो रिकॉर्डिंग के दौरान -12 db से -6db के बीच आवाज को मेनटेन रखना चाहिए।
- ज्यादातर हैडफ़ोन पर भरोसा न करें, यह वास्तव में यह नही दिखाता कि आवाज कैसे आरही है लेकिन यह आवाज के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने में अहम भूमिका निभाता है।
- ऑडियो रिकॉर्डिंग करने से पहले 1 मिनट पहले ही सबको शांत रहने के कहना ताकि आगे कोई दिक्कत उत्पन्न न हो।
- माइक को सब्जेक्ट से 30 से 40 CM से ज्यादा दूर नही होना चाहिए या 12 से 18 इंच के बीच होना चाहिए। पहला लेपल माइक के लिए दूसरा बीम माइक के लिए।
- बैलेंस्ड और उन बैलेंस्ड केबल का विशेष ध्यान रखना। उन बैलेंस्ड केबल 20 फ़ीट या 6 मीटर से ज्यादा नही हो तो अच्छा होगा।
- ADR(Automated dialog replacement) का प्रयोग करके आश्चर्यजनक आवाज को स्टूडियो में रिकॉर्ड किया जा सकता है। यहाँ पर एक्टर्स अपने डायलॉग को दोबारा बोलते हैं।
- फ़िल्म में ADR के प्रयोग के बाद फोले का भी प्रयोग किया जाता है। यह नाम जोसेप ली MCCREARY यानी फोले(शार्ट में) के नाम से लिया गया है जो कि ड्रमर और सिंगर है। फोले तकनीक के अंतर्गत कुत्रिम आवाज का निर्माण किया जाता है। जैसे घोड़ों के चलने की आवाज, दरवाजा खुलने की आवाज, आदि।
एक क्वालिटी ऑडियो को रिकॉर्ड करने के लिए 5 सिद्धान्तों का पालन करना बहुत जरूरी है, ये सिद्धान्त हैं…
- शोर को जहाँ तक हो सके कम करना, ऐसे अच्छे विंड sheild का प्रयोग करना ताकि आवाज सब्जेक्ट पर फोकस रह सके। यहाँ ज्यादातर लेपल माइक का प्रयोग किया जा सकता है जो कि ट्रांसमीटर और रिसीवर से जुड़ा होता है परंतु फ़िल्म के शूटिंग के दौरान बीम पोल का प्रयोग किया जाता है जो कि ऑब्जेक्ट के लगभग 45 डिग्री ऊपर होता है और फ्रेम से बाहर होता है, लेकिन अच्छे वीडियो शूट के लिए अन्य तरीकों से भी बीम पोल पा प्रयोग किया जा सकता है। इसी के साथ शूटिंग के आस पास एक्स्ट्रा ऑडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा कर लेने से शोर के असर या टेक्निक प्रॉब्लम से बचा जा सकता है और अच्छे साउंड क्वालिटी को एडिटिंग के द्वारा लगाया जा सकता है। शोर का एक रूप को व्हाइट नॉइज़ के रूप में भी जाना जाता है। फ्रिज, बाहर की ट्रैफिक, एयर कंडीशनर आदि की आवाज मानव मस्तिष्क समझ सकता है पर रिकॉर्डर नहीं ऐसे में ज्यादा शांत वातावरण echo ध्वनि में भी बदल सकता है। जिसके लिए साउंड absorbtion का होना भी जरूरी है।
- हेडफोन उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि फोटोग्राफी के दौरान व्यू फाइंडर, जिसके तहत आप किसी इमेज को देख सकते हैं कि आप क्या चित्र लेने जा रहे हैं, बिना इसके आप एक अंधे में काना राजा जैसा काम करने जा रहे हैं। ऐसे में आप को ऑडियो शूट के दौरान कान पर चिपके हैडफ़ोन को अवश्य ही साथ रखना चाहिए जो कि कान से चिपके होते हैं और बाहर की आवाज को कम करते है। जिसके चलते ऑडियो पर कंसन्ट्रेशन बेहतर ढंग से करके आप subject पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। वहीं मॉनिटर करते समय भी हैडफ़ोन आपकी के मुश्किले खत्म कर सकता है और नॉइज़ ज्यादा होने पर आप दोबारा आवाज को रिकॉर्ड कर सकते हैं(ज्यादातर अब ये काम स्टूडियो में ही होता है)।
- अपने माइक को समझिए ताकि आगे उसी हिसाब से उसका प्रयोग किया जा सके। इसके तहत 3 माइक आते हैं .. इनबिल्ट माइक+डायरेक्शनल/शॉटगन माइक, डायरेक्शनल/ शॉटगन माइक, लेपल माइक/लवेलिएर
- पोजिशनिंग
- लेवल्स ठीक होने चाहिए न तो ज्यादा कम और न तो ज्यादा। यहाँ ऑटोमेटिकली की जगह मैन्युअली साउंड को एडजस्ट करना चाहिए। इसी के साथ रिकॉर्डिंग के बीच मे आवाज के साथ छेड़छाड़ नही करना चाहिए।
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