शहीद भगत सिंह(SHAHEED BHAGAT SINGH): भारतीय युवाओं के वीरता के प्रतीक और मातृभूमि के लिए जान निछावर करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह के लिए उनका देश ही उनके लिए सब-कुछ था. वे देश के लिए जिए. भारत की स्वाधीनता और सुनहरे कल के लिए हँसते-हँसते उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. देश के लिए वे देश भक्ति, साहस व राष्ट्र समर्पण की मिसाल बने. उनका जीवन युगों-युगों तक देशवासियों को ‘राष्ट्र हित सर्वोपरि’ की प्रेरणा देता रहेगा.
शहीद भगत सिंह(SHAHEED BHAGAT SINGH) का जन्म वर्ष 1907 में सितंबर 28 को लायलपुर जिले के बंगा गाँव में हुआ जो कि वर्तमान में बटवारे के बाद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है. इनके माता का नाम विद्यावती और पिता का नाम किशन सिंह था. भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों के खिलाफ साजिश के जुर्म में फासी के एक दिन पूर्व ही, फाँसी पर भारतीय लोगों के आक्रोश से डर कर फाँसी पर लटका दिया.
शहीद भगत सिंह के साथ उस दिन लाहौर जेल में राजगुरू और सुखदेव ने भी भारत माता के स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी थी. शहीद भगत सिंह ने लिखा…….. कि……
लिख रहा हूँ मै अंजाम जिसका,
वो आगाज़ जरूर आयेगा.
मेरे लहू का हर एक कतरा
इंकलाब जरूर लाएगा.
मैं रहूँ या न रहूँ
पर ये वादा है तुमसे मेरा कि,
मेरे बाद वतन पर
मरने वालों का सैलाब आयेगा.
भगत सिंह
शहीद भगत सिंह(SHAHEED BHAGAT SINGH) के जन्म पर घर का वातावरण
भगत सिंह का जन्म सिख परिवार में हुआ था. इनके जन्म के समय इनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह भरत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे और स्वतंत्रता सेनानी थे. भगत सिंह का जन्म उस दिन हुआ था जब उनके पिता और चाचा जेल से बरी हुए थे। उनके पिता और चाचा भी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए जेल भेज दिया गया था.
ऐसे में अजीत सिंह के खिलाफ 22 केस दर्ज थे जिससे बचने के लिए उन्हें ईरान जाना पड़ा. लेकिन वहाँ से भी उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों का संपूर्ण साथ दिया. ऐसे में कहा जाए तो शुरुआत से ही शहीद भगत सिंह के अंदर देशभक्ति की भावना उनके घर के पर्यावरण में समाहित थी. ऐसे में बचपन से ही वे अंग्रेजों से घृणा करते थे.
वहीं शहीद भगत सिंह, करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से भी बहुत अधिक प्रभावित थे. और लाला लाजपत के मौत ने इन्हें सदमें में डाल दिया था.
शुरुआती शिक्षा
भगत सिंह ने अपनी 5वीं तक की पढाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह, महात्मा गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और बहुत ही बहादुरी से उन्होंने ब्रिटिश सेना को ललकारा।
भगत सिंह के पिता महात्मा गांधी के समर्थन में थे और जब गांधी ने सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों का बहिष्कार करने का आह्वान किया तब उन्होंने अपनी सरकारी जॉब छोड़ दी थी। वहीं, भगत सिंह ने 13 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया। फिर उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया।
वर्ष 1923 में, जब वे अपने कॉलेज, नेशनल कॉलेज (लाहौर) में थे, तब वे नाटक और लेखन प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे। भगत सिंह एक निबंध प्रतियोगिता भी जीती थी जिसमें उन्होंने “भारत में स्वतंत्रता संग्राम के कारण पंजाब में समस्याएं” विषय पर निबंध लिखा था।
उन्हें किताबें पढ़ने का बहुत शौक था और 21 वर्ष की छोटी उम्र में ही उन्होंने करीब पचास किताबें पढ़ डाली थीं, जिनमें राम प्रसाद बिस्मिल की किताबें और कई रूसी और यूरोपीय लेखक की किताबें भी शामिल हैं।
जलियावाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह पर डाला गहरा प्रभाव
1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह बहुत दुखी हुए थे और महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का उन्होंने खुलकर समर्थन किया था. भगत सिंह खुले आम अंग्रेजों को ललकारा करते थे, और गाँधी जी के कहे अनुसार ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे. चौरी चौरा में हुई हिंसात्मक गतिविधि के चलते गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया, जिसके बाद भगत सिंह उनके फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने गाँधी जी की अहिंसावादी बातों को छोड़ दूसरी पार्टी ज्वाइन करने की सोची.
भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज से BA कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात सुखदेव थापर, भगवती चरन और भी कुछ लोगों से हुई. आजादी की लड़ाई उस समय जोरों पर थी, देशप्रेम में भगत सिंह ने अपनी कॉलेज की पढाई छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में कूद गए. इसी दौरान उनके घर वाले उनकी शादी का विचार कर रहे थे.
भगत सिंह ने शादी से इंकार कर दिया और कहा “अगर आजादी के पहले मैं शादी करूँ, तो मेरी दुल्हन मौत होगी.” भगत सिंह कॉलेज में बहुत से नाटक में भाग लिया करते थे, वे बहुत अच्छे एक्टर थे. उनके नाटक, स्क्रिप्ट देशभक्ति से परिपूर्ण होती थी, जिसमें वे कॉलेज के नौजवानों को आजादी के लिए आगे आने को प्रोत्साहित करते थे, साथ ही अंग्रेजों को नीचा दिखाया करते थे.
शहीद भगत सिंह(SHAHEED BHAGAT SINGH) की स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी:
भगत सिंह ने यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों के बारे में कई लेख पढ़े थे, इसलिए वे उससे वर्ष 1925 बहुत प्रेरित हुए थे। उन्होंने अपने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। बाद में वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए जहां वे सुखदेव, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद जैसे कई प्रमुख क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।
उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी की पत्रिका के लिए लेखों में योगदान देना भी शुरू किया। हालांकि उनके माता-पिता चाहते थे कि उस समय उनकी शादी हो, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उसने उनसे कहा कि वह अपना जीवन पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित करना चाहता है।
विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण, वह ब्रिटिश पुलिस के लिए रुचि के व्यक्ति बन गए। इसलिए पुलिस ने उन्हें मई 1927 में गिरफ्तार कर लिया। कुछ महीनों के बाद, उन्हें जेल से 6000 रूपये की जमानत शुल्क लेकर रिहा कर दिया गया।
1927 में, जेल से जमानत मिलने के बाद, उन्होंने उर्दू और पंजाबी अखबारों के लिए लिखना शुरू किया, जो अमृतसर में प्रकाशित होते थे। वे ‘कीर्ति’ के नाम से मशहूर कीर्ति किसान पार्टी की पत्रिका और वीर अर्जुन अखबार के लिए भी लिखते थे।
भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियां –
1926 में शहीद भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य किसानों और श्रमिकों को एकजुट करके ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांति को प्रोत्साहित करना था। भगत सिंह ने संगठन के सचिव के रूप में कार्य किया। इसके बाद वर्ष 1928 में, सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य लोगों के साथ मिलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ( HSRA ) की स्थापना की।
सॉन्डर्स की हत्या –
वर्ष 1928 में, एक विरोध प्रदर्शन में, लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया था, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए थे। और बाद में चोट के कारण उन्होनें दम तोड़ दिया था।
शहीद भगत सिंह ने उनके मौत का बदला लेने के लिए जय गोपाल, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई, परंतु गलती से उन्होंने उनके सहायक जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी जिससे उसकी मृत्यु हो गई। इसके अगले दिन, क्रांतिकारियों ने इस घटना की जिम्मेदारी लेते हुए पोस्टर चिपकाए। इसके बावजूद भी भगत सिंह भूमिगत रहने और क्रांतिकारी आंदोलन में योगदान देने में कामयाब रहे।
चन्नन सिंह की हत्या –
- सॉन्डर्स को मारने के बाद, भगत सिंह का ग्रुप सड़क के पार डीएवी कॉलेज के प्रवेश द्वार से भाग निकले । लेकिन पुलिस एक हेड कांस्टेबल चानन सिंह उनके ग्रुप का पीछा करने लग गया जिसकी चंद्रशेखर आजाद ने गोली मारकर हत्या कर दी।
- फिर वे साइकिल से सुरक्षित सुरक्षित घरों में भाग गए। पुलिस ने उन्हें पकड़ने के लिए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया, शहर के सभी आने और जाने वाली सभी जगहों पर नाकाबंदी कर दी गयी।
- सीआईडी ने लाहौर छोड़ने वाले सभी युवकों पर नजर रखी। भगोड़े अगले दो दिनों तक छिपे रहे। 19 दिसंबर 1928 को, सुखदेव ने दुर्गावती देवी से मुलाकात की, जिन्हें कभी-कभी दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है, जो एचएसआरए के एक अन्य सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी हैं।,
- दुर्गावती देवी भगत सिंह की मदद करने के लिए तैयार हो गयी । उन्होंने अगली सुबह लाहौर से बठिंडा जाने वाली ट्रेन को हावड़ा ( कलकत्ता )को हावड़ा ( कलकत्ता ) के रास्ते में पकड़ने का फैसला किया।
भगत सिंह लाहौर से कैसे बच निकले
भगत सिंह और राजगुरु, दोनों लोडेड रिवॉल्वर लेकर अगले दिन सुबह सुबह अपने घर से निकल गए। अंग्रेजी पोशाक पहने (भगत सिंह ने अपने बाल काटे, अपनी दाढ़ी मुंडवा ली और कटे हुए बालों पर टोपी पहनी), और दुर्गावती देवी के सोते हुए बच्चे को लेकर, भगत सिंह और देवी एक युवा जोड़े के रूप में गुजरे, जबकि राजगुरु उनके नौकर के रूप में उनका सामान धोते हुए उनके पीछे पीछे निकले ।
स्टेशन पर, सिंह टिकट खरीदते समय अपनी पहचान छिपाने में कामयाब रहे, और तीनों कानपुर (अब कानपुर ) जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए । वहां वे लखनऊ के लिए एक ट्रेन में सवार हुए क्योंकि हावड़ा रेलवे स्टेशन पर सीआईडी आमतौर पर लाहौर से सीधी ट्रेन में यात्रियों की जांच करती थी। लखनऊ में राजगुरु अलग से बनारस के लिए रवाना हुए जबकि भगत सिंह, देवी और शिशु हावड़ा चले गए, भगत सिंह को छोड़कर सभी कुछ दिनों बाद लाहौर लौट आए।
सेंट्रल असेंबली में बॉम्बिंग केस –
- इस मामले में भगत सिंह भी शामिल थे. 8 अप्रैल 1929 को, सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में विजिटर्स गैलरी से बम फेंका। उन्होंने पर्चे भी फेंके और क्रांतिकारी नारे लगाए.
- दोनों क्रांतिकारियों ने गिरफ्तारी दी क्योंकि वे क्रांति और साम्राज्यवाद विरोधी अपने संदेश को फैलाना चाहते थे, और इसके लिए एक मंच की जरूरत थी.
- इस घटना में किसी को चोट नहीं आई और न ही उनका इरादा किसी को शारीरिक नुकसान पहुंचाना था। उनका घोषित उद्देश्य ‘बहरो को सुनाना’ था.
- हॉल में उपस्थित लोगों में मोतीलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल , मुहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय, जॉन साइमन (साइमन कमीशन के) और अन्य शामिल थे.
- इस घटना के पीछे भगत सिंह का मास्टरमाइंड था, और वह एक फ्रांसीसी अराजकतावादी ऑगस्टे वैलेंट से प्रेरित था, जिसे फ्रांस ने पेरिस में इसी तरह की घटना के लिए मार डाला था.
- भगत सिंह और दत्त दोनों ने गिरफ्तारी दी, भले ही दोनों बम अकेले सिंह ने फेंके थे. मुकदमा मई 1929 में शुरू हुआ. वकील आसफ अली ने दत्त का प्रतिनिधित्व किया, जबकि सिंह ने मुकदमे के दौरान अपना बचाव किया. इसके बाद हुए मुकदमे में, सिंह और दत्त दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
भगत सिंह की भूख हड़ताल –
- सॉन्डर्स और चानन सिंह की हत्या के लिए भगत सिंह एवं उनके साथियो को गिरफ्तार कर लिया गया था. भगत सिंह के ग्रुप के साथी , शादी लाल और दूसरे शोभा सिंह ने भगत सिंह एवं उनके साथियो के खिलाफ बयान दे दिये जो भगत सिंह के पूरे ग्रुप को गिरफ्तार करवाने के लिए काफी थे.
- असेंबली बम मामले में उनकी उम्रकैद की सजा को तब तक के लिए टाल दिया गया जब तक कि सांडर्स मामले का फैसला नहीं हो गया. उन्हें दिल्ली जेल से सेंट्रल जेल मियांवाली भेजा गया था. वहां उन्होंने यूरोपीय और भारतीय कैदियों के बीच भेदभाव देखा. उन्होंने ने महसूस किया की उनका खाने की गुणवत्ता बहुत ही घटिया है जिसे देख कर उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर भूख हड़ताल करने का फैसला कर लिया.
- इनकी ये हड़ताल इतनी बड़ी और भयावह हो गयी थी की ब्रिटिश सरकार ने कैदियों के संकल्प की परीक्षा लेने के लिए जेल की कोठरियों में अलग-अलग खाने की सामग्री रखकर हड़ताल को तोड़ने का प्रयास किया था.अंग्रेजों ने पानी के घड़े दूध से भर दिए थे ताकि या तो कैदी प्यासे रह जाएं या अपनी हड़ताल तोड़ दें; पर कोई भी कैदी हड़ताल से डगमगाया नहीं और गतिरोध जारी रहा. इसके अलावा अधिकारियों ने तब कैदियों को जबरदस्ती खिलाने का प्रयास किया लेकिन इसका विरोध किया गया.
- भगत सिंह के 113 दिन की भूख हड़ताल करने के बाद भी उनके शरीर का वजन 133 पाउंड (60 किग्रा) से मात्र 14 पाउंड (6.4 किग्रा) ही कम हुआ था.अब तक उसी जेल में बंद एक अन्य भूख हड़ताली जतिन्द्र नाथ दास की हालत काफी खराब हो गई और 13 सितंबर 1929 को 63 दिनों की भूख हड़ताल के बाद दास की मृत्यु हो गई. जिसके बाद देश के लगभग सभी राष्ट्रवादी नेताओं ने दास की मृत्यु पर श्रद्धांजलि दी. मोहम्मद आलम और गोपी चंद भार्गव विरोध में पंजाब विधान परिषद से इस्तीफा दे दिया, और नेहरू ने लाहौर कैदियों के “अमानवीय व्यवहार” के खिलाफ केंद्रीय विधानसभा में एक सफल स्थगन प्रस्ताव पेश किया.
- भगत सिंह ने अंततः कांग्रेस पार्टी के एक प्रस्ताव पर ध्यान दिया, और उनके पिता के अनुरोध पर, 116 दिनों के बाद 5 अक्टूबर 1929 को अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी. इस अवधि के दौरान, आम भारतीयों के बीच सिंह की लोकप्रियता पंजाब के बाहर भी फैल गई. उनके लेखन जैसे कि उनकी अपनी लिखित डायरी, भगत सिंह की जेल डायरी (अब एक पुस्तक में परिवर्तित), एक पुस्तक- कैनेडियन सोसाइटी एंड कल्चर, और उनके कुछ हस्तलिखित लेख / दस्तावेज अभी भी संग्रह विभाग के तहत संरक्षित हैं.
भगत सिंह की मृत्यु ( Bhagat Singh Execution )
- भगत सिंह को राजगुरु, सुखदेव और अन्य के साथ सॉन्डर्स हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया था और उन पर आरोप लगाया गया था।
- उनके ऊपर केस जुलाई 1929 से शुरू हुआ।
- कहने की जरूरत नहीं है कि मुकदमा एकतरफा था और सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ मौत की सजा सुनाई गई थी।
- मुकदमे और उसके बाद की सजा की कई तिमाहियों से व्यापक निंदा हुई।
- कई राष्ट्रीय नेताओं ने कम सजा का अनुरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
- तीनों को 24 मार्च 1931 को फांसी देने का आदेश दिया गया था लेकिन सजा एक दिन पहले ही 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में दी गई थी। फांसी के बाद उनके शरीर का गुप्त रूप से गंडा सिंह वाला गांव के बाहर अंतिम संस्कार किया गया था, और उनकी राख को सतलुज नदी में फेंक दिया गया था।
- जिस स्थान पर उन्हें फांसी दी गई थी और उनका अंतिम संस्कार किया गया था, वह भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान का हिस्सा बन गया है।
- इस निष्पादन ने भारतीय लोगों, विशेषकर युवाओं की कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, और कई स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए।
- 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के सम्मान में ‘शहीद दिवस’ या ‘शहीद दिवस’ या ‘सर्वोदय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
शहीद दिवस कब मनाया जाता है ?
23 मार्च को भारत में शहीद दिवस या शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन भारत के तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु की फांसी की याद में मनाया जाता है. सोये हुए ब्रिटिश शासकों को जगाने के लिए कुछ शोर करने की विचारधारा में विश्वास रखने वाले तीन युवा स्वतंत्रता सेनानियों को 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में उपनिवेशवादियों ने फांसी पर लटका दिया था.
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