जन माध्यमों का स्वरूप और प्रकार, जन माध्यमों की कार्यशैली, उद्देश्य व अपेक्षाएँ, आधुनिक जनसंचार माध्यम के अध्ययन की विधियां तथा माध्यमों की प्रस्तुति की समीक्षा
( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
जनसंचार माध्यम-
किसी संदेश/ सूचना को जब माध्यम का प्रयोग करके बड़ी संख्या में लक्षित समूह पहुंचाया जाता है तो वह माध्यम जनसंचार माध्यम कहलाता है। या ऐसा माध्यम, जिसके द्वारा किसी संदेश को एक बड़ी संख्या तक पहुंचाया जाता है तो उसे जनसंचार माध्यम कहते हैं। उदाहरण- रेडियो, टीवी, लोकनृत्य, सोशल मीडिया, लोकगीत, नाटक आदि।
जन माध्यमों का स्वरूप और प्रकार– जनमाध्यम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- पारंपरिक जनसंचार माध्यम और आधुनिक जनसंचार माध्यम।
पारम्परिक जनसंचार माध्यम में लोकगीत, लोकनृत्य, लोककथाएं, लोकगाथा और लोकनाटक शामिल हैं।वही आधुनिक जनसंचार माध्यम को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है- मुद्रित माध्यम, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और न्यू मीडिया। मुद्रित माध्यमों में सूचना छपे हुए रूप में होती है। उदाहरण- समाचार पत्र-पत्रिकाएं और पेम्पलेट आदि। इलेक्ट्रॉनिक जनसंचार माध्यम में लक्षित वर्ग तक सूचना सिग्नल अथवा तार वाले माध्यम से पहुंचती है। उदाहरण- रेडियो और टेलीविजन।न्यू मीडिया यानी संचार का नया रूप, इसमें सूचना वेब सर्फिंग तथा संचार की अति उन्नत तकनीक के जरिए अपने लक्ष्य तक पहुंचती है। इसमें इंटरनेट, ईमेल, टेलीफोन को शामिल किया जाता है।
जनमाध्यमों की कार्यशैली, उद्देश्य व अपेक्षाएं-
जनमाध्यमों की कार्यशैली-
●जनमाध्यमों की पहुँच का दायरा विस्तृत होता है इसलिए जनमाध्यम को ऐसी सूचना प्रसारित करनी चाहिए जो एक बड़े स्तर तक लोगों को प्रभावित करें और उनके हित में हो।
●इसके लिए विषयों का चुनाव सामाजिक स्तर पर होना चाहिए यानी कि राजनीति से ज्यादा समाज से जुड़े मुद्दों को तरजीह दी जानी चाहिए।
●जनमाध्यम को अपने तीन प्रमुख काम मनोरंजन, सूचना और शिक्षा से हमेशा जुड़े रहना चाहिए।
●जन माध्यमों की कार्यशैली का सबसे विशेष अंग, इसका समसामयिक मुद्दों से जुड़ाव है। समाज में जो भी घटनाएं घट रही हैं, उन्हें सीधे तौर पर लोगों के बीच रखना चाहिए ताकि समाज में यदि गलत घटनाएं हो रही है तो समाज सतर्क हो जाए और अगर अच्छी घटनाएं घट रही है तो समाज इन्हें अपनाए।
जनमाध्यमों का उद्देश्य ( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
●सूचित करना
●शिक्षित करना
●जागरूक करना
●स्वस्थ मनोरंजन करना
●जनमत निर्माण करना
●लोकतंत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना
●समाज को उचित दिशा देकर संगठित करना
●लोकतंत्र की हर संस्था की निगरानी करना यानी वॉच डॉग की भूमिका में रहना
●लोगों को उनके अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्य भी बताना।
●समाज को सकारात्मकता की ओर ले जाना
●किसी भी घटना को आम लोगों के सामने निष्पक्ष भाव से रखना
●देश की समानता और बंधुत्व का रक्षक
जन माध्यमों से अपेक्षाएं- जनमाध्यमों से अपेक्षाएं हैं कि वे –
●हाशिये के लोगों की खबरें मुख्यधारा की मीडिया में लाएं।
●सच को जनता तक पहुंचाए
●जनप्रतिनिधियों से सवाल करे
●खबरों में प्रासंगिकता रखे
●हर महत्वपूर्ण बात की जानकारी दे,पार्टी पॉलिटिक्स से दूर रहे।
●समाज को भड़काने के बजाय उन्हें संगठित करने के लिए काम करें
●समाज को परिवर्तित करने वाले जन आंदोलनों में भागीदार बने
आधुनिक जनसंचार माध्यम: अध्ययन की आवश्यकता-
●जनसंचार की सामाजिक उपयोगिता जानने के लिए
●समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए
●नई तकनीक के बारे में जानने के लिए
●उस नई तकनीक का लक्षित वर्ग पर प्रभाव समझने के लिए
●विषय वस्तु को तैयार करने का तरीका और उसके बदलते स्वरूप पर बात करने के लिए
●पाठक/दर्शक का खबर को देखने का नजरिया, जानने के लिए
●जनसंचार माध्यमों में प्रत्येक स्तर पर हो रहे बदलाव का पता लगाने के लिए
●पत्रकारिता की नैतिकता व उसके मूलभूत सिद्धांतों को जानने के लिए
●जनसंचार में वैश्वीकरण के कारण आए प्रभाव को जानने के लिए
●विश्व में, विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर सूचना के प्रभाव के महत्व को अधिक स्पष्ट करने के लिए
जनमाध्यमों की प्रस्तुति की समीक्षा- जनमाध्यमों की प्रस्तुति की समीक्षा यानी कि जनमाध्यम में जो भी सामग्री आ रही है उसे हम किन आधारों पर वर्गीकृत कर सकते हैं ताकि उसे समझा जा सके।
कंटेंट के आधार पर- खबर को लिखने का नजरिया, संतुलन, पक्ष-विपक्ष
भाषा के आधार पर- व्याकरण, शुद्ध/परिष्कृत, मुहावरेदार, सरल/कठिन, सहज
तकनीक के आधार पर– कागज, पेज, कलर कॉन्बिनेशन
विज्ञापन के आधार पर-सरकारी, गैर सरकारी, 60: 40 का संतुलन
लक्षित वर्ग के आधार पर,क्वालिटी के आधार पर- पेज, लेआउट, स्पेस| इसके साथ ही नैतिकता के स्तर पर, शीर्षक के स्तर पर, तथ्यों- बहस का स्वरूप, मुद्दे, विशेषज्ञता, अतिथि संख्या प्रस्तुतकर्ता के बोलने का तरीका, शब्दों का चयन आदि, प्रत्येक आधार पर समीक्षा की जा सकती है।
संचार के प्रमुख मॉडल–
( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
मॉडल को तीन श्रेणियों में बांटा गया है, इसके आधार पर कई मॉडल्स की व्याख्या की गई है।
तीन श्रेणियाँ-
लीनियर श्रेणी मॉडल, सर्कुलर मॉडल, ट्रांजैक्शनल मॉडल।
लीनियर श्रेणी मॉडल- वह मॉडल जिसमें एक दिशा में संचार होता है, वक्ता संदेश का संप्रेषण करता है जिसे प्रापक द्वारा प्राप्त किया जाता है। संप्रेषक व संदेश की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, प्रापक का योगदान कम होता है। प्रतिपुष्टि नहीं होती है।
सर्कुलर श्रेणी मॉडल- संचार की प्रक्रिया एक वृत्त के रूप में होती है। इसमें परस्पर खबरों का आदान-प्रदान होता है और प्रतिपुष्टि भी होती है।
ट्रांजैक्शनल श्रेणी मॉडल- जब संचार की पूरी प्रक्रिया के दौरान किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न हो जाए तो उसे इस मॉडल के अंतर्गत रखते हैं।
लीनियर श्रेणी मॉडल-
- अरस्तु का मॉडल-
यह संचार का पहला मॉडल है। यह तर्क और विश्वसनीयता की बात करता है। इसमें संचारक और प्रापक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। फीडबैक नहीं होता है। अवसर पर ज्यादा बल दिया जाता है। अरस्तु का मॉडल, श्रोता पर प्रभाव उत्पन्न करना बताता है। इसके अनुसार संदेश तीन प्रकार से सबसे ज्यादा काम करता है। पहला, पैथोज (दुख) संवेदना यानी वक्ता अपने संदेश में दुख (संवेदना) लाए। दूसरा, इथोज यानी विश्वसनीयता, संचारक ,प्रापक के लिए विश्वसनीय हो। तीसरा, लोगोज यानी संदेश में तार्किकता हो।
- हेराल्ड- लासवेल मॉडल-
यह मॉडल, माध्यम की महत्वपूर्ण भूमिका पर बात करता है। माध्यम में रुकावट आ सकती है। इसमें फीडबैक नहीं होता है। यह 5W1h पर आधारित है।
- गणितीय मॉडल-
इसे मदर ऑफ कम्युनिकेशन मॉडल या टेलीफोनिक मॉडल भी कहा जाता है। इसका सबसे ज्यादा प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुआ था। यह तकनीकी ज्ञान पर आधारित है। इसमें तरंगों के माध्यम से संचार किया जाता है। इस मॉडल में भाषाई त्रुटि या तकनीकी समस्या आ सकती है। यह मॉडल, मनुष्य को मशीन मानता है, इसमें मानवता का भाव नहीं है। फीडबैक प्राप्त नहीं होता है।
- बर्लो मॉडल-
इसे SMCR मॉडल भी कहा जाता है।
प्रेषक- वाचन कला में निपुण, ज्ञान का भंडार, प्रभावशाली लेखन, सांस्कृतिक भिन्नता का ज्ञान, सामाजिक व्यवस्था की समझ।
संदेश- मजबूत विषय-वस्तु, संदर्भित, तार्किक, कोडिंग सही तरीके से हो, व्यवस्थित हो।
माध्यम- प्रासंगिक हो, लक्षित समूह तक पहुंच हो।
प्रापक- अच्छा श्रोता हो, मैसेज को डिकोड कर सके, सांस्कृतिक और सामाजिक ज्ञान हो, भाषाई ज्ञान भी जरूरी।
सर्कुलर श्रेणी मॉडल-
- ऑसगुड-श्राम मॉडल-
यह अंतर वैयक्तिक संचार मॉडल है। इसमें एक ही व्यक्ति प्रेषक और व्यापक दोनों की भूमिका में होता है।
- थ्योडोर- ABX मॉडल-
इसे न्यूकॉम्ब मॉडल ऑफ कम्युनिकेशन भी कहते हैं। यह एक त्रिकोणीय मॉडल है। यह सामाजिक भूमिका पर बल देता है। इसका मूल उद्देश्य यही है कि जब तक ABX तीनों एक दूसरे को नहीं समझेंगे, संचार पूरा नहीं होगा।
- मैक्ली मॉडल-
यह आज के सोशल मीडिया पर लागू होने वाला मॉडल है। इसमें संचारक, संदेश, प्रापक के बीच किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं होती है।
ट्रांजैक्शनल श्रेणी मॉडल-
- फ्रेंक डांस मॉडल
इसे हेलीकल ने दिया था, इसलिए इसे ‘हेलीकल मॉडल ऑफ कम्युनिकेशन’ भी कहा जाता है। इसके अनुसार संचार की प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होती है। यह मॉडल अतीत को वर्तमान से जोड़ता है। यह तीन तत्वों पर बल देता है- समय, संबंध और संचार। यह सिद्धांत हेलिक्स पर आधारित है जिसमें संचार की प्रक्रिया धीमे-धीमे समय के साथ और बड़ी होती जाती है।
- जॉर्ज गर्वनर मॉडल-
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