WRITTEN BY VISHEK GOUR
हज़रत जौन एलिया
कल ज़नाब जौन(JOHN ELIA) जी की पुण्यतिथि थीं और आज आलम यह है कि जिंदगी मौत मांग रही है. दरख़्त पर कहीं बैठकर. मैं जब जौन के पहलू में आया तो जानम से रुसवाई हुई. गमें शिकायतों का आलम रहा. खैर जाने दो यह दुनिया जहान की बातें है. मैं तो तबाह हो कर आया हूँ. म्यान में रक्खी किसी तलवार की तरह मुझें छोड़ दो. किसी किस्से में मुझें घटना की तरह मोड़ दो…रक्खो कुछ ख़्याल मेरी तबियत का…मुझें खराब तबियत में कहीं बेतरतीब छोड़ दो…यह तो महज़ कुछ बातें है जौन का दर्द सर्दी में सर दर्द है.
जौन एलिया(JOHN ELIA) का जन्म उत्तर प्रदेश के अमरोहा में एक उच्च स्तर के परिवार में हुआ. जब ब्रिटिश भारत का विभाजन हुआ और जौन को परिवार समेत पाकिस्तान जाना पड़ा लेकिन जौन ने हमेशा ही हिंदुस्तानी मिट्टी और अमरोहा यादों को अपने ज़हन में जिंदा रक्खा. और इसका ज़िक्र वो अक्सर मुशायरों में करते रहते थे.
जौन जो भी कहते थे वो शेर बन जाता था उन्होंने अपनी बदहाल हालात बयां करते हुए एक शेर पढ़ा कि “एक ही तो हवस रही है हमें, अपनी हालत तबाह की जाए” इस एक शेर में जौन के जिंदगी का वो फ़साना बयां हो जाता है. जिसके लिए लिक्खे शेर जौन जब मुशायरों में पढ़ते थे तो वे बीच मुशायरे से उठकर चले जाते थे. कभी अपना माथा पीट लेते थे तो कभी सिगरेट की लौ में खुद को धुएं में गुम हुआ ढूंढा करते थे. और नज़र कुछ नहीं आता था. दिन पर दिन जौन की हालत और बेकार होती चली गई लेकिन जौन को मुशायरे में ऐसे करने पर उन्हें खूब दाद मिलता था, खूब वाहवाही होती थी लेकिन किसे पता था. जौन तबाह हो रहे है और उन्हें इसका मलाल भी नहीं है.
जनाब जौन को एक लड़की बेहद चाहती थीं. जब जौन को इस बात का पता चला तो उन्हें कोई हैरत नहीं हुई. पर वह उस लड़की को नहीं चाहते थे लेकिन उस लड़की को यह जानकर तकलीफ़ न हो इसलिए जौन ने उस लड़की से झूठा प्रेम का नाटक किया. हालांकि आलम यह हुआ कि कुछ समय बाद उस लड़की को टीबी की बीमारी हो गई और वह खून थूकती थीं. और फिर एकदिन उसने दम तोड़ दिया.
इसी घटना के ऊपर जौन ने लिक्खा है कि “मेरे कमरे का क्या बयां करू, यहाँ खून थूका गया है शरारत में” हालांकि इस घटना के बाद जौन बेहद टूट गए और एक लम्बा अरसा एकांत में एक कमरे में बिताया. खूब शराब पी और इसका परिणाम यह हुआ कि जनाब जौन को भी टीबी हो गया. जौन के एक बेहद करीबी दोस्त “सलीम ज़ाफ़री” ने उन्हें इस हालत से उबारा और फिर से मुशायरों में लाना शुरू किया. जौन की हालत ठीक हुई और जब वह लगातार मुशायरों में शिरकत करने लगे तो उन्होंने कहा कि “इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैंने”
जौन अपने दोस्त सलीम ज़ाफ़री को बहुत मानते थे और मुशायरों में भी आहे गुआहे उनका ज़िक्र कर ही दिया करते थे कि ” मैं तो कुछ भी नहीं हूँ, मैं तो तबाह हो कर आया हूँ, सलीम ज़ाफ़री बुला लेते है तो आ जाता हूँ” एक बार जौन के वालिद ने जौन को अपनी पांडुलिपि को प्रकाशित करवाने के लिए कहा और जौन ने हामी भर दी लेकिन कभी वह उस पांडुलिपि को प्रकाशित नहीं करवा पाए. सिलसिला यह चला कि जौन की खुद की रचनाएं भी जौन के मरने के बाद उनके दोस्त ने प्रकाशित करवाई.
“जौन यू तो सुपुर्द ए ख़ाक हो गए लेकिन जिंदा रह गए लोगों के ज़हन में यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ”. मैं उन लोगों में से एक हूँ जिन्हें जौन से मिलना पसंद है उन्हें पढ़ना और उनके जीवन के किस्सो को लेकर चर्चा करना पसंद है. मैं जब कॉलेज में आया तो आकाश भईया के माध्यम से सबसे पहले जौन से रूबरू हुआ. हुआ कुछ यूं था कि कॉलेज में ओरिएंटेशन प्रोग्राम हो रहा था और आकाश भईया माइक के साथ स्टेज की शोभा बढ़ा रहे थे. और एकदम से उन्होंने जौन की लिक्खी कुछ पंक्तियां पढ़ी. वो कुछ इस तरह थीं कि ” तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे, मेरे ख़्वाबों में तन्हाई के सिवाय कुछ भी नहीं, मेरे कमरे को सजाने की तमाम है तुम्हें मेरे कमरे में क़िताबों के सिवाय कुछ भी नहीं” मैं पहली दफ़ा शायरी से रूबरू हो रहा था. और जौन एकदम ज़हन में समा गए. और ऐसे समा गए कि जौन की शाइरी से लेकर गज़लों से परत दर परत गुज़र गया.
जौन एलिया जी की कल पुण्यतिथि थीं आज देर सबेर उन्हें सलाम और नमन. जौन जी के लिए मैं बस इतना ही कहूंगा कि “इक मिसरे से कई गज़ल बुनी जाती होंगी, जौन’ की ख़ामोशी भी बड़ी गौर से सुनी जाती होंगी”
और आकाश भईया का बहुत बहुत शुक्रिया जिनके माध्यम से मैं पहली बार जौन से रूबरू हुआ.
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