वर्तमान समय में विज्ञापन बाजार की दुनिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। आज बाजार में अधिक से अधिक अपनी लोकप्रियता बढ़ाने, अपनी साख बनाने, अपने उत्पाद को अन्य उत्पादों की तुलना में बेहतर साबित करने तथा अधिक से अधिक समय तक मार्केट में बने रहने के लिए विज्ञापन का प्रयोग एक सशक्त हथियार के रूप में होता है। वास्तव में विज्ञापन ही वह माध्यम है जिसके द्वारा पाठक अथवा दर्शक के मन को प्रभावित करते हुए उसके दिल में अपने उत्पाद के प्रति सकारात्मक भाव उत्पन्न करने के सभी कंपनियों द्वारा हर मुमकिन कोशिश की जाती है। विज्ञापनों से हमारे समाज और संस्कृति को ही लक्षित किया जाता है।चुँकि विज्ञापन का समाज व संस्कृत पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। संचार के सभी माध्यमों में वह चाहे प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक , विज्ञापन एक अभिन्न अंग बन चुका है।
विज्ञापनों ने समाज व संस्कृति को विभिन्न तरह से प्रभावित किया है। इसने, समाज और संस्कृति पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित किया है।
नकारात्मक प्रभाव
- उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा दिया है:- विज्ञापन ने उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा दिया है। उपभोक्तावादी संस्कृति एक सिद्धांत पर काम करता है, कि बाजार में सभी वस्तुएं उपभोग करने योग्य है बस उन्हें सही तरीके से एक जरूरी वस्तु के रूप में बाजार में स्थापित करने की जरूरत है। उसको खरीदने और बेचने वाले लोग तो मिल ही जाएंगे। विज्ञापन इसी सिद्धांत का अनुसरण करते हुए बाजार में किसी भी वस्तु को प्रभावी रूप से पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं के समक्ष वस्तु की जरूरत को बनाने के प्रयासरत रहते हैं। उन्हें यह अहसास दिलाते हैं कि उस वस्तु के बिना उनका जीवन अधूरा है। विज्ञापन मानव के मन मस्तिष्क को बहुत अधिक प्रभावित करता है। विज्ञापन लोगों को लालच, भय और आवश्यकता बताकर वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित करता है। जिससे कई बार लोग बे काम की वस्तु केवल इसलिए खरीद लेते हैं ताकि उनका समाज में प्रभाव अधिक पढ़ सके।
- पश्चिमी सभ्यता का प्रचार:- विज्ञापन से, जो हमारे समाज और संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है उसमें से एक है पश्चिमी सभ्यता का प्रचार होना। इसका प्रयोग वस्तुओं और सेवाओं को बेचने के लिए, जैसे, अधिक कपड़े की बिक्री के लिए स्पाइडर मैन और सुपरमैन के चित्रों के कपड़े का प्रयोग। ठीक इसी तरह मैगी के विज्ञापन में जल्दी भोजन तैयार करने के लिए 5 मिनट में मैगी तैयार करें।
- सेक्स और हिंसक व्यवहार को बढ़ावा देता है:- विज्ञापन सामाज में सेक्स और हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। कई वस्तुओं के विज्ञापन में यह दिखाया जाता है कि, एक व्यक्ति किसी वस्तु का उपयोग कर तीन-चार व्यक्तियों को मार रहा है या किसी वस्तु का उपयोग कर उस ब्यक्ति से महिलाएं आकर्षित होती है। ठीक इसके विपरीत महिलाएं यदि किसी प्रोडक्ट का प्रयोग करते विज्ञापन में अभिनय कर रही हैं तो पुरुष अधिक आकर्षित होने लगते हैं। इस तरह के विज्ञापनों का उद्देश्य केवल वस्तु की बिक्री को बढ़ाना होता है। उदाहरण:- डॉलर के विज्ञापन में दिखाया जाता है कि डॉलर इस्तेमाल करने वाला अकेले चार लोगों को मार रहा है, ऊंचाई से कूद रहा है और लड़कियां उससे इम्प्रेस हो रही हैं। यह विज्ञापन बच्चों के मन में गलत धारणा बना सकता है या बनाता है, की महिलाएं ऐसी प्रवृत्तियों से खुश होती हैं।
- छोटे उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव:- बाजार में लगभग सभी उत्पादों के विज्ञापन होते हैं। एक ही वस्तु को अलग-अलग कंपनियां निर्माण करती हैं। जिसके कारण सभी उत्पादक अपने वस्तु को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए विज्ञापन का प्रयोग करते हैं। जिस उत्पादक का विज्ञापन उपभोक्ता को अधिक संतुष्ट करता है या जिसका प्रचार बहुत अधिक हुआ होता है तो ऐसे में यह ज्यादा संभव है कि उपभोक्ता वही वस्तु को खरीदता है। परंतु बाजार में मौजूद छोटे उद्योग अपने उत्पाद का विज्ञापन नहीं कर पाते। जिसका कारण है विज्ञापन पर अधिक लागत खर्च, ऐसे में वह अपनी उपस्थिति को बेच नहीं पाते या उस मात्रा में नहीं भेज पाते जिस मात्रा में विज्ञापन करने वाला उत्पादक अपने माल को बेच रहा होता है। विज्ञापन ने लोगों के मस्तिष्क में एक धारणा बनाई है जिसका विज्ञापन अधिक हो वह ‘ब्रांडेड’ होता है और जिस का विज्ञापन नहीं होता है वह ‘लोकल और खराब’ होता है। लोगों की इसी धारणा की वजह से छोटे उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुएं उपभोक्ता ज्यादातर नहीं खरीदते हैं।
- विश्व बाजार का सिद्धांत:- आज विज्ञापन हर क्षेत्र में उपलब्ध है। विज्ञापन के कारण विश्व बाजार का सिद्धांत सामने उभरकर आया है। वर्तमान समय में विज्ञापन का महत्व दिन प्रतिदिन और बढ़ता जा रहा है। विज्ञापन का पूरा कारोबार “जो दिखता है वही बिकता है” की तर्ज पर चल रहा है। आज के समय में तो ऐसा हो गया है कि विज्ञापन के माध्यम से मांग पैदा की जा रही है।
सकारात्मक प्रभाव
- समाज में जागरूकता लाना:- विज्ञापनों में कुछ विज्ञापन ऐसे भी होते हैं जो समाज में जागरूकता को बढ़ावा देते हैं। यह विज्ञापन पूरी तरह से अपने दायित्वों पर खरा उतरते हुए समाज को सूचना के माध्यम से जागरूक करने का कार्य करते हैं। वह चाहे टैक्स संबंधी सूचनाओं का मामला हो, ट्रैफिक नियमों के पालन करने की बात हो, तो ऐसे समय में यह विज्ञापन अपनी जिम्मेदारियों पर खरा उतरते नजर आते हैं। धूम्रपान, नशा, परिवार कल्याण योजना तथा जनसंख्या नियंत्रण को लेकर तैयार किए गए विज्ञापनों ने भी समाज को सही राह दिखाने का अच्छा प्रयास किया है और समाज में इसके प्रति जागरूकता फैलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- सामाजिक कुप्रथा खत्म करने का कार्य:- हमारे देश की पुरानी समस्याओं में से यह एक है। जात पात और कुप्रथाओ के अंधविश्वास ने बरसों से हमारे समाज में अपनी जगह बना रखी है। इस क्षेत्र में भी इस तरह के विज्ञापनों ने अपनी सकारात्मक छाप छोड़ने में सफलता अर्जित की है। उदाहरण:-(१) स्वच्छ भारत अभियान के विज्ञापन द्वारा दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों को यह सूचित किया गया कि, “बंद दरवाजा तो बीमारी बंद” ( शौचालय का घर में निर्माण गलत नहीं है एक सही कदम है)। (२) अक्षय कुमार द्वारा किया गया “सेनेटरी पैड” का विज्ञापन जिसमें बताया गया है कि मासिक धर्म में कपड़े के प्रयोग की बजाए ₹20 का “सेनेटरी पैड” का उपयोग करने से महिलाओं को कई बीमारियों से बचाया जा सकता है। वैसे आप अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन देखकर इस तथ्य को और इसके पीछे के सकारात्मक सोच को समझ सकते हैं।
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