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History of journalism in India….आज भारत में पत्रकारिता को शुरू हुए दो शताब्दियों से भी ज्यादा का समय हो रहा है। पर आपको क्या पता है कि आखिर किसने भारत मे पत्रकारिता का सुभारम्भ किया? पत्रकारिता शब्द से उस समय के औपनिवेशिक शाशक क्यों डरते थे?

पत्रकारिता के आ जाने पर उसपर प्रतिबन्ध किस प्रकार से लगाया गया और कैसे काले पत्रकारिता के गला घोटु कानून लाकर उसे पाबंदी के अंदर रखने का प्रयास किया गया? इन प्रश्नों को उठाने का कोई मोटा कारण तो नहीं है?

ऐसा कहेंगे तो गलत माना जाएगा क्योंकि किसी का इतिहास किसी के नींव के तरफ इशारा करती है, और बताती है कि वह नीव कितने पड़ावों व मसालों से बनकर खड़ी हुई है। और आज उसका जो भवन है वो किस प्रकार और कितना मजबूत है? इन सब प्रश्नों को जानना भी जरूरी है।

हमने जो ये 200 वर्षों से अधिक वर्षों का इतिहास देखा है उसमें कई परिवर्तन भी आये हैं, और इन परिवर्तनों का आना स्वाभाविक भी था। पहले जब पत्रकारिता का शुरुआती दौर था और हम पराधीनता के दौर से गुजर रहे थे तब भारतीयों द्वारा पत्रकारिता का प्रयोग आज़ादी के संघर्ष के लिए किया गया था। उस समय पत्रकारिता ज्यादातर एक निश्चित सीमा तक कम वित्त के कारण सीमित रहती थी, जिसको मुद्रित और प्रकाशित करने के लिए कई पत्रकारों ने अपने घर तक को गिरवी रख दिये थे।

यह संघर्ष गाथा कही जाए तो हम केवल लिखते रहेंगे पर वह कभी खत्म नहीं होगा। तो हम अपनी बात परिवर्तन पर लाते है और उसके विकास की तरफ ध्यान देते हैं। यह सबको पता है कि परिवर्तन विकास का कारक है और परिवर्तन होना जरूरी है(यह विषय का बिंदु नहीं है पर महत्वपूर्ण है)| (History of journalism in India)

ऐसे में जहाँ शुरुआत में आज़ादी के लिए पत्रकारिता का प्रयोग हुआ वही आज़ादी के बाद भारत मे नौकरी, भुखमरी, शैक्षिक स्थित आदि पर पत्र छपते रहे। धीरे-धीरे विज्ञापन का महत्व भी बढ़ने लगा और 1990 के शीट युद्ध(Cold war) खत्म होने के बाद इसमें बदलाव आया और सम्पूर्ण विश्व ने ग्लोबलाइजेशन को अपनाया, जिससे पत्रकारिता का क्षेत्र भी अछूता नहीं रह पाया।

इस समय तक पत्रकारिता के अन्य माध्यम ने भी इस क्षेत्र में एक अलग ही ज्वाला जला रखी थी। ऐसे में समय समय पर कंटेंट देने की प्रक्रिया में परिवर्तन, उसके शैली में परिवर्तन, उसके भाषा मे परिवर्तन यहाँ तक कि पत्रकारिता में कॉर्पोरेट जगत का आना और बीते दो दशक में पत्रकारिता को कॉर्पोरेट जगत से जोड़ कर देखा जाना और इसी के साथ देखें तो इसमें नित नए परिवर्तन और बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं| (History of journalism in India)

जैसे आज का युग इंटरनेट का युग है; जहाँ हर खबर बस एक क्लिक की दूरी पर है लेकिन पहले यह सब नहीं था और हर खबर का एक सीमित क्षेत्र था वे इन्ही सीमित क्षेत्रों में छपते वो बिकते थे। अब हम शुरू करते है पत्रकारिता का इतिहास।

पत्रकारिता का इतिहास(History of journalism in India)

स्वतंत्रता के पहले

पत्रकारिता का इतिहास जर्मनी के जोहान्स गुटेनबर्ग मेंज द्वारा 1450 में आविष्कार के समय से माना जा सकता है, जब किसी भी चीज को मुद्रण करने के लिए उसे एक सांचे में दबाया जाता था।

वैसे देखा जाए तो पत्रकारिता का इतिहास इससे भी बहुत पुराना है। हिन्दू धर्म के अनुसार ऋषि नारद मुनि को पत्रकारिता(History of journalism in India) को शुरू करने और पहले पत्रकार के रूप में माना जाता है और जिसको मानने में शायद कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

इसके साथ हम देखते हैं कि राजा द्वारा अपने राज्य में डुग्गी पिटवाना, दूसरे राज्य को संदेश देना, वहाँ से जानकारी एकत्र कर अपने देश के राजा को बताना, पत्राचार करना आदि को पत्रकारिता कहा जा सकता है और यह पत्राचार तब तक चलता रहा जब तक भारत मे जेम्स अगस्टस हिक्की ने भारत मे पत्रकारिता की शुरुआत(History of journalism in India) नहीं की।

जेम्स अगस्तस हिक्की ने 29 जनवरी 1780 को ‘बंगाल गजट’ या ‘कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर’ नामक साप्ताहिक पत्र प्रारंभ किया। हिक्की एक अंग्रेज थे पर इन्होंने जो साहसिक रूप से दमन के विरुद्ध प्रशासन के खिलाफ पत्र निकालने शुरू किए उससे अंग्रेज़ो में खलबली मच गई और लगभग 2 साल बाद अंग्रेज़ो ने ज़ब्त कर उन्हें इंग्लैंड भेज दिया था।

यह याद रखना चाहिए कि जेम्स का यह पत्र ऐसा पत्र था जिसे अंग्रेज़ो ने जब्त किया था नहीं तो इससे पहले अंग्रेज़ो ने किसी भी अंग्रेज़ी पत्र को जब्त नहीं किया था और न ही इतना बुरा बरताव किया था। हिक्की का यह अंग्रेज़ी पत्र शायद पहला और आखिरी पत्र था जिसको जब्त किया गया हो।

जेम्स के इस पत्र के छोटे अंतराल ने, देखा जाए तो एक हथियार दे दिया था हिंदुस्तान को, जो कि अंग्रेज किसी भी कीमत पर नही चाहते थे कि यहाँ ऐसा हो। 1780 से 82 में कई और पत्र निकलने लगे जैसे द बंगाल जर्नल, कलकत्ता क्रोनिकल, मद्रास कूरियर, बॉम्बे हेराल्ड। (History of journalism in India)

अब प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों अंग्रेज़ भारत में पत्रकारिता का दीपक नहीं जलाने दे रहे थे? तो इसका सीधा सा उत्तर आप इतिहास को उठा कर देख सकते हैं; पर संछेप में आपको बता दे कि पत्रकारिता ने जब जन्म लिया तो उसने गलत क्या सही क्या, गलत तो गलत क्यो, सही तो सही क्यो आदि प्रश्नों से अंग्रेज़ सरकार को घेर लिया था।

जिसके कारण अंग्रेज़ को डर था कि अगर वह भारत मे आ गया तो अवश्य ही उनके नीव को हिला देगा जो कि वह किसी भी प्रकार से नही चाहते थे। (History of journalism in India)

पर पत्रकारिता की नीव भारत में डालने से वो नहीं रोक सके और आगे चलकर इसी पत्रकारिता ने अंग्रेज़ो के पसीने छुड़ा दिए; जिसपर इन्होंने कई कानून थोपे कई अधिकार, एकाधिकार के रूप में बनाए पर भारत मे पत्रकारिता का बाल भी बाका न कर पाए बल्कि यह और प्रखर रूप में उनके सामने आया और उनके नाक में दम करने में कोई कसर नहीं बाकी रखा।(History of journalism in India)

इसी संदर्भ में 1799, 1818 और 1823 दौरान , औपनिवेशिक प्रशासन ने देश में प्रेस को अपने आधीन लाने के लिए कई अधिनियम बनाये। 1799 का विशेष नियम वेलेजेली द्वारा लागू किया गया था। इस अवधि के दौरान विधायी रूप से 1835 का प्रेस अधिनियम , जिसे मेटकाफ अधिनियम के रूप में जाना जाता है ने एक उदार प्रेस नीति की पैरवी की। मेटकाफ, बिलियम बेंटिक (1823-1835) के गवर्नर जनरल के समय स्वतंत्र प्रेस का समर्थन किया था। (History of journalism in India)

सन 1835 में मेटकाफ के गवर्नर बनते ही उसने प्रेस की स्वतंत्रता की तरफ विशेष ध्यान दिया। यह अधिनियम 1857 की क्रांति तक चलता रहा।

■ लार्ड बेंटिक के शासन काल मे राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को बंद करवाया।
■ 1823 में जो लाइसेंस प्रणाली भारत मे शुरू हुए वह जॉन एडम द्वारा बनाया गया और यह प्रथम अधिनियम प्रेस के सन्दर्भ में है जिसके ये उत्तरदायी हैं।
■ अंग्रेज़ी भाषा मे पहला भारतीय समाचार पत्र सन 1816 में प्रकाशित हुआ जिसका संपादक श्री गंगाधर भट्टाचार्य जी थे।
■ अप्रैल 1818 में बंगाली भाषा मे मासिक पत्र दिग्दर्शन का प्रकाशन भाषायी पत्रकारिता में महत्वपूर्ण घटना है। ये सभी भारतीय पत्रकारिता या कहे भारतीय पत्रकारिता का जन्म हेस्टिंग के शासन काल मे ही हुआ है।
■ समाचार दर्पण का प्रकाशन 23 मई 1818 से सन 1840 तक हुआ।
■ 18 सितंबर 1835 को मेटकाफ द्वारा 1823 में लागू लाइसेंस प्रणाली को समाप्त कर दिया गया इसलिए मेटकाफ को भारतीय प्रेस का मुक्तदाता भी कहा जाता है। यह अधिनियम 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम तक बना रहा।
■ इसके बाद कई गवर्नर आये और गए पर ये नियम थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ आगे चलता रहा।
■ लार्ड डलहौजी(1848-1856) इनको भारत के स्वाधीनता संग्राम के तरफ चिंगारी को बढ़ने वाला माना जाता है और जो है भी; पर अकेली मधुमक्खी को दोष देना सही नही है। और पत्रकारिता के ये भी समर्थक थे इन्होंने भी मेटकाफ अधिनियम को समर्थन दिया था। इनके बाद आये लार्ड केनिंग जो कि 1856 में गवर्नर जनरल बने और 1858 में भारत के प्रथम वायसराय बने।

लार्ड केनिंग के भारत के वायसराय बनने के एक साल बाद 1857 में भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम शुरू हुआ जिसको अंग्रेज़ो ने 1858 में जीत तो लिया पर वह युद्ध वर्ष 1947 15 अगस्त तक, किसी न किसी रूप में चलता रहा।

अतः केनिंग 1858 से 1862 तक भारत के वायसराय रहे। इन्होंने अपने शासन काल में गलाघोंटू कानून 13 जून 1857 को लाया। यह कानून एक प्रकार से एडम के 1823 के प्रेस नियंत्रणों के पुनरावृत्त रूप थे जो लार्ड केनिंग के गलाघोंटू कानून के नाम से जाना गया।

यह कानून अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों भाषाओं पर समान रूप से लागू किये गए थे और इनकी अवधि 1 वर्ष की थी। भारत मे 1858 में ईस्ट इंडिया का शासन समाप्त हो गया तथा अब ब्रिटिश सरकार ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया।(History of journalism in India)

  • सन 1860 में भारतीय दंड सहिंता की स्थापना
  • धारा 113 जो कि राजद्रोह से संबंधित धारा थी हटा लिया गया।
  • एक दशक के बाद 113 को फिर से जोड़ दिया गया।
  • ‘बॉम्बे स्टैण्डर्ड’ , ‘टेलीग्राफ’ और ‘कुरियर’, जो पहले ‘बॉम्बे टाइम्स’ के रूप में निकलते थे , 28 सितंबर 1861 को एक मे मिल गए और सम्मिलित पत्र का नाम ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ हो गया।
  • 1865 में पयोनीर पत्रिका निकली।
  • 1868 में ‘अमृत बाजार पत्रिका’ का प्रारंभ, यह बंगाली भाषा मे था।शिशिर कुमार और मोतीलाल घोष के द्वरा शुरू किया गया था।
  • सन 1869 में सर जॉन लॉरेंस जब वायसराय बने तो इंहोने छापेखाने तथा समाचार पत्रों को नियंत्रित करने से संबंधित कानून पारित किया जिसे अंग्रेज़ी में REGULATION OF PRINTING PRESS AND THE NEWSPAPER ACT कहा गया। यह कानून अब समाचार पत्र एवं पुस्तक पंजीकरण नियम, 1867 के नाम से जाना जाता है।
  • 1 मार्च 1878 को वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम को और नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर सबसे कड़े नियमों में से यह एक था। यह एक्ट तत्कालीन वायसराय, लॉर्ड लिटन द्वारा पेश किया गया था, इस अधिनियम ने सरकार को स्थानीय प्रेस में सेंसर रिपोर्ट और संपादकीय के व्यापक अधिकार प्रदान कर दिए। यह स्थानीय प्रेस को ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने से रोकने का एक प्रयास था। यह उपाय ‘गैगिंग एक्ट’ की कमियों का जवाब था, जिससे प्रेस अभेद्य था।
  • वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट के संदर्भ में, बंगाल की अमृता बाजार पत्रिका का विशेष उल्लेख उस समय के भारतीय प्रेस की भावना की एक झलक देता है। वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू होने के बाद, अमृता बाजार पत्रिका ने अंग्रेजी में भी प्रकाशन शुरू किया, क्योंकि यह अधिनियम अंग्रेजी अखबारों पर नहीं लगाया गया था।
  • ए. ह्यूम की प्रेरणा से ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ के रूप में 28 दिसंबर 1885 को गठित किया गया।
  • लार्ड लैंसडाउन ने 17 अक्टूबर 1887 को गोपनीय सूचनाओं के प्रकाशन पर प्रतिबंध कानून पारित किया।
  • 1905- बंगाल विभाजन
  • कांग्रेस 1905 में दो भाग में विभाजित- उदारवादी, उग्रवादी( कलकत्ता अधिवेशन)।
  • इसके बाद वायसराय लार्ड मिंटो ने जून 1908 में Newspaper Incitement to offence act पारित किया।

वर्ष 1908 से 1912 के बीच मिंटो ने 4 नए अधिनयम प्रेस से संबंधित लागू किये। जिसमें एक समाचार पत्रों का प्रयोग अपराध को उसकाने वाला कानून 1908 में न्यूज़पेपर इंसिटमेंट टू ऑफन्स एक्ट, 1908 में लागू किया गया, 1909 में इंडियन प्रेस एक्ट पारित किया, जिसे मार्ले मिंटो सुधार भी कहा गया। 1910 में प्रेस अधिनियम और 1911 में राजद्रोह निवारण अधिनियम मुख्य है।

1910 में लागू किये गए प्रेस अधिनियम ने भारतीय अखबारों पर एक बार फिर नकेल कसना शुरू कर दिया। इस एक्ट को 1867 के अधिनियम के रूप में जाना गया। जिसके तहत छापेखाने और प्रेस पर नियंत्रित करने का सम्पूर्ण अधिकार एक बार फिर सरकार के हाथों में पहुँच गया था। इसके अंतर्गत आक्रामक सामग्री के लिए सुरक्षा सुल्क के भुगतान के मांग का अधिकार भी दिया गया और न मानने पर जमानत राशि जब्त करने का अधिकार मजिस्ट्रेट को सौप दिया गया।(History of journalism in India)
  • 1918 में केंद्रीय ब्यूरो की स्थापना।(1st वर्ल्ड वॉर के दौरान सूचना देने के लिए)
  • युद्ध पत्रिकाओं के कुछ पत्र- हक(पंजाब), द मद्रास वॉर न्यूज़, समर संवाद, सत्य समाचार(बंगाल)।
  • 1922-प्रिंस प्रोटेक्शन बिल।
  • महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत जब 12 मार्च 1930 को शुरू हुई तो उन्होंने अंग्रेज़ो के खिलाफ व्यापक रूप से रैली को सफल बनाने के लिए प्रेस का स्तेमाल किया। जिससे प्रेस और सरकार के बीच तनाव की स्थित बनने लगी।इसके लिए 1930 में ही इंडियन प्रेस ऑर्डिनेंस जारी किया गया। गांधी जी को गिरफ्तार किया गया पर बाद में छोड़ दिया गया।
  • 1931 में गांधी और इरविन के मिश्रित प्रक्रिया से उग्रवादी नाराज और इसे आत्मसमर्पण बताया। इस समझौते के अंतर्गत सविनय अवज्ञा आंदोलन या कहे नमक सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया और 6 मार्च 1931 को इंडियन प्रेस ऑर्डिनेंस बिल स्थगित करने के साथ साथ, 1931 में आपातकालीन अधिकार बनाया गया। इस अधिकार के अंतर्गत प्रांतीय सरकारों को सेंसरशिप की शक्तियां प्रदान की गई थी।
  • 2 अप्रैल 1932- विदेश संबंध अधिनियम पारित।
  • 1934 में भारतीय राज्य (सुरक्षा) अधिनियम( THE INDIN STATE(PROTECTION) ACT पारित और लागू किया गया।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारंभ के साथ सेंसरशिप पुनः लागू। जिसकी कड़ी निंदा की गई।
  • 12 जनवरी 1943 को समाचार पत्रों ने हड़ताल कर दिया।

आज़ादी के बाद…

  • 1947 में प्रेस जांच समिति की स्थापना।
  • 1951 से 1956 तक 1931 के आपत्तिजनक मामले से संबंधित कानून लागू रहा।
  • 4 जुलाई 1966 को औपचारिक रूप से अखिल भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना। इसके पहले अध्यक्ष न्यायमूर्ति जेआर मुधोलकर थे।
  • प्रेस से संबंधित पारित अन्य अधिनियम जो अंग्रेज़ो द्वारा बनाये गए कानूनों में से या तो सीधे या थोड़े से बदलाव के साथ अग्रणित कर लिए गए वे हैं:-पुस्तकें और समाचार पत्र (सार्वजनिक पुस्तकालय) अधिनियम, 1954 का वितरण शामिल है; कामकाजी पत्रकार (सेवा की शर्तें) और विविध प्रावधान अधिनियम, 1955; समाचार पत्र (मूल्य और पृष्ठ) अधिनियम, 1956; और संसदीय कार्यवाही (प्रकाशन संरक्षण) अधिनियम, 1960।

भारत के संविधान में प्रेस से संबंधित कोई विशेष बंदोबस्त नहीं है या कहे कि निकाय नहीं है। प्रेस की स्वतंत्रता से सभी मामले 19(1) के अंतर्गत आते हैं। जिसके अंतर्गत ‘सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

वहीं इन स्वतंत्रताओ का दोहन न हो इसलिए 19(2) के तहत इसपर कुछ प्रतिबंध भी लगा दिया गया है ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई गलत दोहन न कर सके।

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