उपभोक्तावादी संस्कृति के फलस्वरुप मीडिया में आए बदलाव, गेटकीपिंग और बुलेट सिद्धांत( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
उपभोक्तावादी संस्कृति के फलस्वरुप मीडिया में आए बदलाव, गेटकीपिंग का सिद्धांत और बुलेट सिद्धांत–
( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
उपभोक्तावादी संस्कृति के फलस्वरुप मीडिया में आए बदलाव-
● औद्योगिक घरानों का आगमन
● मीडिया पैशन से प्रोफेशन हो गया
● पाठक, उपभोक्ता बन गए
● तकनीकी बदलाव हुए
● सूचनाओं का भंडार बढ़ा
● भाषा-गत बदलाव
● कंटेंट (विषय वस्तु) में बदलाव
● टीआरपी बेस्ड सिस्टम
● विज्ञापनों की भरमार
● मुनाफे का सिद्धांत
● ग्रामीण
● परिवेश हाशिए पर
गेटकीपिंग का सिद्धांत और बुलेट सिद्धांत–
गेटकीपिंग का सिद्धांत– मीडिया में आने वाला कंटेंट हमेशा फिल्टर होकर लोगों तक पहुंचता है, यही इस सिद्धांत का मूल है। यह सिद्धांत जर्मन मनोवैज्ञानिक कर्ट लेविन( Kurt Lewin) द्वारा दिया गया जिसमें उन्होंने बताया कि संचार की हर प्रक्रिया में एक गेटकीपर होता है जो तय करता है कि कौन-सी जानकारी दर्शक/श्रोता तक पहुंचानी है। इसमें सूचना को फिल्टर किया जाता है। उसमें आवश्यक बदलाव किए जाते हैं।
रिपोर्टर का काम सिर्फ संस्थान में खबर पहुंचाना है, उसके बाद खबर को किस नजरिए से लोगों तक पहुंचाया जाएगा, उसका क्या एंगल होगा, यह सब काम गेटकीपर करता है। गेटकीपर की भूमिका में हम संपादक को मान सकते हैं। गेटकीपिंग की प्रक्रिया के जरिए संवेदनशील सूचना, जिससे दंगे हो सकते हैं और विरोधाभासी सूचनाओं को हटाने या रोकने का काम किया जाता है। ऐसा करने से सूचनाएं सही होकर पाठकों तक पहुंचती हैं। गेटकीपिंग में सूचना देने का तरीका चरणबद्ध होता है। इसे चैनल थ्योरी भी कहते हैं।
बुलेट थ्योरी- इसे हाइपोडर्मिक नीडल थ्योरी (hypodermic niddle theory) भी कहते हैं। इसमें हम खबर जिस अर्थ में प्रापक तक पहुँचाना चाहते हैं, उसी अर्थ में पहुंचती है यानी उद्देश्य वही रहता है। इसमें सूचना में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करने वाला कोई भी गेटकीपर नहीं होता है। जैसे बंदूक से गोली निकलने के बाद सीधे अपने उद्देश्य तक पहुंचती है उसी तरह बुलेट थ्योरी में कोई भी सूचना सीधे उसके पाठक तक जस की तस पहुंचती है। इस थ्योरी का अधिकतर प्रयोग एजेंडा सेटिंग के लिए किया जाता है। हेराल्ड लासवेल ने अपनी किताब ” Propaganda techniques during the world war 1947″ में बुलेट थ्योरी का जिक्र किया है।
इसमें प्रापक अपने विवेक का इस्तेमाल करना बंद कर देता है और संचालक की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यह संचार के एकरेखीय मॉडल पर काम करती है, जिसमें किसी भी प्रकार की बाधा नहीं होती है। इसमें दर्शक या पाठक पर मनचाहा प्रभाव छोड़ा जा सकता है और यही इसकी भूमिका को सबसे महत्वपूर्ण बना देती है। हमारी खबर किस रूप में आने वाली है, यह निर्भर करता है कि हमारा संचारक कौन है। बुलेट थ्योरी को प्रभावी बनाने के लिए 2 शर्ते आवश्यक हैं-
1) जनमाध्यम की शक्ति
2) श्रोताओं का अत्यधिक तत्पर, संदेश के लिए बेहद उत्सुक होना
इस थ्योरी की आलोचना यह है कि संप्रेषित संदेश भले ही समान रूप से सभी प्रापकों तक पहुंचता है लेकिन हर व्यक्ति पर संदेश का प्रभाव समान नहीं होता है।
माध्यम शोध,फीडबैक और फीड फॉरवर्ड,पाठक, श्रोता, दर्शक सर्वेक्षण संबंधी अध्ययन,( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
माध्यम शोध–
माध्यम शोध मीडिया के विषयों पर केंद्रित शोध होता है। यह संप्रेषण पर आधारित होता है। इसमें आम जनता को महत्वपूर्ण घटनाओं से अवगत कराया जाता है। यह लक्षित समूह केंद्रित होता है। माध्यमिक शोध ने सामाजिक शोध को एक नया आयाम दिया है, हालांकि यह अभी पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाया है। यह अभी विकासशील स्थिति में है। यह व्यवहारिक व क्रियात्मक शोध है। इस पर शोध प्रशिक्षण, मूलतः मीडिया संस्थानों तथा अन्य संस्थानों तक ही सीमित है । मीडिया शोध में संबंधित तथ्यों व घटनाओं के संदर्भ में ज्ञान प्राप्त करने या उनकी व्यवस्थित जांच परीक्षण के लिए वैज्ञानिक पद्धति द्वारा व्यवस्थित खोज की जाती है।
फीडबैक और फीड फॉरवर्ड–
( JANSANCHAR MADHYAM KE SIDDHANT)
फीडबैक– संचार की प्रक्रिया में फीडबैक उस प्रतिक्रिया को कहते हैं जो संदेश प्राप्त करने के बाद प्रापक, संचारक को देता है। प्रतिपुष्टि यह स्पष्ट करती है कि संचारक द्वारा प्रेषित संदेश प्राप्त तथा सही रूप से स्पष्ट किया गया है कि नहीं।
फीडबैक के प्रकार-संदेश के प्रभाव के आधार पर- सकारात्मक प्रतिपुष्टि और नकारात्मक प्रतिपुष्टि।स्रोत के आधार पर प्रत्यक्ष प्रतिपुष्टि और अप्रत्यक्ष प्रतिपुष्टि।
सकारात्मक प्रतिपुष्टि का मतलब है कि प्रापक द्वारा संदेश का सही अर्थ ग्रहण कर लिया गया है और प्रापक उस बात से संतुष्ट है। वहीं नकारात्मक प्रतिपुष्टि का अर्थ है कि प्रापक द्वारा या तो सही से अर्थ ग्रहण नहीं किया गया है अथवा उसे संदेश पसंद नहीं आया।प्रत्यक्ष प्रतिपुष्टि में संचारक प्रापक के सामने ही होता है, अथवा किसी माध्यम से उससे जुड़ा हुआ होता है और उसे प्रतिपुष्टि तुरंत मिलती है। अप्रत्यक्ष प्रतिपुष्टि में प्रतिपुष्टि सामने से नहीं मिलती है और इसमें कुछ समय लगता है।
फीड फॉरवर्ड– फीड फॉरवर्ड यानी वक्ता की संचार के संदर्भ में आगामी तैयारी। विचार संचारित करने से पहले, प्रापक पर पड़ने वाले प्रभाव को सोचना ही फीड फॉरवर्ड कहलाता है। इसमें भविष्य को ध्यान में रख कर बोलना और वर्तमान में बोली गई बात का क्या प्रभाव पड़ेगा, यह सोचना शामिल होता है। श्रोता की प्रतिक्रिया क्या होगी, यह ध्यान में रख कर बोलना फीड फॉरवर्ड कहलाता है।
पाठक, श्रोता, दर्शक सर्वेक्षण संबंधी अध्ययन-
मीडिया प्रभाव मापने के लिए अलग-अलग क्षेत्र अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। जैसेे- समाचार पत्र-पत्रिकाएं, पाठक सर्वेक्षण कराती हैं। टेलीविजन चैनल पीपुल्स मीटर, डायरी विधि, जनमत सर्वेक्षण तरीकों से सर्वेक्षण करवाते हैं।
1) पाठक सर्वेक्षण–
पाठक सर्वेक्षण के अंतर्गत मुद्रित व ऑनलाइन पत्र- पत्रिकाएं शामिल हैं। निम्नलिखित जानकारियां लेने के उद्देश्य से, प्रकाशन संस्थान रीडरशिप सर्वे कराते हैं-प्रसार संख्या/ पाठक संख्या,पाठक विवरण,पाठकों की जीवन शैली,विषयों की पसंद-नापसंद,सामग्री की पसंद-नापसंद,पाठक- गैर पाठक,उपयोग व संतुष्टि|
महत्व– विज्ञापन प्राप्ति के लिए, खुद की प्रासंगिकता एवं ब्रांड वैल्यू तय करने के लिए।
दर्शक-श्रोता अनुसंधान- ज्यादातर रेडियो या टीवी नेटवर्क में अपने शोध प्रकोष्ठ यानी Research Cell होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया शोध की ओर पहला कदम बढ़ाने वाले प्रसारक नहीं विज्ञापनदाता थे। दूरदर्शन में अनुसंधान के लिए दर्शक अनुसंधान एकांश (ऑडियंस रिसर्च यूनिट) और आकाशवाणी में श्रोता अनुसंधान एकांश (ऑडियंस रिसर्च यूनिट) है।
2) दर्शक अनुसंधान और टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट- दर्शक अनुसंधान विधि दो तरीके से पूर्ण की जा सकती है- डायरी विधि, मीटर विधि।
डायरी विधि- इसमें रैंडम नमूना लिया जाता है। साक्षात्कार लेने वाले, डायरी को विभिन्न परिवारों में दे आते हैं और भरने का तरीका समझा देते हैं। दर्शक टीवी पर जो भी देखता है वह डायरी में भर देता है। डायरी विधि की समय सीमा 7 से 15 दिन होती है। टेलीफोन सर्वे भी एक प्रकार से डायरी विधि ही है।
मीटर विधि– टीवी सेट के तारों को मीटर से जोड़ना, फिर जितनी देर टीवी चलता है मीटर उसके हर मिनट का विवरण दर्ज करता है। तीन चीजें अंकों के साथ सेट करते हैं- चैनल संख्या, शुरुआत का समय और समाप्ति का समय। यह महंगी प्रक्रिया है और कई महीनों तक चलती है। इसमें शोध संस्था के कंप्यूटर, ऑटोमेटिक ढंग से डायल करते हैं और पूरी जानकारी पाते हैं। इस प्रक्रिया में 6 महीने से 2 साल तक का समय लगता है।
टेलीविजन रेटिंग- डायरी व मीटर विधि से निम्नलिखित निष्कर्ष निकालते हैं-रेटिंग– यह दर्शकों की संख्या का माप है ना कि लोकप्रियता का। टीवी देखने वाले परिवार- हाउस ऑफ यूजिंग टेलीविजन टारगेट ऑडियंस रेटिंग प्वाइंट– विज्ञापन टारगेट ऑडिएंस तक पहुंचा या नहीं। यह विज्ञापन की पहुंच देखने के लिए किया जाता है। पहुंच व बारंबारताकार्यक्रम की रैंकिंगदर्शकों की हिस्सेदारी
3) ओपिनियन पोल- किसी समाचार पत्र या चैनल द्वारा अपनी लोकप्रियता जानने या किसी विषय पर लोगों की राय जानने के लिए जनमत सर्वेक्षण कराए जाते हैं। जनमत सर्वेक्षण फील्ड सर्वे, टेलीफोन सर्वे और प्रत्यक्ष साक्षात्कार विधि का प्रयोग करके करवाए जा सकते हैं।
मीडिया शोध संस्थाएँ-
IRS (Indian Readership Survey),नील्सन मीडिया रिसर्च, ORG-MARG, CSDS (Center for voting opinion and trends In Election Research),C VOTER- (Center for voting opinion and trends in Election Research)
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