CHHATH PUJA: ‘लोकजीवन और सूर्योपासना’ BY ALOK KUMAR MISHRA
आज विश्व के कोने-कोने में रहने वाला भोजपुरी भाषी अपने बहुप्रतीक्षित त्यौहार छठ पर पूजा(CHHATH PUJA) कर रहा है. हम भोजपुरी भाषी लोगों के लिए यह त्यौहार सभी त्यौहारों में सबसे ख़ास है. भोजपुरी माटी का इंसान कहीं भी हो छठ में ज़रूर उसे यह पर्व अपने गांव खींच लाता है.
CHHATH PUJA
छठ पूजा(CHHATH PUJA) मुख्यतः अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने से जुड़ा एक सांस्कृतिक पर्व है, जिसमें लोग प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं. सूक्ष्मता से देखें तो हम पाएंगे दुनिया की सभी जर अजर सभ्यताओं में प्रकृति की पूजा से ही धार्मिक विश्वास और आध्यात्म का श्रीगणेश हुआ है और सूर्य तो हमारे प्रत्यक्ष देव हैं जिनसे सभी को ऊर्जा मिलती है, तो सूर्य एक तरह से हमारे पोषक हुए. इसके इतर भी प्रकृति पूजा के अंतर्गत सनातन में जल, पृथ्वी अग्नि आदि सभी की पूजा का प्रावधान है जिनसे हम जुड़े हैं और यही इहलोक की तार्किक अभिव्यक्ति है .
अगर आप मानविकी और समाज से जुड़े विषयों का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि हमारे सारे तीज-त्यौहार एक निश्चित समय पर किसी प्राकृतिक नियम से बंधे हैं. हिंदी मास के कुआर-कार्तिक में नए फ़सल की बुआई और पुराने के कटाई से जरूर इसका संबंध होगा जैसे दक्षिण और पूर्वी भारत में नुआ खाई जुआर आदि.
छठ में पूजा के तौर पर प्रयोग होने वाला नया चावल का चिवड़ा, गन्ना, सुथनी, गागल, अदरक ,सिंघाड़ा आदि इनकी महत्ता और अस्तित्व को बताता है.
छठ में पूजे जाने वाले भास्कर हमारे सनातन धर्म में ही नही विश्व के अनेक सभ्यताओं में पूजनीय हैं जैसे मिस्र,यूनान, एजटिक, तुर्की, अमेरिका की पुरातन संस्कृति में. यूनान में प्लेटो ने तो रिपब्लिका में सूर्य की महिमा का विशद वर्णन किया है उन्हे हिलोरियस की संज्ञा दी है और पूजनीय बताया साथ ही यूनान के आरंभिक देवता सूर्य ही हैं. इधर पूर्व में मिश्र की पुरातन संस्कृति में सूर्य को होरूस कहा गया और उनकी पूजा की गई है .जापान में तो अमतेरासु को सूर्य के रुप में पूजा गया.
अगर आप आस्तिकता से विचलन रखते हैं तो भी मेरी एक बात से इनकार नही कर सकते कि सूर्य जीव -अजीव के सृजन के नाभिकीय केंद्र हैं,यही आदित्य समस्त ऊर्जा के श्रीधर हैं.ये समवेत रूप से बिना भेदभाव के सभी को अपनी आभा से प्रकाशित करते हैं. भुवन भास्कर सनातनियों के प्रत्यक्ष देव हैं जिनसे जीवन का सृजन और पोषण होता है.
हिन्दू मान्यता के अनुसार मथुरा, मुल्तान ,कोर्णाक सूर्य के आराधना के केंद्र हैं. पुराण कहते हैं कि सूर्य की पत्नी संज्ञा एक बार जब अपने मायके गयीं(विश्कर्मा जी के घर) तो सूर्य अपने ससुराल गए उनको लेने तभी ,सूर्य के आगमन में विश्कर्मा ने तैयारी की और सभी जगतवासी उनके स्वागत की तैयारी करते हैं.सूर्य का संज्ञा को विदाई के लिए जाना अस्ताचलगामी के समय अर्घ्य तथा उधर से विदाई कराके लाना उदयाचलगामी अर्घ्य का सांकेतिक महत्व है.
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