इस्लामिक कैलेंडर का पहला दिन मोहम्मद शादान अयाज़ के शब्दों में

आज मुहर्रम(MUHARRAM) की पहली तारीख है यानी इस्लामिक कैलेंडर(FIRST DAY OF ISLAMIC CALENDER) का पहला दिन। आज से नया साल 1444 शुरू हुआ।


हजरत उमर इब्ने खत्ताब र. अ. ने नए साल को पैगम्बर मुहम्मद के हिजरत की तारीख से शुरु करने का हुक्म दिया था इसलिए इस्लामिक कैलेंडर(ISLAMIC CALENDAR) की शुरुआत 622 CE, जब पैगंबर मुहम्मद स. अ. ने मक्का से मदीना हिजरत की, से हुई।

इस्लामिक कैलेंडर सूरज की बजाय चांद के मुताबिक तय होता है जिसमें महीने में 29 या 30 दिन होते है और साल में 355 दिन। इसलिए अंग्रेजी यानी ग्रेगेरियन कैलेंडर की हिसाब से ये 1400 हिजरी ना होकर 1444 हिजरी है।


पैगंबर मुहम्मद के ज़माने से या उससे भी पहले से ही साल में 12 महीने होते थे मगर हजरत उमर इब्ने खत्ताब र. अ. के ज़माने में टैक्स और अकाउंटिंग में आसानी के लिए मुहर्रम को कैलेंडर का पहला महीना तय किया गया।

इस्लामिक इतिहास में मुहर्रम(MUHARRAM) के महीने में एक और वाक्या हुआ था। यजीद के खिलाफ करबला (ईराक में एक शहर) की जंग 680CE में मुहर्रम के महीने में ही लड़ी गई थी जिसका नेतृत्व पैगंबर मुहम्मद के नवासे (नाती) हज़रत ईमाम हुसैन र. अ. कर रहे थे जिनकी तरफ़ से लड़ने वाले मात्र 72 योद्धा थे जिनमे उनका परिवार भी शामिल था जबकि यजीद की तरफ पुरी फ़ौज। ये जंग हक और बातिल के बीच थी। ठीक मुहर्रम की दसवीं तारिख को हज़रत ईमाम हुसैन र. अ. इस जंग में शहीद हो गए। इसी शहादत को याद करने के लिए हर वर्ष मुहर्रम की दसवीं तारिख को याद किया जाता है। मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है।

मोहम्मद शादान अयाज़ (MOHD. SHADAN AYAZ) कहते हैं की उनके शुरू से लिखने का मकसद बस इतना सा है कि मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है। इसके नाम पर आप जो ढोल तासे, निशान, खून, अखाड़े, भीड़ डी. जे., ताजिया ईत्यादि वगैरह सड़कों पर देखते है इसका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है ना ही ऐसा करने का मुसलमानों को हुक्म है। आप इसे सड़कों पर देख कर इसे धार्मिक परंपरा या रिवाज़ ना समझे ये महज़ चंद लोगों की समझ है। हालांकि ये धीरे धीरे सिमट रहा है पहले की अपेक्षा अभी बहुत कम हो गया है उम्मीद है आने वाले 15 से 20 सालों में पुरी तरह खत्म हो जाएगा। इसलिए भी नए साल की मुबारकबाद देने का कोई लॉजिक नहीं बनता है हां आप अपनी तरफ से दुआएं दे सकते है।

यह पोस्ट लेखक मोहम्मद शादान अयाज़ द्वारा लिखा गया है| जो कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया से अपनी पढाई पूरी कर चुके हैं| इनके फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए इस लिंक का प्रयोग करिए….

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