
लोकतंत्र की विशेषता सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल की पारस्परिक जवाबदेही की प्रणाली और एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विचार-विमर्श प्रक्रिया में प्रकट होती है।
किंतु, वर्तमान में भारत का संसदीय विपक्ष न केवल खंडित है, बल्कि अव्यवस्थित या बेतरतीबी का शिकार भी नज़र आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद ही हमारे पास कोई विपक्षी दल है, जिसके पास अपने संस्थागत कार्यकलाप के लिये या समग्र रूप से ‘प्रतिपक्ष’ के प्रतिनिधित्व के लिये कोई विजन या रणनीति हो।
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भारत का सबसे पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस आज अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित है, अब उसके अस्तित्व पर सवाल कोई बाहर से नहीं उठ रहा| बल्कि उसी के सहयोगी दल और उसके खुद के नेताओं ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। भारतीय लोकतंत्र की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस आज अपने भीतर के ही लोकतंत्र को भूल चुकी है।
कांग्रेस के पतन का एक बड़ा कारण उसका नेतृत्व भी है। कई बड़े नेता राहुल गांधी पर अयोग्य होने का आरोप लगाते आए हैं। उनमें से एक बड़ा नाम ममता बनर्जी का भी है जो राहुल गांधी को कांग्रेस नेतृत्व के लिए अयोग्य मानती हैं, साथ ही पार्टी के अंदर से भी बड़े नेताओं द्वारा राहुल गांधी पर इस तरह के आरोप लगने लगे हैं।
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कुछ विद्वान तुष्टिकरण की राजनीति को भी कांग्रेस के पतन की बड़ी वजह के रूप में देखते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का सहारा लिया और हिंदुओं को हमेशा दूसरे स्थान पर रखा जिसका फायदा वर्तमान में भाजपा द्वारा उठाया जा रहा है। यह कांग्रेस के पतन में एक बड़ी वजह के रूप में सामने आ रहा है।
घोटालों से भी कांग्रेस का पुराना संबंध रहा है फिर चाहें वो 2G स्पेक्ट्रम स्कैम हो या फिर कॉमन वेल्थ गेम्स स्कैम, चाहें चॉपर स्कैम हो या तंत्र ट्रक स्कैम, चाहें आदर्श स्कैम हो या सत्यम स्कैम, हर जगह कांग्रेस को लिप्त पाया गया जिसने मतदाता के मन में कांग्रेस की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया जिसके बाद कांग्रेस को अपनी स्तिथि में निरंतर रूप से गिरावट का सामना करना पड़ रहा है।
कांग्रेस के पतन का एक मुख्य कारण मोदी फ़ैक्टर भी है। राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का उभार, कांग्रेस की गिरावट की एक मुख्य वजह रही है। साथ ही कांग्रेस के पास RSS जैसे संगठन का न होना भी इनकी कमजोरी का कारण है।
एक कमज़ोर विपक्ष एक गैर-उत्तरदायी सरकार से बहुत अधिक खतरनाक होता है। एक गैर-उत्तरदायी सरकार एक कमजोर विपक्ष के साथ मिलकर लोकतंत्र को नीचे ही ढकेलता है। एक कमज़ोर विपक्ष का सरल अर्थ यह ही होता है कि एक बड़ी आबादी की राय और मांगों को बिना किसी समाधान के छोड़ दिया गया।
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विपक्ष को मज़बूत करने के लिए महज़ एक विपक्ष का निर्माण करने की बजाय कई दलों को एकजुट कर सत्तारूढ़ दल को चुनाव में प्रतिस्थापित करने की राह पर आगे बढ़ा जाए। आवश्यकता यह है कि, पार्टी संगठन में सुधार किया जाए, एकजुट होने के लिये आगे बढ़ा जाए और जनता को संबंधित पार्टी कार्यक्रमों से परिचित कराया जाए। इसके साथ ही, पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र के समय-समय पर मूल्यांकन के लिये एक तंत्र भी अपनाया जाना चाहिये।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत के संसदीय विपक्ष को पुनर्जीवित करना और उसे सशक्त करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है| विशेषकर जब लोकतंत्र का मूल्यांकन करने वाले विभिन्न सूचकांकों में इसकी वैश्विक रैंकिंग में लगातार गिरावट आ रही है। जहाँ हमारी राजव्यवस्था ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली का पालन करती हो, विपक्ष की भूमिका विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भारत के लिये एक सच्चे लोकतंत्र के रूप में कार्य करने हेतु एक संसदीय विपक्ष—जो राष्ट्र की अंतरात्मा है, को संपुष्ट करना महत्त्वपूर्ण है।
[…] सशक्त लोकतंत्र में कमजोर विपक्ष- ‘द डि… […]
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