ए वेरी ईज़ी डेथ.

नाम:- ए वेरी ईज़ी डेथ
लेखिका:- सीमोन द बोउवार
संपादन एवं भावानुवाद:- गरिमा श्रीवास्तव
श्रेणी:- आत्मकथा

अमूमन मैं जिन स्त्रियों के बीच उठता बैठता हूँ उनके बीच अगर महिलावाद का ज़िक्र हुआ और ओढ़ने, बिछाने, पहनने, खाने, घूमने फिरने और तथाकथित आज़ादी से हटकर कुछ ढंग की बातचीत शुरू होने की सम्भावना बनती है तो सीमोन द बोउवार का ज़िक्र कोई न कोई कर ही देता है लेकिन, लेकिन दिक्कत यहां आती है कि घूम फिरकर बातचीत स्त्री और पुरूष के बीच प्रतिस्पर्धा की बेबुनियादी बहस में तब्दील हो जाती है।

वर्तमान समय में पढ़ने और लिखने की एक फूहड़ धारा का प्रवाह शुरू हुआ है और वह है पोस्ट या कैप्शन रीडिंग। वहीं सोशल मीडिया ने इस फूहड़ धारा का प्रवाह तेज़ कर दिया है। और इस फूहड़ धारा में एक समय पर मैंने भी डुबकी लगाई थी और अधिकांश युवा वर्ग इसमें डुबकी लगा रहे हैं। इस पोस्टर और कैप्शन रीडिंग की धारा में डुबकी सतही स्तर पर लगाने पर हम किसी भी तरह के विचार या तथ्य की गहराई में जाने की आदत से हटते चले जाते हैं।

अगर मैं इसको लेकर एक उदाहरण दूं तो जर्मनी के महान दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे का एक कथन है जो कि कुछ ऐसा है “God is dead” इस कथन को कोट करके पोस्टर और कैप्शन रीडिंग की आदत से यही समझा जा सकता है कि नीत्शे ने ईश्वर को मृत कहा है, लेकिन जब कोई पाठक इस कथन की गहराई में जाता है तो उसे यह समझ आता है कि “God is dead” कथन का वास्तविक अर्थ क्या है।

इसी तरह उपरोक्त कारण से ही अक्सर कई लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ रह जाते हैं कि सीमोन द बोउवार सिर्फ एक महिलावादी लेखिका नहीं बल्कि एक अस्तित्ववादी दार्शनिक भी थीं और उनकी रचनाओं में जिस महिलावाद का ज़िक्र किया जाता है वह अस्तित्ववादी है न कि अवसरवादी।

चूंकि, सीमोन द बोउवार सिर्फ एक महिलावादी लेखिका नहीं बल्कि एक दार्शनिक भी थीं और वो भी अस्तित्ववादी, ऐसे में सीमोन का लेखन महिलाओं के संदर्भ को महज़ पुरुषों के बराबर खड़ा करने की वकालत नहीं करता है बल्कि सीमोन के विचारों की गहराई में महिलाओं को लेकर वह अस्तित्ववादी विचार हैं, जो उन्हें पुरुषों की बराबरी या उनके समकक्ष अधिकार प्राप्त करने की बजाय खुदबखुद स्त्री रूप में अपने अस्तित्व को पहचानने का दृष्टिकोण देते हैं।

यूं तो “ए वेरी ईज़ी डेथ” सीमोन द बोउवार की सम्पूर्ण जीवन की कहानी का महज़ एक हिस्सा है। जिस हिस्से में सीमोन की माँ मामन की कैंसर से जूझने की वह दास्तान दर्ज़ है जिसमें मार्मिकता है, तड़प है, पश्चाताप है, पीड़ा है, संताप है, आत्मग्लानि है, कहीं कहीं कठोरता है, कहीं कहीं खुशी भी है और अंत में एक ऐसा मानवीय भाव है जिसको उक्त परिस्थितियों से बिना गुज़रे महसूस नहीं किया जा सकता है।

जीवन में एक मनुष्य न जाने कितने ही भावों से गुजरता है, लेकिन क्या वह उन भावों के अस्तित्व को समझ पाने में सक्षम होता है? सीमोन की यह आत्मकथात्मक रचना इस तथ्य को कई हद तक न सिर्फ समझने बल्कि महसूस करने के लिए एक अंतर्मन की दृष्टि प्रदान करती है। ऐसे में यह रचना वैचारिक कम मार्मिक ज्यादा है।

देखा जाए तो “ए वेरी ईज़ी डेथ” रचना सीमोन को कहीं हद तक समझने में मदद करती है, लेकिन सीमोन की सम्पूर्णता को रेखांकित नहीं करती है और न ही सीमोन के विचारों को समझने में मददगार साबित होती है। मेरे ऐसा कहने के पीछे कई कारण हैं और उन सभी कारणों में से सबसे बड़े कारण का ज़िक्र करूँ तो वह है सीमोन के विस्तृत लेखन का संसार।

इस संसार में रचना के केवल तीन ही रूप हैं, पहला वह लेखन जिसका स्वरूप तथ्यात्मक और तार्किक होता है, दूसरा वह लेखन जिसका स्वरूप अनुभव के अनुरूप होता है जिसमें तर्क और तथ्य गौण होते हैं और अंत में तीसरा लेखन इन दोनों ही स्वरूपों का मिश्रित रूप होता है। सीमोन के लेखन का स्वरूप तीसरे लेखन के अनुरूप है जिसमें तर्क, तथ्य और अनुभव तीनों शामिल हैं। वस्तुतः सीमोन अपने जीवन को “ए वेरी ईज़ी डेथ” में पूर्ण रूप से अभिव्यक्त नहीं करती हैं; लिहाज़ा वह अपने लेखन के विस्तृत संसार में कई रूपों, विचारों और घटनाओं के मध्य में विद्यमान हैं।

किसी भी आत्मकथा का स्वरूप एक रेखीय और बहु रेखीय हो सकता है। यहां मैं गांधी जी की आत्मकथा की बात करूं तो उसका स्वरूप एक रेखीय है। गांधी जी की आत्मकथा शुरू से अंत तक एक रेखा में आगे बढ़ती है। वहीं सीमोन की इस आत्मकथा का स्वरूप बहु रेखीय गुण की एक कड़ी है। इस आत्मकथा में सीमोन के जीवन के महज़ एक घटनाक्रम का ज़िक्र है जिसकी मुख्य भूमिका या परिधि में सीमोन की माँ मामन हैं।

वहीं इस आत्मकथा का चित्रण एक हॉस्पिटल और पेरिस के आस पास हुआ है। यानी कि घटनाक्रम की व्यापकता का इस आत्मकथा में अभाव है। हालांकि इस आत्मकथा के दूसरे पहलू को देखें तो भावनाओं के स्तर पर किसी भी मनुष्य को सोचने और महसूस करने के लिए यह आत्मकथा बाध्य कर सकती है।

महिलावाद और अस्तित्ववाद के अतिरिक्त इस आत्मकथा की पृष्ठभूमि की बात करें तो मामन जो कि सीमोन की माँ हैं और एक लंबे अरसे से अकेली रह रही हैं। सीमोन और उनकी छोटी बहन उनसे अलग रहती हैं। दोनों की भिन्न भिन्न जिंदगियां हैं और वह उनमें बेहद खुश हैं। वहीं दूसरी ओर मामन अकेली रहती हैं लेकिन कुछ समय से वह कई तरह की परेशानियों से गुज़र रहीं हैं, इन दिक्कतों और तकलीफों में सबसे बड़ी तकलीफ़ उस कैंसर की है जो मामन के पेट में पैदा हो गया है।

मामन की इस हालत से सीमोन से लेकर मामन की देखरेख कर रहीं नर्स और डॉक्टर सभी बेहद दुखी हैं। सीमोन चाहती है कि उनकी माँ जल्द से जल्द इस पीड़ा से छुटकारा पाए और एक आसान मौत को गले लगाएं। वहीं नर्स इस आशा में हैं कि किसी तरह से मामन का दर्द कम हो और वह कुछ और दिन उनसे बातचीत करते हुए बिताएं। हालांकि डॉक्टर्स कहते हैं कि ऑपरेशन करना जरूरी है लेकिन सीमोन का मोह है कि ऑपरेशन से कहीं मामन का दर्द और न बढ़ जाए।

उपरोक्त रेखांकित उधेड़बुन में यह आत्मकथा “ए वेरी ईज़ी डेथ” की परिणीति को प्राप्त होती है। हालांकि इस आत्मकथा को लेकर अगर यह कहा जाए कि यह सीमोन की आत्मकथा कम उनकी माँ की आखिरी दिनों की एक मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी चित्रण है तो इसमें कोई दो राय नहीं होगी। इसके अलावा इस आत्मकथा की सम्पादक और भावानुवादक गरिमा श्रीवास्तव की बात करूं जिन्होंने सीमोन की इस आत्मकथा का संपादन और भावानुवाद किया है तो यह कह सकता हूँ कि गरिमा श्रीवास्तव ने सच में इस आत्मकथा का बेहद ही खूबसूरत और नूतन रूप से भावानुवाद किया है।

गरिमा श्रीवास्तव के भावानुवाद में जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी वह यह है कि गरिमा श्रीवास्तव ने भावानुवाद में वाक्यों को तोड़ने की बजाय उनके बीच पंक्चुएशन का इस्तेमाल करते हुए वाक्यों को जस का तस लिखते हुए भी उनके भावों में कोई विकृति पैदा नहीं की है।

अस्तु सीमोन के विचारों का गहराई से जो लोग अध्ययन करते होंगे वह इस बात से इत्तेफाक रखते होंगे कि सीमोन के लेखन और विचारों में जो अस्तित्ववादी प्रस्फुटन है वह महिलावाद को समानता और अधिकारों की खोखली लड़ाई और अवसरवादिता से कहीं दूर अस्तित्व की ओर लेकर जाता है। जिस अस्तित्ववाद में सारेन कीर्केगार्द, फ्रेडरिक नीत्शे, कार्ल जैस्पर्स, अल्बेयर कामू, ज्यां पाल सार्त्र और खुद-ब-खुद सीमोन द बोउवार के विचारों का सार शामिल है।

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By Vishek

Writer, Translator

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