फरनान्दो पैसोआ का मूल विचार।

फरनान्दो पैसोआ……अक्सर ऐसा पढ़ने और सुनने को मिलता है कि मूलतः मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतएव उनके जीवनयापन के लिए सामाजिक जुड़ाव और सामाजिक परिस्थितियां मायने रखती हैं। हालांकि इसमें मनुष्य के सामने पहचान और अस्तित्व जैसे व्यापक और गूढ़ प्रश्न अनवरत ही दृष्टिगोचर होते रहते हैं, जिससे मनुष्य अपने अंतिम समय तक द्वन्दात्मक रूप से जूझता रहता है। यह द्वंद्व आंतरिक और बाहरी दोनों ही प्रकार से भिन्न भिन्न परिस्थितियों में उजागर होता रहता है।

वर्तमान समय की परिस्थितियों का अगर ठीक ठीक आंकलन किया जाए तो यह कहीं हद तक कहा जा सकता है कि मनुष्य के सामने जो पहचान और अस्तित्व का व्यापक प्रश्न रहता है, वह पहचान और अस्तित्व से हटकर मात्र पहचान तक ही सीमित होता जा रहा है।

ऐसा इसलिए है, क्योंकि सृजन की सृजनशीलता में अस्तित्व के उत्कर्ष का महत्व कमतर होता जा रहा है और मात्र पहचान का प्रश्न व्यापक होता जा रहा है। हालांकि देखा जाए तो बिना पहचान के प्रश्न के अस्तित्व का प्रश्न हल हो सकता है लेकिन बिना अस्तित्व के प्रश्न के हल के पहचान का प्रश्न अधूरा और खोखला है।

पहचान और अस्तित्व की इस जद्दोजहद में मनुष्य का व्यक्तित्व वह अहम पहलू होता है जो मनुष्य के पहचान और अस्तित्व दोनों ही प्रश्नों को हल करने की गुंजाइश को जन्म देता है। क्रमवार रूप से जब मनुष्य अपने व्यक्तित्व का निर्माण करना प्रारंभ करता है तो एक समय ऐसा आता है जब उसे यह बोध होता है कि उसके व्यक्तित्व की पहचान और अस्तित्व क्या है? हालांकि यह बोध मनुष्य के भीतर व्याप्त व्यक्तित्वों के बीच द्वंद्व के फलस्वरूप होता है।

बहुव्यक्तित्ववाद का अनुसरण करते हुए पहचान एवं अस्तित्व को सन्दर्भित करते हुए आत्मा की खोज करना, एक ऐसे लेखक का जीवन सार था, जिन्होंने अपने भीतर तकरीबन 75 से भी अधिक व्यक्तित्व का इज़ाद किया। फरनान्दो पैसोआ एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने अपने भीतर तकरीबन 75 से भी अधिक व्यक्तित्व का इज़ाद किया, उन्हें नाम दिया, उनकी कुंडलियां बनाई और उनके नामों से विश्वप्रसिद्ध कविता,लेख, समीक्षा,अनुवाद और टिप्पणियां लिखीं और वैश्विक स्तर पर पुर्तगाली साहित्य को एक पहचान दिलाई।

पैसोआ गहराई से इस बात को जानते और इसका समर्थन करते थे कि एक व्यक्ति को अपने कई व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहिए और उनके सहारे आत्मा की खोज करनी चाहिए, क्योंकि यह परम सत्य है।

फरनान्दो पैसोआ का जीवन।

यह बात पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन की है. जहाँ 13 जून सन 1818 में फरनान्दो एंटोनियो नोगिरा पैसोआ का जन्म हुआ था। जिन्हें फरनान्दो पैसोआ के नाम से जाना है। पैसोआ अभी पांच वर्ष के ही हुए थे कि उनके पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद पैसोआ कि माँ ने डेढ़ साल बाद दक्षिण अफ्रीका के डरबन में पुर्तगाली वाणिज्य काउंसलर से दूसरी शादी कर ली।

इसके बाद पैसोआ ने डरबन के एक अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाई की, डरबन में उन्होंने सत्रह साल की उम्र तक अपने परिवार के साथ समय बिताया। इसके बाद के वर्षों के दौरान उन्होंने एक अज़ीब जिंदगी बताई। वह अपने रिश्तेदारों के घरों में ठहरे लगे। कुछ दिन किसी रिश्तेदार के घर तो कुछ दिन किसी और रिश्तेदार का दरवाज़ा खटखटाया।

फरनान्दो पैसोआ रिश्तेदारों के बाद किराए के कमरों में रहा करते थे। इसी दौरान उन्होंने अनुवाद करके, अवंत-गार्डे समीक्षाओं में लिखकर, और अंग्रेजी और फ्रेंच में व्यावसायिक पत्रों का मसौदा तैयार करके अपना जीवन यापन किया। उन्होंने 1912 में आलोचना, 1913 में रचनात्मक गद्य और 1914 में कविता प्रकाशित करना शुरू किया।

अल्बर्टो काइरो, रिकार्डो रीस और अलवारो डी कैम्पोस का जन्म।

1914 यह वह वर्ष था जब अल्बर्टो काइरो, रिकार्डो रीस और अलवारो डी कैम्पोस का जन्म हुआ। यह तीनों व्यक्तित्व फरनान्दो पैसोआ के सबसे अधिक प्रसिद्धि हासिल करने वाले व्यक्तित्व थे। फरनान्दो पैसोआ ने खुद के अंतर्मन के भीतर से जन्में अल्बर्टो काइरो, रिकार्डो रीस और अलवारो डी कैम्पोस को नाम देने के अलावा इन अंतर्मन के व्यक्तित्वों की जन्मकुंडली भी बनाई और इनके नाम से पत्र-पत्रिकाओं में लेख,अनुवाद, समीक्षा और टिप्पणियां लिखीं।

अंतर्मन के व्यक्तित्वों के नामों से छपे लेख,टिप्पणियां, समीक्षाओं ने इतनी प्रसिद्धि हासिल की कि फरनान्दो पैसोआ ने बाकी के बहत्तर अंतर्मन के व्यक्तित्वों के नाम से भी लिखा। लेकिन दुर्भाग्यवश बाकी के अंतर्मन के व्यक्तित्व वह ख्याति हासिल नहीं कर पाए जो प्रसिद्धि अल्बर्टो काइरो, रिकार्डो रीस और अलवारो डी कैम्पोस ने हासिल किया था।

हालांकि यह प्रसिद्धि उन्हें उनकी मृत्यु के पश्चात हासिल हुई। उन्होंने 1918 में अंग्रेजी कविताओं की अपनी पहली पुस्तक, एंटिनस, उसके बाद सॉनेट्स (1918) और अंग्रेजी कविताएं (1921) प्रकाशित की, लेकिन 1933 में पुर्तगाली कविताओं की केवल एक पुस्तक, मेन्सेजम का विमोचन किया।

केवल पैसोआ की मृत्यु नहीं बल्कि 75 लोगों की मृत्यु।

30 नवंबर, 1935 को लिस्बन में दिल का दौरा पड़ने से पैसोआ की मृत्यु हो गई। पैसोआ ने भले ही पुर्तगाली साहित्य को समृद्ध किया हो लेकिन पैसोआ साहित्यिक दुनिया और अधिकांश सामाजिक संपर्क से परहेज करते थे। फरनान्दो पैसोआ की जब मृत्यु हुई तो उसके बाद उनके घर की तलाशी ली गई जहाँ एक सन्दूक में तकरीबन 50 हज़ार से भी अधिक पन्ने मिले। जिन पर आज भी काम किया जा रहा है। और पुर्तगाली साहित्य को और समृद्धि मिल रही है।

APNARAN TUMBLR

READ MORE

By Vishek

Writer, Translator

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Copy Protected by Chetan's WP-Copyprotect.

Discover more from अपना रण

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Discover more from अपना रण

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading