पुस्तक समीक्षा
नाम:- कॉमेडी ऑफ एरर्स
लेखक:- विलियम शेक्सपियर
अनुवाद:- डॉ. रांगेय राघव
प्रकाशक:- राजपाल एंड सन्स
श्रेणी:- नाटक
साहित्य के संदर्भ में नाटक एकल ऐसी विधा है, जो भाषाई सीमांकन की रेखा को लांघकर आम जनमानस में भी संवेदना का संचार करने में सक्षम है। वहीं जब बात नाटक की हो तो विश्व साहित्य के गौरव और इंग्लैंड के प्रसिद्ध नाटककार विलियम शेक्सपियर को बिल्कुल भी नकारा नहीं जा सकता है। शेक्सपियर ने अपने जीवनकाल में 1587 ई. से लेकर 1612 ई. तक कुलमिलाकर 38 नाटकों की रचना की है। देखा जाए तो शेक्सपियर ने मुख्यरूप से तीन धाराओं में नाटकों की रचना की है। इन तीन धाराओं में दुःखान्त, हास्य और ऐतिहासिक नाटक शामिल हैं, इसमें भी एक दिलचस्प बात यह है कि शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक विश्व की ऐतिहासिक घटनाओं एवं सन्दर्भों पर ही आधारित हैं।
कॉमेडी ऑफ एरर्स शेक्सपियर के सभी नाटकों में हास्य की श्रेणी में आता है। इस नाटक का हास्यशिल्प इसके जुड़वा पात्रों के बिछड़ने और अदला बदली से उतपन्न हुई परिस्थितियों से उजागर होता है। इस नाटक में शेक्सपियर ने शब्द के स्तर पर बेहतरीन प्रयोग किये हैं, जिनमें द्विअर्थी शब्द और परिस्थिति के अनुकूल उनका अर्थ ग्रहण करना शामिल है। वहीं इस नाटक के अनुवादक हिन्दी के साहित्यकार डॉ. रांगेय राघव ने इन द्विअर्थी शब्दों के अंग्रेजी प्रयोग से लेकर इसके अर्थग्रहण को इस पुस्तक में टीका के रूप में रेखांकित किया है। इसके साथ ही रांगेय राघव ने शेक्सपियर की तर्ज़ पर ही इसका अनुवाद करते हुए हिन्दी के कई ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है, जिसका घटना या परिस्थिति के अनुकूल द्विअर्थ और ग्रहण में भिन्नता प्रकट होती है।
शेक्सपियर ने इस नाटक में हास्य प्रकट करने के लिए तंत्र मंत्र और पागलपन की परिस्थितियों को उतपन्न किया है। जिसमें पिंच जो कि एक डॉक्टर और तांत्रिक होता है, उसके द्वारा इफीसस के एन्टीफोलस और इफीसस के ड्रोमियो को झाड़फूंक करके उनका पागलपन उतारने के लिए कहा जाता है। एक नज़र में देखा जाए तो इस पूरी घटना से हास्य को उजागर करने की कोशिश की गई है, लेकिन वहीं दूसरी नज़र में यह भी देखा जा सकता है कि इस पूरे घटनाक्रम से शेक्सपियर ने अंधविश्वास को लेकर एक दृष्टि प्रदान करने की कोशिश की है।
इस नाटक में एड्रियाना और उसकी बहन ल्यूसियाना महिला किरदारों में मुख्य भूमिका में नज़र आती हैं। कॉमेडी ऑफ एरर्स जैसा कि इस नाटक का शीर्षक है। घटनाक्रमों के उथलपुथल से जो भ्रम एड्रियाना और उसकी बहन ल्यूसियाना को होता है। उसके परिणामस्वरूप पुरूष और महिला के मध्य एक क़िस्म की स्पर्धा जन्म ले लेती है। जिसमें महिला अपनी परिस्थितियों तथा भावनाओं को घटनाक्रमों के ऊहापोह से उतपन्न हुई पुरुषवादी वर्चस्व की सीमा को लांघकर प्रकट करती है।
हालांकि शेक्सपियर का यह नाटक हास्य की श्रेणी में आता है, लेकिन इसमें सामाजिक उथलपुथल से जुड़ी हुई वह घटनाएं भी उल्लेखित हैं, जो एक गंभीर पक्ष रखती हैं। दाम्पत्य जीवन में उतपन्न गलतफहमी और मानसिक तनाव को शेक्सपियर ने एड्रियाना और इफीसस का एन्टीफोलस के दाम्पत्य जीवन में उतपन्न गलतफहमियों और मानसिक तनाव के माध्यम से इस नाटक में रेखांकित किया है। जिनमें एन्टीफोलस के द्वारा अपनी पत्नी को दरकिनार करना और एड्रियाना के द्वारा अपने पति को मानसिक रूप से परेशान करना शामिल है। हालांकि शेक्सपियर ने इस स्थिति को इस नाटक में उतना ही स्थान दिया है, जितना कि जीवन के इस संदर्भ या पहलू को देना चाहिए, यानी कि बेहद संक्षिप्त।
शेक्सपियर के दुःखान्त नाटक और ऐतिहासिक घटनाप्रधान नाटक विश्व में एक विस्तृत पाठक वर्ग और मंच तक पहुँच बनाते हैं, इसके मुकाबले सुखान्त या फिर हास्य नाटकों की पहुँच उतनी नहीं है। इसको लेकर रांगेय राघव इस नाटक की भूमिका में लिखते हैं कि “शेक्सपियर के नाटक कॉमेडी ऑफ एरर्स का जब पहली बार मंचन किया गया तो संभ्रान्त लोग इसलिए नाराज़ होकर उठकर चले गए क्योंकि उनको कुछ समझ नहीं आया।
चूंकि इस नाटक में जुड़वा भाई और जुड़वा नौकर हैं। और जो जुड़वा नौकर हैं वह उन जुड़वा भाइयों के ही नौकर हैं। इसलिए इस नाटक में घटनाओं को लेकर जो हेरफेर और संवाद के मध्य उलझन पैदा होती है, उससे सिर चकरा जाता है। हालांकि नौकरों के साथ जिस तरह से जुड़वा भाई बर्ताव करते हैं, उससे शेक्सपियर ने एक तरह से गुलाम या नौकर की स्थिति को भी रेखांकित किया है। शेक्सपियर ने नौकरों के संवाद में एक गुलामी और मालिक की हर ज़्यात्ति की पीड़ा को दर्शाया है, जिसे पढ़कर कभी सहानुभूति का भाव उत्पन्न होता है तो कभी मन व्याकुल हो उठता है।
शेक्सपियर ने कोई उच्च शैक्षणिक योग्यता प्राप्त नहीं की थी और इसके साथ ही शेक्सपियर का शब्दभंडार भी लगभग बीस हजार शब्दों का ही था। इसके बावजूद शेक्सपियर ने अंग्रेजी भाषा के शब्दकोश में सत्रह सौ से भी अधिक शब्द जोड़े और नाटक लेखन में वह स्थान हासिल किया जो अविस्मरणीय है।
शेक्सपियर को लेकर अगर मैं कुछ कहूँ तो बस इतना ही कह सकता हूँ कि “रचनात्मकता के सौन्दर्यकरण का मौलिक आधार अध्ययनशीलता से कहीं अधिक निरन्तरता के उस अवश्यम्भावी गुण पर निर्भर करता है, जिसमें सृजनात्मक बेचैनी हो।”
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