wikifinancepedia what is corporate social responsibility definition advantages types and its importance6115284062094754908
CSR

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY)

भारत अपने आदर्श संस्कृति और परोपकार की भावना के साथ सभ्यता को अभिन्न रूप में देखता और मानता है। इसी के चलते व्यापारिक मूल्यों में भी सामाजिक जीवन का विचार विद्यमान हुआ दिखता है। आज के आधुनिक युग में कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका को निभाने के साथ-साथ औद्योगिकीकरण का विस्तार भी हुआ है।

ऐसे में यह भी देखा गया है कि भारत और विश्व के अन्य देशों में केवल कॉरपोरेट में कुछ ही चुनिंदा व्यक्ति हैं जिन्होंने सामाजिक स्तर से जुड़कर व्यक्तिगत स्तर पर अपना योगदान, समाज में देने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए बिल गेट्स, रतन टाटा, अजीम प्रेमजी आदि।

संपत्ति के मालिकाना हक के रूप में देखें तो विश्व के लगभग 1% आबादी के पास ही ज्यादातर संपत्ति है, लेकिन सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखें या परखें तो देखते हैं कि इनकी भूमिका बेहद ही निराशाजनक है।

CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) क्या है?

कार्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व एक ऐसे मॉडल से है जो स्वविनियन व्यवसाय(एक अनिर्धारित व्यवसाय का मालिक- IRS) पर आधारित है।यह एक प्रकार से कहें तो, कंपनियों को सामाजिक स्तर पर जवाबदेही बनाने में मदद करते हैं। इसमें कंपनी के अपने हितधारक और जनता के प्रति संबंध सम्मिलित होते हैं।

एक कॉर्पोरेट अपने सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में जानकर, कॉर्पोरेट नागरिक भी बन सकता है। इससे कंपनियों को यह समझने में आसानी हो जाती है कि , उनके द्वारा किए जा रहे आर्थिक , सामाजिक और पर्यावरण सहित, समाज के क्रियान्वयन और पहलुओं पर कैसे प्रभाव पड़ रहा है या कैसे प्रभाव पड़ सकता है।

इस मॉडल के अंतर्गत आने का तात्पर्य है कि, एक कंपनी व्यवसाय के सामान्य पाठ्यक्रमों को ध्यान में रखकर अपना कार्य कर रही है, जिसमें समाज और पर्यावरण का दोहन ना होकर उनके सकारात्मक योगदान की बात सम्मिलित है।

सामाजिक रूप से जिम्मेदार होने के लिए किसी कंपनी को सबसे पहले क्या करना चाहिए?

एक कंपनी को समाज के प्रति जिम्मेदार होने के लिए, पहले तो उन शेयरधारकों के प्रति अपनी जवाबदेही सिद्ध करनी होगी जिन्होंने इस कंपनी में अपने पैसे(शेयरधारक) लगाएं है।

ज्यादातर यह देखा गया है कि CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) को अपनाने वाली कंपनियों ने अपने व्यवसाय में इस प्रकार की वृद्धि कर रखी है, जिसके तहत वह समाज को बहुत कुछ देने में सक्षम हो गए हैं। इसी के साथ यह भी समझ लेना चाहिए कि एक कंपनी जितना ज्यादा समाज के सामने आएगी उसका प्रख्यात और उसके सफल होने के आंकड़े भी उतने ही ज्यादा होंगे।

इससे उस कंपनी के ब्रांड का प्रसार-प्रचार भी हो जाता है और अधिक जिम्मेदारी के साथ उसे , प्रतिस्पर्धा और नैतिक व्यवहारों का समन्वय के निर्धारण करने की आवश्यकता पड़ने लगती है। इस पड़ाव को पार करने के बाद ही किसी कंपनी को जिम्मेदार सामाजिक कंपनी के रूप में माना जा सकता है।

भारत में CSR (CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) का आगमन

कॉर्पोरेट के सोशल responsibility के बारे में मीडिया में कम कवरेज होने के कारण और अगर कवरेज हुआ तो खुद को सुर्खियों और इवेंट के रूप में दिखाने के कारण इसका प्रभाव समाज पर नगण्य रूप में रहा। क्योंकि इसमें व्यक्ति से ज्यादा छवि निर्माण पर जोर दिए जाने के मामले सामने आए।

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए भारत सरकार ने 2013 में कंपनी कानून में संशोधित करके वैधानिक रूप दिया और 2014 में इसे लागू कर दिया। 2013 का संशोधन भारत के कंपनी अधिनियम 1956 के अनुच्छेद 135 में किया गया है। इस संशोधन के तहत औद्योगिक और व्यापारिक जगत के सामाजिक उत्तरदायित्व को निर्धारित करके,उसे वैधानिक करने का प्रयास किया गया है। ऐसे में भारत कॉरपोरेट कंपनियों के लिए CSR को अनिवार्य करने वाला पहला देश बन गया।

इस कानून के प्रावधान के तहत ऐसी कंपनियां

  • जिनकी लागत 500 करोड़ या उससे ज्यादा है और जिन का टर्नओवर 1000 करोड़ या उससे अधिक है इस कानून के अंदर आते है।
  • ऐसी कंपनियां जिन का शुद्ध मुनाफा 5 करोड़ से अधिक है इस कानून के अंतर्गत आते हैं।
  • ऐसे ही विदेशी कंपनियां जिनका ऑफिस या कोई परियोजना भारत में चल रहा हो तो वह भी इस कानून के अंदर आते हैं।

इस कानून के द्वारा प्रत्येक कंपनी में एक CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) कमेटी या बोर्ड बनाए जाने का प्रावधान , जिसमें एक महिला प्रतिनिधि का होना अनिवार्य। इसी के साथ यह भी प्रावधान किया गया है कि कंपनी अपने CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) नीति को सार्वजनिक रूप से घोषित कर प्रदर्शित करे।

CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) कमेटी के कार्य

  • इस समिति का मुख्य कार्य कंपनियों द्वारा बनाए जा रहे नीतियों और कार्यक्रमों को देखना है और उनकी निगरानी करना है।
  • यह समिति यह सुनिश्चित करती है कि पिछले 3 वर्षों के दौरान कंपनी के कुल लाभ का 2%, CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) के रूप में खर्च किया गया है कि नहीं।

2014 के कानून के तहत CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) के जो प्रमुख क्षेत्र तय किए गए हैं, उनको कोई भी कंपनी , पंजीकृत ट्रस्ट या समिति बनाकर या तो निजी रूप में या अन्य कंपनियों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं।

कानून के तहत जो कार्यक्षेत्र निर्धारित किए गए हैं उनमें:- गरीबी-भूख, कुपोषण निवारण, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता अभियान, स्वच्छ भारत कोष, शिक्षा, रोजगार ,कौशल विकास, बच्चों-महिलाओं के कल्याण की योजनाएं, जीविका के अवसर पैदा करना, पर्यावरण संरक्षण , पारिस्थितिकी संतुलन, जैव-पारिस्थितिक, जैविक कल्याण वन संरक्षण, मृदा संरक्षण, वायु जल प्रदूषण, क्लीन गंगा, राष्ट्रीय धरोहर, सार्वजनिक पुस्तकालय, ई-लर्निंग, कंप्यूटर लैब, SC.ST.OBC के हित की योजनाएं तथा ग्रामीण विकास से जुड़ी योजनाओं में CSR कोष का प्रयोग किया जा सकता है। राष्ट्रीय CSR पोर्टल के तहत भारत सरकार के सरकारी कार्यक्रमों में भी योगदान दिया जा सकता है।

CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) बिजनेस के लाभ:-

  1. ब्रांड की पहचान के लिए।
  2. ग्राहक की लॉयल्टी बनाए रखने के लिए।
  3. कंपनी की गुडविल साख निर्माण हेतु।
  4. सामाजिक प्रतिष्ठा बनाने के लिए।
  5. कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने और उनके प्रोत्साहन को बनाये रखने के लिए।
  6. नए ग्राहकों को जोड़ने के लिए।
  7. ग्राहक, विक्रेता और सप्लायर से मजबूत रिश्ता बनाये रखने के लिए।
  8. गला काट प्रतिस्पर्धा में अलग दिखने और समाज से जुड़ने के लिए।
  9. मीडिया में अच्छी छवि और सकारात्मक प्रचार के लिए।

CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) निम्न माध्यमों से किया जाता है

  • कंपनी अपनी समिति बनाकर NGO के माध्यम से, सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों के लिए योगदान कर सकती है।
  • दूसरी कंपनियों के ट्रस्ट या समितियों के साथ मिलकर , समाज के लिए कल्याणकारी योजना चलाना।

प्रमुख CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) जिन्हें कॉर्पोरेट संचालित कर रहा है:-

  1. Tata द्वारा संचालित:- महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, छात्रवृत्ति, खेल।
  2. महिंद्रा एंड महिंद्रा:- स्वास्थ्य, शिक्षा, जीविका कौशल प्रशिक्षण।
  3. अल्ट्रा सीमेंट:- मेडिकल कैम्प, स्वच्छता, टीकाकरण, पौधरोपण, जल संरक्षण।
  4. इंडिया टुडे:- क्लीन टॉयलेट, महिला सशक्तिकरण।
  5. TOI:- टीच इंडिया।
  6. Tata steel:- SC-ST छात्रों के लिए स्कूल कम कोचिंग में योगदान
  7. ITC:- EDUCATION.
  8. रिलाइंस:- धीरूभाई अंबानी छात्रवृत्ति, दिव्यांग बच्चों की शिक्षा, इंफोसिस एजुकेशन।
  9. Bajaj auto:- शिक्षा संस्थानों में योगदान।
  10. Samsung India:- स्मार्ट क्लासेस।
  11. विप्रो:- शिक्षा, स्वास्थ्य, कला संस्कृति, ग्रामीण विकास।

2014 के CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) कानून में कई खामियों के चलते कॉर्पोरेट कंपनियों ने 2 फीसद राशि को खर्च नहीं किया और उसका फायदा उठाया। मीडिया में आए खबरों के अनुसार 2015 से 2018 के बीच 37% कंपनियों के द्वारा, अपने मुनाफे के 2% से कम खर्च किया गया है और इसमें सकारात्मक रूप से टाटा, विप्रो और इंफोसिस आगे रहे है।

ऐसे में सरकार ने इस विषय पर संज्ञान लेते हुए सन 2019 में इस कानून में दोबारा संशोधन किया और इस संशोधन में CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) का उल्लंघन करने वाले कंपनियों के लिए जुर्माना और सजा का प्रावधान किया गया। पर समय के साथ साथ CORPORATE SECTOR ने CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) को खर्च करने का रास्ता निकाल लिया है, अब वे अपने ही TRUST , NGO आदि संस्थाओं के साथ मिलकर इस राशि को खर्च कर रहे हैं यानी अगर सीधे कहा जाए कि ज्यादातर कॉर्पोरेट सेक्टर बाहर के बजाय अपने घर में ही राशि को खर्च कर रहे हैं तो गलत नहीं होगा।

CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) और मीडिया का संबंध

मीडिया (mainstream) केवल एक माध्यम है, खबर को बताने का, उसका निदान क्या हो सकता, क्या कर सकते है जैसे आदि मुद्दे को सुलझाने के लिए। पर अंतिम कार्य उस संबंधित विभाग का ही होता है, जिससे संबंधित मीडिया ने आवाज उठाई है। इस प्रकार से Corporate Social responsibility के तहत मीडिया की संबंध निम्नलिखित रूप से अहम हो जाती है:-

  1. सामाजिक दायित्व के रूप में
  2. उदाहरण कैसे स्थापित हो
  3. जागरूकता
  4. मुनाफे से परे
  5. स्वयं सेवकों की तलाश में मदद
  6. जवाबदेही और पारदर्शिता
  7. ग्रीनवाशिंग न होने देना
  1. कारपोरेट सेक्टर जब सामाजिक दायित्व के तहत अपने को आगे लाता है तो उसको ज्यादा जानकारी नहीं होती कि वह कैसे और किस रूप में अपने दायित्व का निवेश करे, ऐसे में मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसे देश की स्थित का पता होता है, उसे ये भी पता होता है कि कौन सी समस्या या कौन से कारण समाज के कमी की ओर दिखाते हैं। इस माध्यम क् पक्ष लेकर कॉर्पोरेट कंपनियां अपने सामाजिक दायित्व को किस फील्ड में लगाने की जरूरत है सही रूप में समझ सकते है।
  2. कॉर्पोरेट कंपनियां जो कार्य समाज मे कर रहे हैं उसका अन्य कंपनियों के लिए उदाहरण कैसे स्थापित हो ताकि अन्य कंपनियां भी आगे आए और उनसे संबंधित ब्रांड को लोग सकारात्मक रूप में देख सकें। ऐसे में मीडिया का साथ लेकर ये अपने द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रम, यह कार्यक्रम अन्य से कैसे अलग है या आज उसकी आवश्यकता क्यों है आदि को मीडिया की मदद से लोगों तक पहुँचा कर उदाहरण स्थापित कर सकते हैं।
  3. जागरूकता:- कॉरपोरेट द्वारा जो समाज के लिए कार्यक्रम या अभियान चलाए जा रहे हैं उसके प्रति मीडिया अपने चैनलों अखबारों में बता सकती है ताकि लोग उस कार्यक्रम के करने के पक्ष को और अभियान के प्रयोजन को समझ सके और उसमें जागरूकता के साथ सम्मिलित हो सके। उदाहरण के लिए अगर कोई कॉरपोरेट सेक्टर पोलियो के लिए जागरूकता अभियान चला रहा है, पर उसका, किसी को अगर पता नहीं है तो वह कार्यक्रम ऐसे में असफल हो होने की संभावना से भर जाता है, ऐसे में मीडिया लोगों को इसके संदर्भ में जानकारी देकर सामाजिक दायित्व के रूप में किये जा रहे कार्य के निर्वहन और जागरूकता को सकारात्मक मोड़ दे सकती है।
  4. मुनाफे से परे:- कॉरपोरेट सेक्टर बेशक सामाजिक दायित्व निभा रहा हो, पर तभी उसकी मना स्थिति यही होती है कि वह इससे लाभ कैसे कमाए, ऐसे में कई बार कॉरपोरेट कंपनी जो कि सामाजिक दायित्व के क्षेत्र में एक मोटिव के साथ उतरी हुई है पर खतरे की संभावना उभरने लगती है, बेशक CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) कमेटी का निर्माण इनके द्वारा अपने विभाग में किया गया हो, पर मीडिया के तीखे तेवर और कार्यरूपता के कारण चाहे या न चाहते हुए भी अपने को मुनाफे से दूर रखना पड़ता है, हाँ, एक बात यह स्पष्ट है कि बेशक कंपनी यहाँ से मुनाफा न कमाए पर उनके कंपनी के प्रति लोगों की ब्रांड वैल्यू बढ़ने की संभावना इसमें हमेसा रहती है।
  5. स्वयंसेवकों की तलाश में मदद:- यह आम जीवन में भी देखा गया है कि कई बार लोग दूसरों की मदद करना चाहते हैं पर श्रम की कमी और लोगों तक कि पहुँच की कमी के कारण वे अपने इस अभियान को पूरा नहीं कर पाते, ठीक ऐसे ही कई बार कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ भी हो सकता है। जिस कमी को दूर करने के लिए मीडिया उससे संबंधित प्रचार या प्रसार कर सकती है और ऐसे लोगों से आवाहन कर सकती है इस कंपनी के अभियान से जुड़ने के लिए जो स्वयं से मदद करना चाहते है।
  6. जवाब देही और पारदर्शिता:- यह कॉरपोरेट्स कंपनियों और मीडिया का एक महत्वपूर्ण संबंध है, क्योंकि किसी भी संस्थान में जब तक जवाबदेही और पारदर्शिता नहीं होती तब लोग कई बार उसके संबंध में गलत अवधारणा भी बना लेते हैं ऐसे में संबंधित क्षेत्र या विभाग को नुकसान भी हो सकता है। इसी के साथ यह भी प्रश्न उठता है कि अगर कोई कॉर्पोरेट कंपनी अपने को इससे संबंधित बता रही है, तो क्या इसके सारे तथ्य या कुछ तथ्य गलत या सही नहीं हो सकते। पर इन सब को जानने के लिए गहरे शोध और वित्त की आवश्यकता भी होती है। ऐसे में मीडिया का कार्य होता है कि वह इनके द्वारा किये जा रहे कार्य को निष्पक्ष रूप से सामने लाए, और उनके द्वारा किये गए या किये जा रहे कार्यो में, किस प्रकार से प्रभाव पड़ रहा है और अभी इसकी स्थित क्या है लोगों के समक्ष रख सकें। इससे कंपनियों में सामाजिक दायित्व से संबंधित अगर कोई झोल हो रहा है तो उसका भी पर्दाफाश हो सकता है।
  7. ग्रीनवाशिंग:- यानी केवल डंका पीट देना पर कुछ न करना। आज मीडिया के सजग प्रयास से इसमें बहुत कमी आयी है पर फिर भी अगर ऐसा हुआ या होने की संभावना हुई तो मीडिया उस कंपनी को ऐसा न करने के लिए आगाह कर सकता है और बात न मानने पर उसका भंडाफोड़ सबूतों और तथ्यों के साथ कर सकता है और उसे कानूनी कटघरे में भी ला सकता है।

निष्कर्ष

भारत मे CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) कानून, कंपनियों द्वारा समाज के निचले स्तर के कल्याण को बढ़ावा देने के साथ-साथ कंपनियों और सरकार दोनों के लिए सकारात्मक रूप से किया जाए तो लाभकारी हो सकते हैं। CSR(CORPORATE SOCIAL RESPONSIBILITY) में खर्च होने से जहाँ एक तरफ लोगों के कल्याण के लिए, होने वाले खर्च से सरकार को भी राहत मिलती है।

वहीं लोगों के मन मे उस कंपनी के प्रति एक अच्छी इमेज उभर कर सामने आ सकती है। इससे, एक प्रकार से कंपनियों को अपने ब्रांड के प्रति लोगों की विश्वसनीयता मिल सकती है और उस ब्रांड को बेचना आसान हो सकता है।

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