मातृभाषा
निर्झर किंचित की स्वरों से ,
एक आस सी मन में रहती है ,
संकल्प शक्ति की यह भावना ,
निज भाषा से रहती है !
लेकर यह अदम्य कल्पना ,
खुद को खुद पहचाना ,
अस्मितभाव की व्यंजना से ,
काव्य क्रंदन प्रति पल पाया !
निर्झर किंचित की स्वरों से ,
एक आस सी मन में रहती है,
संकल्प शक्ति की यह भावना ,
निज भाषा से रहती है !
उस असीम की करुण वेदना ,
अपने ही घर को लिये है ,
कलरव करते नव सभ्यता में ,
खुद को खोये खोये है !
निर्झर किंचित की स्वरों से ,
एक आस सी मन में रहती है
संकल्प शक्ति की यह भावना ,
निज भाषा से रहती है!
यह कविता विवेकानंद पांडेय द्वारा लिखी गई है|
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Thank you sir!