Category: कविता और शायरी

कविता और शायरी

लौ

लौ (लौ)..एक खाली गोद ,और एक सामाजिक धब्बा,क्यों बनती हैं वो अकेली इसदुर्भाग्य का हिस्सा?? कुछ मिचलन और उबकाई ,मानो कुछ आशाएं दे जाती हैं। फिर तेज धडकने,उम्मीदों से चमकती…

प्रेमाग्रह

प्रेमाग्रह सुनो! नई दिल्ली की पुरानी मकान की तरह हो तुम आधुनिकता की लंपट चुने,प्लास्टर, रंगों से एकदम दूर औरों की तरह मुझे किराएदार नही बनना है तुम्हारा, ना ही…

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