ईश्वर के अनुयायी हमारे राजा स्वर्ग के समान शासन करेंगे... (1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के मौके पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल(SENGOL) सौंपते हुए उस वक्त के तमिल संत तिरुज्ञान संबंदर रचित इस श्लोक का उच्चारण किया गया था.)
संसद के नए भवन का उद्घाटन कल यानी 28 मई 2023 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत इस संसद का उद्घाटन किया गया है. इस नए संसद भवन का निर्माण, 10 दिसंबर 2020 को मोदी के आधारशिला रखने के साथ शुरू होकर कल इसके उद्घाटन के साथ ही इस प्रोजेक्ट का कार्य भी पूर्ण हो गया.
बता दें कि, कल नए संसद के उद्घाटन में उन्हीं तमिल पीठ के विद्वान उपस्थित थे, जिस पीठ के विद्वानों ने वर्ष 1947 में, अंग्रेजों से भारत की सत्ता भारत के हाथों में सौंपने में अहम भूमिका निभाई थी और पंडित नेहरू को सेंगोल के रूप में भारत का शासन सौंपा था.
अब आईए जानते हैं कि सेंगोल(SENGOL) परंपरा क्या है?
सेंगोल (SENGOL) परंपरा एक बहुत पुरानी परंपरा है जिसे एक राजा अपने राज्य के उत्तराधिकारी को सत्ता सौंपते या फिर सत्ता हस्तांतरण करते हुए दी जाती थी, एक प्रकार से कहा जाए तो यह राजदंड के रूप में जानी जाती थी. परंतु इतिहासकारों के बीच इसके परंपरा के शुरुआत को लेकर मतभेद है, मसलन, कुछ इतिहासकार सेंगोल परंपरा को चोल काल से जोड़ कर देखते हैं तो वहीं कुछ इतिहासकार इसे मौर्य काल की परंपरा मानते है.
वहीं इस परंपरा को आगे बढ़ाने में गुप्त, चोल और विजयानगर साम्राज्य ने भी योगदान दिया. मुगलों और अंग्रोजों के औपनिवेशिक काल में भी इसका उपयोग देखने को मिलता है.
मुख्य बिंदु
- प्राचीन भारत में विशेषकर यह परंपरा दक्षिण के गुप्त और चौल सम्राज्य में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता था.
- इसके अंतर्गत एक शासक अपने उत्तराधिकारी को एक छड़ दंड जिसे राज दंड के रूप में भी जाना जाता है सौंपता था जिसके बाद आधिकारिक रूप से वहाँ का शासक राज दंड प्राप्त करने वाला व्यक्ति वहाँ का राजा बन जाता था.
- सेंगोल(SENGOL) या कहें राज दंड समृद्द के साथ-साथ निष्पक्षता और न्याय प्रिय शुभकामनाओं का प्रतीक है.
- सेंगोल के रूप में शासन के दंडाधिकारी का प्रतीक, जिसमें नंदी को न्याय के रक्षक का प्रतीक मानते हुए , समृद्ध और ऐश्वर्य की प्रतीक भगवान विष्णु की भार्या माँ लक्ष्मी के ऊपर का स्थान दिया गया है. जिसमें एक तरफ राज्य की खुशहाली की भावना सम्मिलित है तो वहीं दूसरी तरफ अमीर-गरीब के भेदभाव के बिना निष्पक्ष न्याय की चिन्ता एक शासक करे. यह बात हर वक्त याद दिलाने का कार्य करता था… सेंगोल(SENGOL).
इतिहासकारों में इस मतभेद का कारण यह भी है कि, बाद के कालों में सेंगोल(SENGOL) परंपरा को मिट्टी में दबा दिया गया. ऐसे में बहुत सारे लोगों समेत, इतिहासकारों को भी इसके शुरुआत की सटीक जानकारी नहीं है. ऐसे में कहा जा सकता है कि कल उद्घाटन के दौरान सेंगोल की परंपरा को एक बार फिर जीवित किया गया है.
सेंगोल(SENGOL) का अर्थ क्या है?
सेंगोल के अर्थ को समझे तो इसका अर्थ, संपदा से संपन्न होने से है. सेंगोल को सत्ता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है. इसे स्पीकर के ठीक बगल में रखा गया है. वर्ष 1947 में सेंगोल को भारत के आजादी के रूप में प्राप्त करने पर नेहरू जी ने इसे बाद में प्रयागराज( पहले इलाहाबाद) के संग्रहालय में रखा गया था. जिसे सात दशकों के बाद नए संसद में स्थापित किया गया है.
अब इलाहाबाद संग्रहालय ने, मूल सेंगोल(SENGOL) के प्रतिरूप को बनाने आदेश दिया जा चुका है जिसे संग्रहालय में आदर और सद्भाव की दृष्टि से रखा और देखा जाएगा.
सेंगोल छड़ को किस धातु से निर्मित किया गया है?
सेंगोल छड़ को सोने और चाँदी जैसे कीमती धातु की परतों से बनाया गया है. जिसमें अंदर चाँदी और बाहर से सोने की परत को चढ़ाया गया है. पहले के समय में यह राजा के प्रभुत्व और अधिकार के प्रतीक को दर्शाता था.
इस वीडियो के माध्यम से आप सेंगोल(SENGOL) को समझ सकते हैं…..
14 अगस्त 1947 को सेंगोल से सत्ता का हस्तांतरण
- सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण के रूप में माउंटबेटन ने भरत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था.
- सेंगोल को सौंपते ही औपचारित रूप से अंग्रेजों ने सत्ता का हस्तांतरण भारतीयों के हाथों कर दिया.
ऐसा माना जाता है कि नेहरू जी को इस परंपरा के बारे में जानकारी नहीं थी. ऐसे में उन्होंने चक्रवर्ती राजाजी राजगोपालाचारी और अन्य विद्वानों से बात करके इस परंपरा को विस्तार से समझा और जाना. जिसके बाद सेंगोल को तमिल से मगाया गया. 14 अगस्त 1947 की रात को पौने 11 बजे के लगभग इस छड़ के नेहरू को सौंप दिया गया.
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