thaimasaj

थाईलैंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए तो प्रसिद्ध है ही, लेकिन उसकी सबसे अनूठी पहचान “थाई मसाज” है। यह केवल एक विश्रामदायक अनुभव नहीं, बल्कि चिकित्सा की एक प्राचीन और वैज्ञानिक विधा है, जिसका इतिहास लगभग ढाई हजार वर्षों पुराना है। थाई मसाज की जड़ें भारत की योग और आयुर्वेद पद्धतियों से जुड़ी हैं और इसका विकास बौद्ध धर्म की चिकित्सा परंपराओं से हुआ है।

थाई मसाज की उत्पत्ति: बुद्ध काल से चिकित्सा का सफर

थाई मसाज की शुरुआत महात्मा बुद्ध के युग में मानी जाती है। इसे थाई भाषा में “नुआद थाई” कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है “थाई स्पर्श”। यह आयुर्वेद, हठ योग, एक्यूप्रेशर और रिफ्लेक्सोलॉजी का सम्मिलन है। मसाज के इस रूप ने लोगों के शारीरिक और मानसिक संतुलन को बेहतर बनाने में सहायक भूमिका निभाई है।

डॉक्टर शिवगो: थाई मसाज के जनक

थाई मसाज के जनक माने जाने वाले डॉक्टर शिवगो (Shivago Komarpaj), जिनका मूल नाम “जिवागा कुमार भच्छ” था, भारत के प्राचीन राज्य मगध के निवासी थे। वे महात्मा बुद्ध के निजी चिकित्सक और मित्र थे। उनका चिकित्सा ज्ञान, विशेषकर योग और आयुर्वेद में गहरी समझ, थाई मसाज की नींव बना।

डॉक्टर शिवगो ने एक ऐसी मसाज तकनीक विकसित की जो शरीर की मांसपेशियों, नसों और ऊर्जा केंद्रों पर काम कर सकें। बाद में यह विधा थाईलैंड के बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से जन-जन तक पहुंची।

किसानों से शुरू हुआ थाई मसाज का स्थानीय उपयोग

थाईलैंड की कृषि-प्रधान संस्कृति में थाई मसाज का आरंभ सामान्य किसानों की मांसपेशीय थकावट को दूर करने के लिए हुआ। लंबे समय तक खेतों में काम करने के बाद किसान इस मसाज से शारीरिक राहत पाते थे। यह ज्ञान उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक और चित्रात्मक रूपों में दिया गया। बैंकॉक के वाट फो मंदिर में इसके प्राचीन चित्र आज भी इस परंपरा की पुष्टि करते हैं।

क्षेत्रीय विविधताएं और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

थाईलैंड के विभिन्न हिस्सों में समय के साथ थाई मसाज के भिन्न-भिन्न रूप विकसित हुए। इन पर भारत, चीन, म्यांमार और तिब्बत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का भी प्रभाव पड़ा। इस मसाज में तेल या क्रीम का प्रयोग नहीं होता, और व्यक्ति पूरे कपड़ों में फर्श पर लेटता है।

थाई मसाज में हाथों के अलावा पैरों, घुटनों और कोहनियों का उपयोग किया जाता है जिससे शरीर के अंदरूनी हिस्सों तक असर होता है। यह दर्द नहीं देता बल्कि तनाव कम कर शरीर को ऊर्जा से भर देता है।

थाई मसाज की प्रक्रिया: योग, ऊर्जा और उपचार का संगम

थाई मसाज केवल मांसपेशियों को दबाना नहीं है, यह शरीर की ऊर्जा रेखाओं (सेन लाइन्स) को सक्रिय करता है। इसमें खींचाव, संपीड़न (compression) और विशिष्ट बिंदुओं पर दबाव (pressure point work) के माध्यम से शरीर को भीतर से शुद्ध किया जाता है।

यह प्रक्रिया हठ योग से प्रेरित है, और इसमें शामिल मुद्राएं शरीर की लचीलापन, रक्त संचार और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं।

थाई मसाज को यूनेस्को की मान्यता

2019 में थाई मसाज को यूनेस्को ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) के रूप में मान्यता दी। इसे “नुआद बो-रान” के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “प्राचीन उपचार कला”।

इस अंतरराष्ट्रीय मान्यता ने इसे वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई और इसके संरक्षण के लिए नए रास्ते खोले। थाईलैंड सरकार ने थाई मसाज प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना कर इस परंपरा को संरक्षित रखने की दिशा में कदम उठाए।

थाई मसाज का वैश्विक प्रसार

1906 में थाईलैंड में थाई मसाज का पहला प्रशिक्षण केंद्र खुला। आज यह चिकित्सा विधा अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अनेक देशों में लोकप्रिय हो चुकी है। बैंकॉक और पटाया जैसे शहरों में तो यह पर्यटन का विशेष आकर्षण बन चुकी है।

तनाव, सिरदर्द, नींद की समस्या, गठिया, और पीठ दर्द जैसी समस्याओं में थाई मसाज को लाभकारी माना गया है। यही कारण है कि यह मसाज चिकित्सा और वेलनेस इंडस्ट्री का अभिन्न हिस्सा बन गई है।

योग और आयुर्वेद का जीवंत रूप: थाई मसाज

थाई मसाज दरअसल योग और आयुर्वेद का मूर्त रूप है। इसमें जहां एक ओर शारीरिक मुद्राएं शरीर को संतुलित करती हैं, वहीं दूसरी ओर दिमाग और आत्मा को शांत करती हैं। यह केवल उपचार नहीं, बल्कि शरीर और आत्मा के बीच समरसता बनाने का मार्ग है।

सामाजिक और आध्यात्मिक महत्त्व

थाई मसाज थाईलैंड में केवल चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा भी है। बौद्ध भिक्षु इसे ध्यान और तपस्या का भाग मानते हैं। इसे आध्यात्मिक जागरूकता और करुणा के अभ्यास के रूप में भी देखा जाता है।

निष्कर्ष: डॉक्टर शिवगो की विरासत और वैश्विक पहचान

थाई मसाज का इतिहास एक ऐसी परंपरा का गवाह है जो भारत की प्राचीन चिकित्सा और बौद्ध धर्म के मेल से उत्पन्न हुई। डॉक्टर शिवगो की इस देन ने थाईलैंड को एक नई वैश्विक पहचान दी है।

आज यह मसाज स्वास्थ्य, राहत और आध्यात्मिक संतुलन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनाई जा रही है। थाई मसाज केवल एक चिकित्सा प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है – शांति, सहानुभूति और संतुलन की।

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