
वैश्विक स्तर पर मौजूद सूचना तंत्र ग्लोबल मीडिया कहलाता है। ज्यादातर लोगों को इन मुद्दों के बारे में अखबारों, पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन, और वर्ल्ड वाइड वेब की रोजमर्रा के समझ से बनती है, जिस तरह से डिजिटल व ऑनलाइन सूचना तंत्र का प्रसार हो रहा है, उससे इसमें नैतिकता व सर्वमान्य शिष्टाचार का बंधन भी आवश्यक होता है। सूचना और संचार के क्षेत्र में डिजिटल बदलाव की प्रक्रिया से वैश्विक लोकतंत्र पर मीडिया का प्रभाव आजकल और भी ज्यादा हो गया है। सूचना संचार के वैश्विक नेटवर्क विचार विमर्श के लिए डिजिटल पब्लिक स्पेस स्फीयर के लिए साधन मुहैया कराते हैं। ग्लोबल मीडिया से अनेक प्रकार की अपेक्षाएं की जाती हैं, वेबसाइट, ब्लॉक, ट्विटर, एस एम एस, यु ट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप समेत कई प्लेटफार्म इन अपेक्षाओं को पूरी करते हुई भी दिखाई देते हैं। आज लोग इन प्लेटफार्म के माध्यम से अपने विचारों को साझा कर रहे हैं, यह सूचना दुनिया भर के लोगों तक पहुंचती है जिससे निरंतर सूचना का प्रवाह होता रहता है।
ऐसे में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब सूचनाओं की मात्रा बढ़ती है तो उसकी गुणवत्ता घटती जाती है, क्योंकि ज्यादा सूचनाओं की गुणवत्ता को बनाए रखना बेहद ही जटिल कार्य है और इस समय यह भी ध्यान रख पाना मुश्किल होता है कि वर्ल्ड लेवल पर ऐसी सूचनाएं प्रेषित की जा रही हैं।
सूचना ने विश्व को दो भागों में बांट दिया है। एक और विकसित तो एक तरफ विकासशील देश। विकसित देशों में मीडिया सरकार की विस्तार वादी नीतियों का समर्थन करती है। सरकार की कमियों को कम दिखाती है, अपने देश की अखंडता, एकता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए सदा तैयार रहती है, उदाहरण के लिए जब अमेरिका में 9/11 का हमला हुआ था, तब अमेरिका मीडिया ने बेहद कम उस हमले के बारे में बताया। वही बात करें भारत की तो जब मुंबई में 26/11 हमला हुआ था, तुम मीडिया ने काकी कवरेज किया था। जबकि ऐसा करने से देश की एकता अखंडता और संप्रभुता पर होने वाला खतरा और भी बढ़ जाता है क्योंकि न्यूज़ चैनल दुनिया भर में देखे जाते हैं, तो ऐसा होने की पूरी संभावना रहती है की, जिसने इस हमले को करवाया है वह इस समाचार को पाकर इससे भी ज्यादा बड़ा कदम उठाने की कोशिश कर सकता है।
वैश्विक अधिकार सभी के लिए एक सामान्य है परंतु सूचना में विविधता होने के कारण विकासशील देशों के नागरिकों के अधिकारों का हनन होता आ रहा है, इसलिए विकासशील देशों की मीडिया को अपने अधिकारों के हनन के खिलाफ सख्त रूप से आवाज उठानी चाहिए। वैश्विक सूचना प्रवाह को विविधता से बचाने के लिए बेशक विकसित देश प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विकासशील देशों के पत्रकारों के कौशल निर्माण में सहायता करने का प्रयास करते हैं, पर इससे भी इन्हीं विकसित देशों का लाभ होता है, जिसका कारण तकनीकी कमी को कहा जा सकता है।
आज मौजूदा मीडिया परिदृश्य की केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण की प्रक्रियाएं एक साथ चल रही हैं। एक तरफ तो नई प्रौद्योगिकी और इंटरनेट ने किसी भी व्यक्ति विशेष को, अपनी बात पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक पहुंचाने के लिए एक साधन दे दिया है, तो दूसरी और मुख्यधारा की मीडिया में केंद्रीकरण की प्रक्रिया भी तेज हो गई है। पूरी दुनिया और लगभग हर देश के अंदर मीडिया शक्ति का, केंद्रीकरण हो रहा है। मीडिया का आकार बड़ा होता जा रहा है, तो दूसरी ओर इस पर स्वामित्व रखने वाले संगठनों या कारपोरेट की संस्थाएं कम होती जा रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में या प्रक्रिया और तेजी से चली है। अनेक बड़ी मीडिया कंपनियों ने छोटी मीडिया कंपनियों पर कब्जा जमा लिया है। इसके अलावा कई बड़ी कंपनियों के बीच विलेज से मीडिया और सत्ता एकजुट होते जा रहे हैं। इसी वजह से मीडिया में राजनीतिक मुद्दों की भरमार होती जा रही है। जिसके कारण सूचना भी प्रभावित हो रही है और मीडिया केवल सरकार के पक्ष में मुद्दों को ज्यादातर उजागर करती हुई दिख रही है।
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