संपादकीय लेखन

संपादकीय लेखन और उनका आयोजन.….’संपादकीय’ का सामान्य अर्थ है समाचार पत्र के संपादक के अपने विचार, जिसमें संपादक प्रत्येक दिन ज्वलंत विषयों पर अपने विचार व्यक्त करता है। संपादकीय लेख समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत करता है। संपादकीय के लिए संपादक स्वयं जिम्मेदार होता है। अतः संपादक को चाहिए कि वह इस लेख में संतुलित टिप्पणियों को ही प्रस्तुत करे।

संपादकीय लेखन और उनका आयोजन

संपादकीय में किसी घटना पर प्रतिक्रिया हो सकती है तो किसी विषय या प्रवृत्ति पर अपने विचार हो सकते हैं, इसमें किसी आंदोलन की प्रेरणा हो सकती है या कहें तो किसी उलझी हुई स्थिति का विश्लेषण भी हो सकता है।

संपादकीय लेख प्रचलित समाचार का आइना होता है। प्रभावोत्पादक होने के लिए उसे सामयिक, संक्षिप्त और मनोरंजक होना चाहिए। (संपादकीय लेखन और उनका आयोजन)

प्रत्येक समाचार पत्र उसी प्रकार के संपादकीय लेख प्रकाशित करता है, जिस श्रेणी से उसके पाठक संबंधित होते हैं। लेकिन इन सभी प्रकार के समाचार पत्रों के संपादकीय लेखों में एक सामान्य विशेषता यह होती है कि वे सरल भाषा मे लिखे गए हों और उनका स्वर संयमित हो तथा उनमें व्यक्तिगत आलोचना नहीं होती हो।

संपादकीय लेख लिखते समय बुराई को, बुराई करने वाले व्यक्ति से अलग कर के देखना चाहिए और इसी के साथ तथ्यात्मक और तटस्थता का भी ध्यान रखा जाता है। (संपादकीय लेखन और उनका आयोजन)

जटिल तथा पेचीदगियों से भरी भाषा शैली से हमेशा ही दूर रहना पड़ता है। कठोर से कठोर विचारों को भी सरल भाषा मे अभिव्यक्ति करना ही संपादकीय लेख का महत्वपूर्ण कार्य होता है।

इसी के साथ यह भी ध्यान रखा जाता है कि संपादकीय लेख के लेखक अपने ज्ञान का प्रदर्शन इसमें न करें बल्कि वे लेख को सीधे-साधे और आकर्षक ढंग से लिखें। जिससे पाठक यह समझ सके कि संबंधित लेख में क्या लिखा गया है और उसके कहने का तात्पर्य क्या है। (संपादकीय लेखन और उनका आयोजन)

संपादकीय लेखन संपादन कला का एक सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक दस्तावेज होता है क्योंकि प्रत्येक समाचार पत्र या पत्रिका के कुछ ऐसे मूलभूत सिद्धांत होते हैं जिनका पालन नीति निर्देशक तत्वों के रूप में प्रत्येक संपादकीय संपादकीय लेखक को अनिवार्य रूप से करना होता है। फिर भी समाचार पत्र की सीमा और स्थान के अनुरूप प्रत्येक संपादक के संपादकीय लेखक अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र होता है।

सामान्यतः संपादकीय लेखन उसके लेखक के स्वभाव, रुचि एवं चरित्र की झलक प्रस्तुत करता है और उसके साथ ही उसकी अध्ययनशीलता एवं ज्ञान की बहुआयामिता का परिचय भी देता है क्योंकि समाचार पत्र के नीति के अनुपालना के साथ-साथ समसामयिक घटना चक्र के विविधता का नीति सम्मत निरूपण, संपादक के विवेक कौशल पर आधारित रहता है।

संपादकीय लेखन में लेखक के लिए यह आवश्यक होता है कि, विषय का अपने ढंग से प्रतिपादन और प्रभावशाली बनाने के साथ-साथ उसे हर तरफ से संपन्न रूप में प्रस्तुत करे। (संपादकीय लेखन और उनका आयोजन)

एक संपादकीय लेखक (संपादकीय लेखन और उनका आयोजन) को यह भलीभांति जान लेना आवश्यक है कि, उसके लेखन का आखिर लक्ष्य क्या है और वह किसी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए अपने बात को प्रभावी ढंग से कैसे रखे? ऐसे प्रत्येक स्थितियों या घटना के मूल्यांकन को सही ढंग से पूर्ण करने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखता है जो कि निम्नलिखित हैं:-

घटना की जानकारी(भूमिका)।

घटना की व्यवस्था, घटना की पूर्वापर(आगे-पीछे, ऊँच-नीच) स्थिति का उल्लेख, परिणामो से शिक्षा और सतर्कता (विषय-विश्लेषण का क्षेत्र)

स्थिति के वास्तविकता को समझना, मार्गदर्शन करना या मंच प्रदान करना (निर्देशन)।

निराकरण(अलग करना) की प्रेरणा, परिणामो की भावी स्थिति का संकेत (निष्कर्ष)।

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