INDIAN PRESIDENT (15TH) DRAUPADI MURMU

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देश की पंद्रहवीं राष्ट्रपति(INDIAN PRESIDENT ) बनने जा रहीं द्रौपदी मुर्मू जी को बधाई।।

BY ALOK KUMAR MISHRA

पंक्ति में शायद सबसे पीछे खड़े तबके की महिला अगर देश के शीर्ष पद पर आए तो यह जीवंत लोकतंत्र का यथार्थ प्रमाण है। लेकिन, बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि इससे क्या होगा? एक दलित के राष्ट्रपति बनने से कितना भला हुआ दलितों का जो आदिवासी के राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों का होगा?

हो सकता है सरकार के इस निर्णय में राजनीति को साधने की कोशिश हो और ऐसा विचार रखने वाले के मंतव्य का मैं सम्मान करता हूं क्योंकि हिदायतुल्ला, ज़ाकिर हुसैन, जैल सिंह, नारायणन आदि महामहिमों के समय कितना उनके वर्गों का विकास हो पाया था?

पिछले दिनों कोविंद जी के यहां परौंख की खबरें आती थीं, मैंने देखा कि कैसे राष्ट्रपति के दौरे से कुछ दिन पूर्व गांव में दौरे होने लगते हैं, टूटी सड़कें जोड़ दी जाती हैं।अभी भी गांव में कुछ आधारभूत सुविधाएं ही विकास के नाम पर जुड़ पाईं हैं। निःसंदेह अब परौंख को कोई पूछने तक नहीं जायेगा। कानपुर रेंज के आईजी और कमिश्नर जैसे उस गांव के बुजुर्गों के साथ जाकर बैठते थे क्या अब बैठेंगे??

खैर,ये कड़वी सच्चाई है जिसे हम नकार नहीं सकते हैं। राजनीति (उस अर्थ में जिसमें आजकल लोग समझते हैं)होती आई है और नियति है देश की होती रहेगी।

एक तरफ़ आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बनने से खुश हूं कि राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा लोकतंत्र में किसी में भी सामर्थ्य है शीर्ष पद पर जाने का और इस सरकार ने कुछ मौकों पर इसे सिद्ध भी किया है आप हालिया पद्म पुरस्कारों की सूची देख लीजिए ऐसे- ऐसे विभूति मिलेंगे जो चप्पल तक नहीं जुटा पाए या नहीं पहनते , गुमनाम थे कहीं अपने कर्त्तव्य बोध में ,आज उनको देश जान रहा है। सरकार की आलोचना करिए , कई मौकों पर करिए हालिया समय में महंगाई और रुपए के गिरते मूल्य पर करिए लेकिन अंधभक्ति और अंधविरोध न करिए।

क्या मुर्मू जी के राष्ट्रपति बनने से कोई भी सकारात्मक चीज़ नहीं हुई? देख रहा हूं स्वघोषित बुद्धिजीवी लोग पानी पी-पी कर आलोचना करने में लगे हैं । अरे, इस नाते तो सकारात्मक होइए कि एक महिला वो भी आदिवासी तबके से राष्ट्रपति बनी है।।

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मैं कल से पहले मुर्मू जी को एक राज्यपाल के रूप में ही जानता था। कल पढ़ने का मौका मिला तो मैंने इनके बारे में जाना कैसे निरंतर अपने बच्चों को खोते,अपने पति को खोने पर भी आप टूटीं नहीं हर बार खड़ी हुईं दोगुनी ऊर्जा के साथ। हर सुबह तीन बजे उठकर योग, ध्यान के माध्यम से अपनी दिनचर्या की शुरुआत करती हैं। सोचिए जरा ,लड़की वो भी आदिवासी समाज की सत्तर के दौर में कितना मुश्किल रहा होगा उड़ीसा में गांव से शहर में जाकर पढ़ना, अपने जिद से नियति को भी मात देना और इसका सम्मान देश ने आपको शीर्ष पद पर बैठा कर दिया है।

दरअसल, लोग आज जिस चिंता से डर रहे हैं उनको कुछ बुनियादी चीजें समझने की जरूरत है हमनें जिस शासन व्यवस्था को अपनाया है वह लोकतंत्रात्मक गणराज्य की व्यवस्था है; जिसमें वास्तविक शक्तियां सीधे जनता से चुनी हुई साकार में होती हैं और राष्ट्र के प्रमुख को मंत्रिपरिषद के ‘एड एंड एडवाइज’ पर काम करना होता है । हां, संविधान में महामहिम और राज्यपाल को जरूर कुछ शक्तियां मिली हैं जहां वह स्वविवेक से निर्णय लेता है और कई लोगों ने इसे सिद्ध भी किया, आप इसे जैल सिंह के पॉकेट विटो, मुर्मू जी के झारखंड में राज्यपाल रहते कुछ निर्णयों के माध्यम से समझ सकते हैं।।

जो भी हो हम उम्मीद के अलावा क्या कर ,रख सकते हैं ?

उम्मीद करेंगे की आपके राष्ट्रपति बनने से हमें पुनः अपने पूर्वजों (आदिवासियों) से और जुड़ने का मौका मिले, उनके वनाधिकारों को संरक्षण मिलेगा, ट्राइफेड अब दुगुनी ऊर्जा से कार्य करते हुए इनके उत्पादों को वैश्विक पटल पर लाकर जैविक और स्वदेशी का प्रतीक बनेगा, आदिवासी हमें पुनः प्रकृति से जोड़ेंगे, जलवायु परिवर्तन को साधने में सर्च लाइट दिखाएंगे क्योंकि हम अंधे हो चुके हैं विकास की अंधी दौड़ में।

एक और चीज़ जो मुझे खटकती है हम कहते हैं कि वो विकास रास्ते में पीछे छूट गए हैं असल में उन्होने ही प्रकृति को बचाए रखा है, हम ही शायद कहीं भटक गए जो अब नियति का वज्रपात झेल रहे।।


अंत में इस उम्मीद के साथ कि आप उस तरह की महामहिम ना बनें जिन्हें बच्चे सामान्य ज्ञान के किताबों में सिर्फ़ रटें, आप वैसी बनें की लोगों के हृदय में बस जाएं। बाकी कितने भी राष्ट्रपति बनें जो ओहदा राजेंद्र बाबू, राधाकृष्णन और कलाम साहब का था वैसा किसी का न हुआ।।

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