मतभेद और मनभेद….मानव अपने बुद्धि से किसी भी कठिन से कठिन कार्य को पूरा कर सकता है और एक अच्छा वर्तमान और भविष्य की संरचना भी कर सकता है। पर यहाँ पर मानव के बौद्धिक संपदा के कारण उसके अंदर कुछ अपवाद या अपभ्रंश जैसे कारक न चाहते हुए भी समाहित, किसी रूप में हो सकते हैं, कुछ से वे देश और परिवार का अभिमान बन सकते हैं|
तो कुछ से वे अपने परिवार, समाज और देश को खतरे में भी डाल सकते हैं। लेकिन ऐसे कौन से कारक हैं जो इन्हें एक तरफ अच्छा तो दूसरे तरफ बुरा बनाने की तरफ अग्रसर रहते हैं।(मतभेद और मनभेद)
मतभेद और मनभेद
असल मे ये कारक मनभेद और मतभेद हैं जिसमें मन से तात्पर्य, हृदय से है, मत से तात्पर्य विचार से है और भेद से तात्पर्य अंतर या भिन्नता से है। मनभेद का तात्पर्य हृदय के भावनाओं में होने वाले परिवर्तन से है जबकि मतभेद का तात्पर्य किसी विषय, बिंदु आदि पर विचारों के अलग अलग होने से है।(मतभेद और मनभेद)
मनभेद को हम इस संदर्भ में समझ सकते हैं कि जब मनभेद होता है तो मनभेद वाले वस्तु, स्थान, संसाधन से आपको घृणा होने लगती है, उसे आप हीन भावना से देखते है। अगर साधारण शब्दों में कहें तो किसी की मानसिकता में किसी को लेकर द्वेष, घृणा आदि का जन्म होना मनभेद कहलाता है। सामान्यतः मनभेद व्यक्ति को ज्यादातर उसके सर्वनाश की तरफ ले जा सकता हैं जहाँ से उसका विकास कुंठित और डरावना हो सकता है।
दूसरे तरफ अगर मतभेद की बात करें तो समाज , भूखंड, क्षेत्र आदि के बीच व्यक्तियों के अलग-अलग राय या विचार होते हैं। वास्तव के कहा जाए तो मतभेद होना कोई गलत बात नहीं है। जब तक उसके नकारात्मक बाहर न आने लगे।
उदाहरण से अगर हम समझे तो लाल बहादुर शास्त्री, सुषमा स्वराज को देख सकते हैं उनके संसद में हुए डिबेट को देखें तो उसमें उन्होंने कहा है कि एक स्वतंत्र देश मे मतभेद होना जरूरी है ताकि सरकार द्वारा चलाई जा रही नीतियों के त्रुटियों को सुधारा जा सके पर इन नीतियों की वजह से मनभेद न हो, राजनीतिक पार्टियां आएंगी जाएंगी पर इस देश का संविधान बना रहना चाहिए, संविधान पर लोगों की आशा बनी रहनी चाहिए। (मतभेद और मनभेद)
इसे हम और सरल शब्दों में समझे तो मतभेद को बाहरी बर्ताव या आचरण द्वारा देखा समझा और परखा जा सकता है लेकिन मनभेद मन में छुपे हुए सांप की तरह होता है, जिसका असर डंस मारने के बाद ही होता है।
मतभेद सकारात्मक हो सकता है पर मनभेद का होना नकारात्मकता को बढ़ावा देता है फिर चाहे ईर्ष्या के रूप में सामने आए, जलन के रूप में सामने आए या फिर किसी रूप में सामने आए। मतभेद को साथ मे बैठ कर , बातचीत करके, सुलह करके अंजाम तक पहुँचाया जा सकता है लेकिन मनभेद समय-समांतर चलने वाली एक क्रिया बन जाती है जो समय के साथ और लंबी खाई बनाते जाती है।
हम मतभेद और मनभेद के अंतर को समझे तो इन दोनों में बस इतना ही अंतर है जितना महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के अंदर है।
दोनों ही लोगों में मतभेद था दोनों के विचारों को लेकर, जिसके लिए उनके हथकंडे भी अलग अलग थे पर तब भी उनके अंदर मनभेद नहीं था क्योंकि ये दोनों महापुरुष भारत को स्वतंत्र देखना चाहते थे, दोनों अपने देश को ऑपिनिवेशिकता के बंधन से बाहर निकालने के लिए हर मुमकिन और सार्थक प्रयास की तरफ कार्यरत रहे।(मतभेद और मनभेद)
read more
- World Food Day: Understanding the Importance of Sustainable Food Systems
- Why should we choose distance learning?
- UNESCO: Working Towards Peace, Equality and Education for All
- Exploring the Intricate Carvings of the Sun Temple
- Sarojini Naidu: The Nightingale of India