स्वाभिमान से सीधा तात्पर्य गर्व से है, यह गर्व अपने जाती को लेकर, अपने राष्ट्र को लेकर, अपने गौरव, अपनी आत्मप्रतिष्ठा को लेकर, अपने कार्यो के अच्छे परिणामों को लेकर, आदि से संबंधित हो सकती हैं। यह अक्सर कहा जाता है कि हमें अपने स्वाभिमान पर गर्व करना चाहिए और उस स्वाभिमान को नहीं खोना चाहिए। जब हम अपने सेनाओं को वर्दी में देखते हैं, तो उसको देखते ही जो हमारे मन मे एक ऊर्जा आती है, वह है स्वाभिमान, जवानों द्वारा अपने देश के लिए शहीद हो जाना है स्वाभिमान (यहाँ हर व्यक्ति,जो अपने देश के आन बान शान के लिए अपने प्राणों को, देशप्रेम रूपी अग्नि में आहुति देकर देश की रक्षा कर रहा है वो है स्वाभिमान) ऐसे कई बिंदु हैं जो स्वाभिमान को श्रेष्ठ बनाते हैं, जिन्हें शब्दो मे बया नही किया जा सकता।
अभिमान से सीधा तात्पर्य मै की अनुभूति से है अर्थात ये काम केवल मै कर सकता हूं और किसी मे दम नहीं, मुझसे नही होगा तो किससे होगा। जहाँ पर मैं की अनुभूति होने लगे वहां समझ जाईये की अभिमान आ गया है।
इससे संबंधित रहीम जी का एक दोहा है:-
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।

रहीम दास जी इस दोहे में यह कहना चाहते हैं कि किसी भी बड़े व्यक्तित्व ( जो उम्र में, ताकत में ,प्रभाव में, ज्ञान में या आर्थिक रुप से बड़ा है )के सामने उससे छोटे व्यक्तित्व को भूलना नहीं चाहिए या छोड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि उसका भी जब उपयोग पड़ेगा तब बड़ा व्यक्ति काम नहीं आ पाएगा।
ऐसे में कहें, कि परिस्थितियों के अनुसार दोनों के अंतर को समझना बहुत जरूरी है। आपको अपनी कीमत और योग्यता आपको समझनी होगी। स्वाभिमान कब अभिमान बन जाता है पता ही नहीं चलता, इसका उदाहरण महान शिव भक्त, त्रिलोक विजेता रावण के रूप में देखें तो आसानी से समझ सकते हैं।
आइए इसे एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं…..
ठंड का मौसम चल रहा है। कुछ बंदर के झुंड एक पेड़ की डाली पर बैठें हैं। उन्हें बहुत ठंड लग रही है जिससे वे सिकुड़े जा रहे हैं ,जैसे जैसे रात काली होती जा रही है वैसे वैसे ठंड के प्रकोप उन्हें सताए जा रहे हैं। तभी उन्हें कुछ जुगनू अपने पास उड़ते हुए आते दिखे, यह देख कर बंदरो के टोली में एक खुशी से दौड़ गयी। क्योंकि उन्होंने सोचा कि आग के चिंगारी का इंतजाम हो गया, अब उन्हें ठंड नही लगेगी।
ऐसे में बंदरों ने जुगनुओं को पकड़ लिया और उन्हें सुखी लकड़ियों पर घसीटना शुरू कर दिया, जिससे आग तो नहीं जली पर जुगनुओं की मृत्यु होने लगी। उसी पेड़ पर बंदर को जुगनुओं को घिसते हुए चिड़ियों का झुंड बहुत देर से देख रहा था।
जब बंदर बाज नहीं आये तो उन चिड़ियों के मुखिया ने बंदरो से कहा…. अरे ओ बंदर प्यारे, ये कोई आग की चिंगारी नहीं जो तुम्हे आग दें, ये तो जुगनू हैं, तुमने क्या इन्हें हमें खाते हुए नहीं देखा, अगर इनमें आग होती तो हमारा मुह नहीं जल जाता।
बस फिर क्या था बंदरो को गुस्सा आ गया की इतनी छोटी चिड़िया हमें ज्ञान दे रहीं है, इसी गुस्से में आकर उन्होंने सारी चिड़िया को मार डाला।
ध्यान देने वाली बात यह है कि हमारी आधी जिंदगी ऐसे ही कई बेकार के प्रयासों में बीत जाती है, कोई शीशे में अपना चेहरा देख , अमिताभ बच्चन बनने यानी हीरो बनने चल पढ़ते हैं, तो कोई कुमार सानू की आवाज सुनकर गायक बनने का ख्वाब पाल लेता है। अगर हम उदाहरण पर आए तो ऐसे उदाहरण अनगिनत हैं। लेकिन अगर हम देखें तो ऐसे में जीवन बीत जाता है और सफलता के नाम पर केवल ताने मिलते हैं। क्या हमने कभी सोचा या सोचने का समय निकाला की आग की आशा में हम किसी जुगनू को तो घसीट नहीं रहे। जब चिड़िया के झुंड ने समझाया तो उन्होंने अपने ऊपर अभिमान में स्वाभिमान का घोल मिला कर उनकी हत्या कर दी। उसी तरह हमें कोई कुछ कहता है की ये जो सपने देख रहे हो ये सही नहीं है तो, गुस्सा आता है या नहीं….. सोचो।
अब आप एक बात बताइए, यह कहा जाता है कि जब कोई किसी सपने के साथ कड़ी मेहनत करता है तो उसे सफलता जरूर मिलती है, वहीं दूसरी ओर यह बोला जाता है कि हर सपना सच नहीं होता। तो हमें कैसे पता चले कि हम क्या माने क्या न माने?
जब व्यक्ति को लगता है कि उसे किसी की सलाह की जरूरत नहीं है और उसके लिए गए फैसले 100 फीसद सही हैं तो हां, यह श्रेष्ठता की पहचान है, पर सिर्फ मैं ही सही हूं, यह अहंकार है। यह बात हमने पहले ही बता दिया है। पर एक बात स्पष्ट कर दूं कि आपको उस समय तक लगे रहना चाहिए जब तक आपकी परिस्थितियां उसके विपरीत न हो जाएं। यहाँ परिस्तिथियों के विपरीत का मतलब जब कोई हल न निकल रहा हो। हर काम मे हर व्यक्ति उच्च नहीं हो सकता इसलिए प्रतिभा को समझ कर चुनाव करना आवश्यक है । और एक बात जैसा कि tvf के aspirant web सीरीज में बताया गया है कि प्लान 2 हमेशा रखना चाहिए। अगर आप के पास केवल एक ही प्लान है तो माफ कीजिये! आप हमेशा बंदरो की तरह जुगनुओं को घसीट घसीट कर मरते रहेंगे पर आपको आग का एक रत्ती भी प्राप्त नहीं हो सकता। वहीं एक बार अगर उन चिड़ियों की बात मान ले तो शायद आपका काम बन जाए।
परिस्थितियों के अनुसार जुगनू और आग, तलवार और सुई का अंतर समझे तभी आप कुछ किया जा सकता है, हर व्यक्ति को समय और परिस्थिति का ध्यान रखे, ऐसा न हो कि अभिमान में वो तलवार से कपड़ा सिलने बैठ जाये।
धन्यवाद…
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