अपना रण
Westernization of Indian culture and Youth(भारतीय संस्कृति और युवाओं का पश्चिमीकरण)…
मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिश्तानी,
सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।
ये पतलून इंगलिश्तानी ही क्यों?(भारतीय संस्कृति और युवाओं का पश्चिमीकरण)
कभी तो आपके दिमाग में सवाल आया होगा…..!
हाल फिलहाल से ही नहीं, बल्कि सदियों से हम अपनी संस्कृति से मोल तोल करते आ रहें है।
आज अगर हम ये कहें की “हम आधे से अधिक तो पश्चिमी सभ्यता के गुलाम हो चुके हैं”, तो गलत नहीं होगा।
आज हम अपनी दिनचर्या से लेकर पहनावा तक का भी पश्चिमी सभ्यता से नक़ल करते हैं।
यहां तक कि हम चड्डी भी वहीं का नक़ल कर के पहनते हैं।
लेकिन इस नकल करने के पीछे मूल कारण क्या है?
इसका जवाब खोजने निकलेंगे तो इतिहास को थोड़ा टटोलना पड़ेगा।
16वी शताब्दी में जब हम मुगलों के गुलाम थे तभी से हमारी संस्कृति पर आंच आना शुरू हो गया था।
अंग्रेजों की 200 वर्षों की गुलामी हम सब को उनकी संस्कृतियों को मानने के लिए हमें मजबूर कर दिया था। और आज, कहीं न कहीं हम उसकी परछाईं समाज में देख सकते हैं।(भारतीय संस्कृति और युवाओं का पश्चिमीकरण)
अब यहां पर ये सवाल हो सकता है की आखिर अब तो हम अंग्रेजों से आज़ाद हो चुके हैं फिर भी हम उसके कल्चर के क्यों फॉलो करते हैं?
इसका बहुत सरल सा जवाब है की जब सारी दुनिया नए नए तरकीबों का अविष्कार कर रही थी , जब औद्योगिकरण का विस्तार हो रहा था तब हम गुलाम थे और जो स्वतंत्र थे वो नए नए प्रयोग करते थे, और अच्छे प्रयोगों का अनुशरण करते थे।
हम जब आजाद हुए तब तक मूल जरूरतों वाले ज्यादातर प्रयोग हो चुके थे और उस वक्त हम तुरंत आज़ाद हुए थे तो ज्यादा इस स्थिति में भी नहीं थे की हम कोई बड़ा प्रयोग कर सकें, और इसलिए हम उन्हीं के रिवाजों में ढलते गए और यही एकमात्र आसान रास्ता भी शायद था।(भारतीय संस्कृति और युवाओं का पश्चिमीकरण)
आज हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता को बचाना है तो हमे अपने मूल्यों पर काम करना होगा, शिक्षा के अस्तर को बढ़ाना होगा, अपने संस्कृति को बचाने के लिए काम कर रहे लोगों को सम्मान देना होगा, फिर हम निश्चित ही अपने संस्कृति को आईने के तौर पर दुनिया को दिखा सकते हैं।
धन्यवाद….(भारतीय संस्कृति और युवाओं का पश्चिमीकरण)
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