अपना रण
पुलिस विभाग में एक कहावत है कि “पुलिस की मार के आगे, गूंगा भी बोलने लगता है”, लेकिन यह कहावत कभी-कभी ठीक सिद्ध नहीं होती है। ऐसे में कोर्ट के आज्ञा से नार्को टेस्ट किया जाता है.
नार्को टेस्ट क्या है
नार्को टेस्ट में अपराधी या किसी व्यक्ति को ” ट्रुथ ड्रग” नाम की एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है या फिर उन्हें ‘सोडियम पेंटोथेल ‘ या ‘सोडियम अमाइटल ‘ का इंजेक्शन लगाया जाता है। इसे सच उगलवाने की एक प्रक्रिया कह सकते हैं।
इस दवा का असर होते ही व्यक्ति ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है, जहाँ व्यक्ति न तो पूरी तरह बेहोश रहता है और न ही पूरी तरह होश में । यह व्यक्ति की तार्किक सामर्थ्य (सोचने-समझने की शक्ति) को कमजोर कर देता है। इस प्रक्रिया में मनुष्य न तो बहुत ज्यादा और न ही जोर से बोल सकता है।
इस दवाई के असर से, व्यक्ति कुछ समय के लिए सोचने , समझने की क्षमता को खो देता है। व्यक्ति की दिमाग की तार्किक रूप से या घूमा फिराकर, सोचने या बोलने की शक्ति भी खत्म हो जाती है।
इस दवा के लेने की स्थित में जब व्यक्ति की तार्किक शक्ति शून्य रहती है तब व्यक्ति से ऐसे प्रश्न पूछे जा सकते हैं जो वह सामान्य स्थित में बताने के लिए राजी होता। इसलिए समझे तो इस दवा का असर किसी संदिग्ध, अपराधी, देशद्रोही या चिकित्सक उपचार आदि के लिए उपयोगी हो सकता है पर यही दवा किसी ऐसे सख्स के हाथ मे लग जाए जो देश को बर्बाद करने के लिए इसका प्रयोग करे तो यह सबसे ज्यादा हानिकारक होगा क्योंकि इस दवा के देने से व्यक्ति जो भी बोलेगा सच ही बोलेगा, और उसे इसका अंदाजा भी नही होगा। ऐसे में इसके लाभ के साथ इसके हानि भी है जो कि सरकार और संबंधित विभाग को ध्यान रखना चाहिए।
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