अपना रण
भारत में टीवी पत्रकारिता के उदय से पहले यह समझ लेना आवश्यक है कि भारत मे टीवी का आगमन ही उसके ज्यादा लागत के चलते उपयोगी नहीं माना जा रहा था। पर टीवी ने अपने जड़ को मजबूत करने के लिए तमाम बाधाओं को पार किया।
जिस समय ये बाधाएं भारत को चारों तरफ से घेरने का प्रयास कर रही थी उस समय विभिन्न विशेषज्ञों ने और आकाशवाणी के इंजीनियरो ने इसे समझना जारी रखा और समय के साथ भारत मे टीवी का आगमन हुआ।
तमाम मुश्किलों के बाद भारत मे टेलीविजन का प्रारंभ वर्ष 1959 में एक प्रायोगिक तौर पर ‘आल इंडिया रेडियो’ के अंतर्गत यूनेस्को और फिलिप्स कंपनी के योगदान से आरंभ हुआ।
जहाँ पर शुरुआती दौर में इसका प्रयोग शिक्षा और सूचनाओं के लिए एक माध्यम के रूप में किया गया था।
एक सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्या हुआ कि 1990s में प्राइवेट चैंनलों का आगमन बहुत ज्यादा हुआ? तो इसका सीधा सा उत्तर है कि 1990 में खाड़ी युध्द ने लोगों के मन मे टीवी के लिए एक चाहत उत्पन्न कर दी थी तो वहीं दूसरी तरफ भारत के सुप्रीम कोर्ट का 1995 का फैसला भी मुख्य है, जिसमें यह कहा गया है कि, "वायु तरंगों पर भारत सरकार का एकाधिकार नहीं हो सकता है।" जिसके बाद प्राइवेट न्यूज़ चैनल के खिलाड़ी इस फील्ड में उदय होना शुरू हुआ।
भारत मे टीवी पत्रकारिता की शुरुआत दूरदर्शन के जरिए 15 अगस्त 1965 को एक बुलेटिन के प्रसारण के रूप में हुई थी। जाहिर सी बात है उस समय केवल रेडियो में आल इंडिया रेडियो और टीवी के लिए केवल सरकारी चैनल दूरदर्शन ही उपलब्ध थे।
उस समय दूरदर्शन के पास आय की बहुत ज्यादा कमी थी, जिसके चलते उसे अकाशवाणी के रहम पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन फिर भी निरंतर दूरदर्शन ने अपने आप को अपडेट(अद्यतित) किया और लगभग 33 वर्ष के बाद, यानि 1998 में भारत के इतिहास में टीवी पत्रकारिता का एक नया अध्याय जुड़ना शुरू हुआ।
इस नए अध्याय की शुरुआत तब हुई जब प्राइवेट चैंनलों ने अपने स्वयं के चैनल खोले और उसपर समाचार दिखाना शुरू किया। हालांकि, ज़ी टीवी चैनल पर समाचारों की शुरुआत पहले ही हो चुकी थी पर 24 घंटे के लिए समाचार के प्रसारण की शुरुआत स्टार ग्रुप और फिर उसके बाद ज़ीटीवी ने शुरू किया।
शुरुआत में ज़ी ने स्टार के साथ मिलकर चैनल बनाया था पर जब स्टार को अमेरिकी कंपनी ने खरीद लिया तो ज़ी अकेला हो गया और उसने बाद में अपना स्वयं का चैनल 1 अप्रैल 1992 को किया। यह भारत का पहला हिंदी चैनल है।
वर्ष 1998 में मशहूर प्रस्तोता एनडीटीवी के प्रणव रॉय से स्टार ग्रुप के चैनल ने हाथ मिलाया जिसके बाद इन दोनों कंपनियों ने साथ मिलकर एनडीटीवी स्टार के नाम से काम करना शुरू किया। इन दोनों कंपनी के बीच हुआ समझौता 1998 से 2003 तक चला। इसके बाद इन दोनों की आपसी समझ ने अलग-अलग होना ठीक समझा और ये दोनों अलग हो गए।
इसके बाद पहले 2003 में स्टार ग्रुप ने भारत में अपना स्वयं का चैनल लाया और उसके बाद एनडीटीवी ने भी अपने अकेले के दम पर एक हिंदी और एक अंग्रेजी चैनल को उतारा।
यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि उस समय बेशक एनडीटीवी और स्टार ग्रुप मिलकर देश में घट रहे समाचार को यहीं तैयार करते थे पर भारत मे इन्हें अपलिंकिंग की इजाजत नहीं थी ऐसे में वे अपलिंकिंग के लिए हांगकांग और सिंगापुर जैसे देशों की मदद लेते थे।
जो हाल एनडीटीवी स्टार के साथ था वही हाल ज़ीटीवी के साथ भी था। वे भी बेशक समाचार यही तैयार करते थे परंतु दूसरे देशों पर अपलिंकिंग के लिए निर्भर रहना पड़ता था।
स्टार ग्रुप को विदेशी समूह होने के चलते अपलिंकिंग की अनुमति मिलने में और देर लगी, जबकि ज़ीटीवी में समूची पूंजी भारतीय होने की वजह से उसे पहले देसी धरती से अपलिंकिंग की अनुमति मिल गई थी। हालांकि स्टार और ज़ी दोनों ही के न्यूज़ चैनलों पर शुरुआती दौर में अंग्रेजी का प्रभुत्व था और अंग्रेजी के ज्यादा बुलेटिन प्रसारित होते थे। लेकिन बाद में हिंदी के बुलेटिनों की संख्या बढ़ी और तकरीबन आधे घंटे अंग्रेजी और आधे घंटे हिंदी के बुलेटिन्स का फ़ॉर्मेट दोनों चैनलों में चलने लगा। ज़ी के हिंदी बुलेटिन में अंग्रेजी-मिश्रित हिंदी यानी ‘हिंग्लिश’ का ज्यादा इस्तेमाल था, तो स्टार-एनडीटीवी के बुलेटिन की उर्दू-मिश्रित भाषा उसकी खासियत थी।
31 दिसंबर 2000 को आज तक का आरंभ हुआ। इससे पहले टीवी टुडे का ‘आज तक’ दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर अपनी एक खास पहचान बना चुका था। ऐसे में जब जब इंडिया टुडे ने वर्ष 2001 में इस चैनल को आज तक के नाम से दिल्ली से लांच किया तब ऐसे जबरदस्त फायदा हुआ और अपने शुरुआत के 24 घंटे में ही इसने अपना पैर न्यूज़ चैनल के क्षेत्र में जमा लिया।
टीवी कार्यक्रम के रूप में इंडिया टुडे का 'आज तक' का प्रसारण DD मेट्रो पर 1995 में आरंभ हुआ था। आते ही हिंदी का 24 घंटे प्रसारित होने वाला देश का पहला समाचार चैनल बन गया । जब आज तक DD मेट्रो के साथ काम कर रहा था तब दिल्ली के कनॉट प्लेस में उसका दफ्तर था। वही चैनल की लॉन्चिंग इंडिया टुडे ने झंडेवालान एक्सटेंशन में स्थित वीडियोकॉन टावर से हुई थी। वहीं 2012 के सिंतबर में यह नोएडा के फ़िल्म सिटी के अपने नए दफ्तर इंडिया टुडे मीडियाप्लेक्स में आ गया।
ज़ीटीवी से अलग होने के बाद अपना मीडिया प्रोडक्शन हाउस ‘इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड’ चलाने वाले और ‘आपकी अदालत’ जैसे कार्यक्रम से मशहूर हुए पत्रकार रजत शर्मा भी अपना समाचार चैनल लेकर आए जिसका नाम उन्होंने रखा- ‘इंडिया टीवी’।
20 मई 2004 को ‘आपकी आवाज’ की टैगलाइन के साथ लांच इस चैनल ने शुरुआत में तो बॉलीवुड के कास्टिंग काउच और नेताओं के सेक्स स्कैंडल दिखाकर लोकप्रियता बटोरने की कोशिश की, लेकिन लंबे समय तक खबरिया हथकंडों में कामयाबी नहीं मिली, और ना ही रजत शर्मा को अपने चेहरे की ब्रांडिंग का कोई फायदा मिला तो उन्होंने आखिरकार खांटी खबरिया संपादक औऱ ज़ी न्यूज़ में अपने सहयोगी रहे विनोद कापड़ी को अपने साथ जोड़ा।
कापड़ी की अगुवाई में इंडिया टीवी ने कम वक्त में ही बुलंदियां हासिल कर ली और लगातार वो टीआरपी के चार्ट में पहले से तीसरे नंबर तक अपनी जगह बनाने में कामयाब दिख रहा है। रजत शर्मा 1992 से ही ज़ीटीवी से अपने खास टॉक शो ‘आपकी अदालत’ के साथ जुड़े हुए थे। वो ज़ी के डायरेक्टर भी रहे। ज़ी से अलग होने के बाद एनडीटीवी के साथ चल रहे स्टार न्यूज़ में वो ‘जनता की अदालत’ लेकर आए, जो आज भी उनके अपने चैनल पर चल रहा है।
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