गांधी के असहयोग आंदोलन के संदर्भ में गांधी को लेकर दिया गया जस्टिस सी. एन. ब्रूमफ़ील्ड का भाषण गांधी की किस

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WRITTEN BY VISHEK GOUR

9 जनवरी सन 1915 की सुबह, बम्बई का अपोलो बंदरगाह, लोगों का हुजूम गांधी के स्वागत के लिए तैयार था। गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के कई बार कहने के पश्चात अंततः गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे। देखा जाए तो गांधी के भारत आगमन के प्रकरणों में दक्षिण अफ्रीका में शुरू की गई सत्याग्रह की सफलता अहम कड़ी के रूप में उभरकर सामने आती है। गांधी और सत्याग्रह को मद्देनजर रखते हुए गोपाल कृष्ण गोखले ने जिस तरह से गांधी के प्रयासों को व्यवहार में उतारते हुए देखा उससे वह बेहद प्रभावित हुए।

गांधी का सैद्धांतिक आदर्श और व्यवहारिक स्वरूप में एकरूपता से दक्षिण अफ्रीका में शुरू किये गए सत्याग्रह की नीवं को वह मजबूती मिली, जिसमें गोपाल कृष्ण गोखले आज़ाद भारत की झलक देखते थे। इसलिए उन्होंने गांधी को भारत लौटने के लिए कहा और यह भी कहा कि “गांधी भारत आगमन के बाद पूरे भारत को देखना, महसूस करना और भारत की स्थिति को समझना, यह किये बिना किसी भी तरह की टिप्पणी बिल्कुल भी मत करना।

चूंकि गोपाल कृष्ण गोखले गांधी के राजनीतिक गुरु थे और गांधी को वह बेहद प्रिय भी थे, इसलिए गांधी ने वैसा ही किया जैसा कि गोखले ने कहा। गांधी का गोखले के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव गांधी के ही द्वारा लिखे गए एक पत्र के एक अंश को पढ़कर ठीक प्रकार से समझा जा सकता है।

गांधी ने यह पत्र 27 फरवरी 1914 को लिखा। पत्र का अंश कुछ इस प्रकार है, “मैं अप्रैल में भारत जाने का प्रस्ताव करता हूँ। मैं पूरी तरह से आपके विचारों से सहमत हूँ। मैं आपके सानिध्य में रहकर आपसे सीखना और आवश्यक अनुभव प्राप्त करना चाहता हूँ। मेरी वर्तमान महत्वाकांक्षा आपके साथ आपका शिष्य बनकर ही रहने की है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति की आज्ञा मानने का वास्तविक अनुशासन चाहता हूँ, जिसे मैं प्यार करता हूँ।

हालांकि जिस समय गांधी भारत लौटे थे, उससे तकरीबन पांच महीने पहले प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया था। प्रथम विश्व युद्ध तकरीबन 4 वर्षों तक जारी रहा। इसी बीच युद्ध के दौरान ही अंग्रेजों ने भारत में प्रेस पर पाबंदी लगा दी और किसी को भी बिना जांच के कारावास में डालने की अनुमति दे दी। भारत के बहुत से लोगों ने अंग्रेजों का विश्वयुद्ध में साथ दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने वही प्रावधान रोलैट एक्ट के जरिए भारत में हमेशा के लिए लागू करने की तैयारी शुरू कर दी, जिससे पूरे देश में रोष फैल गया।

मार्च 1919 में जब अंग्रेजों ने रोलैट एक्ट पारित किया तो गांधी के नेतृत्व मे देश भर में लोगों ने इस दमनकारी कानून का विरोध करना शुरू कर दिया। वस्तुतः जब 19 अप्रैल को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ तो देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश फैल गया। इसके बाद ही देशव्यापी असहयोग आंदोलन शुरू करने की तैयारी होने लगी।

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यह समय था सितंबर 1920 का। स्वतंत्रता संग्राम में भागीदार नेता और आंदोलनकारी नागपुर में कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन के लिए इकट्ठा हो रहे थे। द्वितीय नागपुर अधिवेशन की अध्यक्षता की जिम्मेदारी गांधी को सौंपी गई। चूंकि द्वितीय नागपुर अधिवेशन के आयोजन का मुख्य विषय असहयोग आंदोलन था, इसलिए भी अध्यक्षता का जिम्मा गांधी को सौंपा गया। हालांकि असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव चितरंजन दास उर्फ़ देशबंधु ने प्रस्तावित किया।

इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया। हालांकि फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में किसानों के समूह ने एक पुलिस थाने में आग लगा दी। इसमें कई पुलिस कर्मी मारे गए। गांधी इस घटना से बहुत दुखी हुए और आंदोलन के इस हिंसात्मक स्वरूप को सिरे से खारिज कर आंदोलन खत्म करने की घोषणा कर दी। इस आंदोलन को खत्म करने के परिपेक्ष्य में गांधी ने जो कहा वह गांधी के सैद्धान्तिक स्वरूप में प्रयोगवादी प्रवृत्ति को निर्दिष्ट करता है। गांधी ने कहा कि “किसी भी आंदोलन की सफलता की नींव हिंसा पर नहीं रखी जा सकती है।”

जैसे ही गांधी ने असहयोग आंदोलन को खत्म करने की घोषणा की वैसे ही अंग्रेजी हुकूमत को गांधी को गिरफ्तार करने का अवसर मिल गया। फलस्वरूप 10 मार्च 1922 को गांधी को गिरफ़्तार कर लिया गया। अंग्रेजों ने गांधी को देशद्रोह के अंतर्गत गिरफ्तार किया और इसका आधार यंग इंडिया में प्रकाशित उनके तीन लेखों को बनाया गया। गांधी के मुकदमे की सुनवाई कर रहे जस्टिस सी. एन. ब्रूमफ़ील्ड ने 18 मार्च 1922 को गांधी जी को राजद्रोह के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सजा सुनाई।

जब मैं इस पूरे घटनाक्रम को गहराई से पढ़ रहा था तो एक क़िस्म की बेचैनी मुझे घेरे हुए थी। बेचैनी इस बात की कि आखिर गांधी उग्र क्यों नहीं हुए? इतनी सत्यनिष्ठा, इतनी सहनशीलता, खुद के साथ ही देश के प्रत्येक नागरिक, जिसमे अंग्रेज भी शामिल हैं, उनके प्रति अपार मानवीय संवेदना, आखिर क्यों? किसलिए? अगर स्वराज या स्वाधीनता के लिए, तो उसके लिए अन्य रास्ते भी मौजूद थे। उदाहरण स्वरूप भगत सिंह समेत सुभाष चंद्र बोस का स्वाधीनता को प्राप्त करने का रास्ता। फिर जब मैंने गांधी के मुकदमे की सुनवाई कर रहे जस्टिस सी. एन. ब्रूमफ़ील्ड का भाषण पढ़ा तो मेरी बेचैनी सिरे से खत्म होने लगी। यह बात गहराई से मेरे अंतर्गत में समाई कि आखिर मोहनदास करमचंद गांधी क्यों महात्मा गांधी हैं?

जस्टिस सी. एन. ब्रूमफ़ील्ड का भाषण बॉम्बे सर्वोदय मंडल और गांधी रिसर्च फाउंडेशन के द्वारा विकसित किये गए वेबसाइट पर अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है। ब्रूमफ़ील्ड के भाषण का हिंदी तर्जुमा कुछ इस प्रकार से है, “इस तथ्य को अस्वीकार करना असंभव होगा कि मैंने आज तक जिनकी जाँच की है अथवा करूँगा आप उनसे भिन्न श्रेणी के हैं। इस तथ्य को भी नकारना असंभव होगा कि आपके लाखों देशवासियों की दृष्टि में आप एक महान देशभक्त और नेता हैं। यहाँ तक कि राजनीति में जो लोग आपसे भिन्न मत रखते हैं, वे भी आपको उच्च आदर्शों और पवित्र जीवन वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं। ब्रूमफ़ील्ड ने इतना ही नहीं यह भी कहा कि “यदि भारत में घट रही घटनाओं की वजह से सरकार के लिए सजा के इन वर्षों में कमी और आपको मुक्त करना संभव हुआ तो इससे मुझसे ज्यादा कोई प्रसन्न नहीं होगा।”

पहली नज़र में देखा जाए तो यह भाषण कोई ख़ास मायने नहीं रखता है, लेकिन जब इस भाषण को लेकर गहराई से विचार किया जाए तो इस बात से मन प्रफुल्लित और गांधी को लेकर सम्मान बढ़ जाता है कि ऐसे दौर और परिस्थितियों में जहां अंग्रेजी हुकूमत भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं को गिरफ्तार कर रही है और उनकी निर्मम हत्याएं कर रही है। उस परिस्थिति में एक अंग्रेज अधिकारी यह कह रहा है कि गांधी जी, अगर अंग्रेजी सरकार आपके सजा के वर्षों में कमी करती या आपकी सजा को खत्म करती है तो सबसे अधिक खुशी मुझे होगी।

उपरोक्त कथन गांधी के उन उत्कृष्ट विचारों और विशेषताओं को रेखांकित करता है, जो गांधी को अन्य स्वतंत्रता सेनानियों एवं नेताओं से एक भिन्न परिधि में उत्कृष्ट विचार और मूल्यों में रखते हुए गांधी की सुंदरता को सुशोभित करता है।

यूँ तो गांधी के विचारों एवं प्रयोगवादी प्रवृत्ति की परिधि विस्तृत है, लेकिन गांधी की एक विशेषता जो मुझे बेहद प्रीतिकर है, वह यह है कि “गांधी जिसको सही मानते थे, उसके लिए जान तक न्यौछावर कर देने को तैयार रहते थे।”

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