संपादकीय विभाग का ढाँचा

अपना रण

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प्रधान संपादक:- संपादकीय विभाग का प्रमुख व किसी भी समाचार पत्र या पत्रिका के नीति को निर्धारित करने वाले को, प्रधान संपादक/महासम्पदाक/संपादक कहा जाता है। समाचार पत्र-पत्रिका के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेना व उनमें प्रकाशित होने वाले प्रत्येक सामग्री के लिए उत्तरदायी, संपादक ही होता है।(संपादकीय विभाग)

समाचार पत्र का कार्य व्यक्तिगत ना होकर सामूहिक होता है यह टीम वर्क है, एक समाचार पत्र में संपादक की स्थिति वही होती है जो क्रिकेट या हॉकी टीम में कैप्टन की होती है।

एक कुशल संपादक को क्रिकेट या हॉकी टीम के कैप्टन की तरह यह पता होना चाहिए कि उसे अपने सहयोगियों से इस तरह काम लेना है और उसका कौन सा सहयोगी किस काम के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है, अर्थात संपादक एक प्रधान सेनापति की भांति भी, कार्य करता है।(संपादकीय विभाग)

संपादकीय विभाग

संयुक्त संपादक:- ये संपादक के समस्त दैनिक कार्यों में सहयोग प्रदान करते हैं और संपादक की अनुपस्थिति में उसके समस्त दायित्वों का निर्वहन करते हैं।

सहायक संपादक:- सहायक संपादक का अध्ययनशील व विचारशील होना अत्यंत आवश्यक है। इनका संबंध समाचार के साथ ना होकर विचार के साथ होता है। संपादकीय टिप्पणियों, अग्रलेख, फीचर लेखन, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य, में राजनीति घटनाओं की समीक्षा करना सहायक संपादक का मुख्य दायित्व है।(संपादकीय विभाग)

समाचार संपादक:- इसमें समाचार पत्र के कर्ता-धर्ता होते हैं। मनुष्य के शरीर में जो स्थिति आंख की होती है, वह स्थिति किसी समाचार पत्र के संपादक विभाग में, समाचार संपादक की है। वह समाचार इकाई का प्रमुख होता है। समाचार पत्र में छपने वाले सभी समाचारों का उत्तरदायित्व समाचार संपादक पर ही होता है।

सहायक समाचार संपादक:- समाचार संपादक के सभी कार्यों में सहायता प्रदान करने वाले को सहायक समाचार संपादक कहा जाता है।(संपादकीय विभाग)

मुख्य उपसंपादक:- मुक्त उप संपादक समाचार डेस्क पर किसी एक पाली का नेतृत्व करता है। समाचारों का वर्गीकरण करके उन्हें उप संपादकों को वितरित करता है और उप संपादकों की लिखी गई कॉपी की जांच करता है। (संपादकीय विभाग)

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उपयुक्त शीर्षक निर्धारित करता है, पत्र के सर्वप्रमुख समाचार और अन्य समाचारों का क्रम भी निर्धारित करता है कि, किस समाचार को कितना महत्वता देनी है। किसे प्रथम पृष्ठ तथा किसे अन्य पृष्ठ पर देना है यह सब काम यही करते हैं।

उपसंपादक:- उप संपादकों का कार्यभार अत्यंत व्यापक होता है, वास्तव में उप संपादक समाचार पत्र की रीढ़ की हड्डी होता है। समाचार पत्र के कलेवर को भरने का अधिकतम भार उप संपादकों पर ही होता है।(संपादकीय विभाग)

उप संपादकों के बिना दैनिक कार्यों को निष्पादित करना कठिन है। ये लोग समाचार पत्रों का संपादन, टाइपिंग, शीर्षक लगाना, अनुवाद करना, खबर रीराइट करना, समाचार पत्र को सत्यापित करना जैसे आदि कार्य करते हैं।

वरिष्ठ उपसंपादक:- ये उपसंपादकों के सहायकों की भूमिका निभाते हैं। उप संपादक इनको प्रशिक्षित करने में अपना योगदान देता है।(संपादकीय विभाग)

संवाददाता:- संवाददाता भी समाचार पत्र का महत्वपूर्ण अंग है किसी भी समाचार पत्र के समाचार एकत्रित करने वाले व्यक्ति को संवाददाता कहा जाता है ये मुख्यता चार प्रकार के होते हैं:-

  1. कार्यालय संवाददाता
  2. विशेष संवाददाता
  3. विदेश संवाददाता
  4. निजी संवाददाता

संपादक के विभिन्न कार्य

  1. संपादकीय लेखन करना।
  2. समाचार लेखन करना( कुछ विशेष हालातों पर लिखे जाते हैं)।
  3. लीड समाचारों पर नजर रखना।
  4. संपादकीय पृष्ठ के लेखों का चयन करना।
  5. फीचर लेखन।
  6. ले-आउट का निर्धारण।
  7. नीतियों का निर्धारण करना।
  8. काबिल व्यक्तियों की टीम का चयन करना।
  9. गलतियों में सुधार और समस्याओं का निदान करना।
  10. सहयोगियों की जिम्मेदारी तय करना।
  11. प्रतिद्वंदी प्रकाशनों पर नजर रखना।
  12. जन सहयोग और जनसंपर्क के विभिन्न उपाय करना।

संपादक के कार्य असीमित होते हैं। संपादक का सब पर नियंत्रण होता है। वह विज्ञापन व प्रसार विभाग को आदेश भी दे सकता है लेकिन यह उसकी कार्यशैली व इच्छाओं पर निर्भर करता है।

आज के इस आधुनिक युग में जिस तरह से टेक्नोलॉजी, वैश्वीकरण, इंटरनेट मायाजाल ने समाचारों का निर्बाध प्रसार किया है, उसके चलते संपादक की महत्वता बहुत कम हो गयी है या कहें कि शायद खत्म सी हो गयी है। आज एक ही व्यक्ति समाचार लाना,उसका संपादन करना, प्रूफ रीडिंग करना, उसे प्रसारित करना, जैसे कार्य करने लगा है।

अगर आज के समय में सेकंड की भी देरी हो जाये तो वह समाचार बासी हो जाता है, बेशक हम कह सकते हैं कि समाचार पत्र या पत्रिका घटना के अगले दिन या निश्चित समय पर आती हैं पर, इंटरनेट के मायाजाल ने आज प्रत्येक समाचार पत्र-पत्रिका को सूचनाओं को त्वरित देने के लिए तैयार कर दिया है और जो इसमें पीछे रहा वह फिर पीछे ही रह जाता है।

कहने का तात्पर्य अगर आपको रेस में बने रहना है तो आपको आज की परिस्थितियों के अनुसार ढलना ही होगा अन्यतः आपका पतन होने में देर नहीं लगेगा। आज जो सबसे ज्यादा दिखेगा वही सबसे ज्यादा बिकेगा की संज्ञा विद्यमान है।

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