शहर के चकाचौंध में गुम होते तारे.…. आज के वर्तमान समय में हमारे जीवन में बल्ब की महत्वता का अनुमान हम क्या शायद ही इस बल्ब का आविष्कार करने वाले खोजकर्ता थॉमस एल्वा एडिसन भी उस समय न कर पाए हों. वास्तव में कहा जाए तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि उनका यह आविष्कार भविष्य के विकास के लिए कितना उपयोगी होगा. खैर जैसा कि हमें पता है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं एक तो उसका सकारात्मक पक्ष और दूसरा उसका नकारात्मक पक्ष. हम दोनों ही पक्ष को आपके आगे इस लेख कुछ सच्ची घटनाओं और कहानियों के साथ प्रस्तुत करेंगे. और इसी के साथ आपको बताएंगे की आप का क्या दायित्व इस संदर्भ में बनता है और आप उस दायित्व का निर्वहन कैसे कर सकते हैं….
बल्ब का जब आविष्कार हुआ तब मानव समाज को रात में भी कार्य करने का सहूलियत मिली. जहाँ उसके लिए रात काम के बीच में एक बड़ी बाधा थी वहीं बल्ब के आविष्कार ने इस बाधा को दूर करके रात में भी काम करने का दरवाजा खोल दिया. ऐसा नहीं है कि एडिसन के बल्ब के आविष्कार करने से पहले रात होते ही मानव पंगू हो जाता था बल्कि तब भी वह मसालें या बोनफायर जलाकर, रात में अपने काम को मुकाम तक पहुँचाने का कार्य करते थे और आज भी इसका प्रयोग कहीं-कहीं देखने को मिल जाता है फिर चाहे वह किसी कार्यक्रम का रूप में हो या मजबूरी के रूप में हो.
अगर इसके साक्ष्य की बात करें तो अपको रामायण, महाभारत या अन्य धार्मिक पुस्तकों से इसका साक्ष्य मिल जाएगा. वहीं आदि-मानव द्वारा आग के आविष्कार से लेकर उनके द्वारा कई पुराने गुफाओं में आग से जुड़े संबंधित चित्र भी इसका साक्ष्य है कि मानव बल्ब के आविष्कार के पहले से ही अन्य रूपों में प्रयोग कर रहा है. लेकिन बृहद स्तर पर टिकाऊ रूप में देखा जाए तो रात में मानव द्वारा रात को कृत्रिम रोशनी का प्रयोग बल्ब के आविष्कार के बाद ही हुआ.
मुझे अभी-भी याद है गाँव की वे रातें जहाँ मैने कक्षा आठ तक पढ़ाई की है. उस समय न तो एमरजेंसी लाइट थी और न ही ज्यादा बिजली रहती थी. भाई-बहन लालटेन या दीपक के सहारे अपनी पढाई पूरी करते थे और रात को भोजन करने के बाद आकाशगंगा में स्थित तारों से कुछ कलाकृतियां बनाकर खेलते थे. खैर अह गांव में पहले से अच्छी बिजली की सुविधा हो गई है. ऐसे में शहर से जाने का बाद भी कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिलता है. हाँ, इतना जरूर है कि जो बच्चे पहले बाग में खेलते हुए, सड़क पर चलते हुए दिख जाते थे वे सीधे हो गए हैं और ज्यादातर अब वे स्कूल के काम में और मोबाइल के जाल में कृत्रिम रोशनी से जकड़ चुके हैं जिससे निकलना, फिलहाल तो ईदगाह के हामिद के चिमटे की तरह है जो फतह तो हासिल कर सकता है पर उसे अपने दोस्तों की तरह लालच में फंसने से अपने आप को बचाना होगा.
चलिए आपको कृत्रिम रोशनी से जुड़ी एक और सच्ची घटना से अवगत कराते हैं…. यह जो घटना है वह डॉयचे वेले से लिया गया है जो कि जर्मनी की मीडिया कंपनी है…. वर्ष 1994 के 17 जनवरी का था. जगह अमेरिका के शहर लॉस एंजलस की है. हम आपको बता दें कि यह वही एंजलस है जहाँ से हॉलिवुड का कमान संभाला जाता है और जो कसीनो और चकाचौंध से पूरा माहौल बना रहता है. उस दिन यानि 17 जनवरी के दिन वहाँ 6.6 की गति से भूकंप आया. जिस समय यह भूकंप आया वो रात का समय था ऐसे में वहाँ के लोगों में भगदड़ सी मच गई. ज्यादातर लोगों ने पुलिस को फोन करके एक ही कंप्लेन की, कि वे अभी तर केवल धरती के हिलने से डर रहे थे परंतु उन्हें उससे कहीं ज्यादा डर आसमान को देखकर लग रहा है. जिसमें आगे कहा कि आसमान में कुछ जगमगा रहा है…..
कुछ टिम-टिमा रहा है. वास्तव में यह और कुछ नहीम बल्कि आकाशगंगा में चमकते तारे थे जिसे लॉस एंजलस के लोगों ने कभी नहीं देखा था. परंतु बिजली चले जाने के कारण घनघोर अंधेरे ने लोगों का घेर लिया. जिसके चलते वह आकाशगंगा, जो प्रकाश के होने का कारण अदृश्य था वह सबके समक्ष प्रकट हो गया.
इसका सीधा-सा उत्तर दिया जाए तो, प्रकृत की हर वो वस्तु चाहे वह जीवित हो, निर्जीव हो, अस्तित्व हो या हो सकने की आशंका हो सभी का संतुलन एक-दूसरे पर पूरी तरह से आश्रित होते हैं. ठीक इसी प्रकार से अंधेरे का महत्व भी हम सभी के जीवन में है. यदि हम मान लें कि अंधेरा कभी-भी हमारे जीवन में पैर न रखें हम उजाले में ही हर समय अपना जीवन व्यतीत करें. ऐसे में आपको पहले ही अगाह कर दें कि आपको ऐसी बिमारियों से सामना हो सकता हो जिससे शायद ही आप सामना करना चाहेंगे.
अगर आप दिन के प्रकाश में ही रहने लगते हैं तो ऐसे में आपको नांद न आने की समस्या और जिसके चलते डिप्रेशन की समस्या और इसी का साथ आपको मोटापे की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है. ऐसे में इसके ज्यादा चांसेज हैं कि आपके शरीर का टाइम क्लाक में पूरी तरह से बदलाव हो जाए और जैसे ही आपका टाइम कलॉक हत्थे चढ़ा उसी समय आपके पाचनतंत्र भी जवाब दे सकते हैं. जिसके चलते मधुमेह, हार्ट अटैक जैसी घाटक बिमारियाों के शिकार आप असानी से बन सकते हैं.
आपकी आँखों के हमेशा प्रकाश में रहने से आँखों की रेटिना पर असर होता है जिसके कार आपको नाइट ब्लाइंडनेस, नज़र का कमजोर होना और अंधे होने के चांसेज में बड़ोतरी हो सकती है. वहीं कृत्रिम रोशनी के कारण महिलाओं में इन बीमारियों के साथ-साथ स्तन कैंसर जैसी बिमारियों के प्रतिशत में वृद्धि होने की शंका ज्यादा हो जाती है.
हमने पहले ही आपको बता दिया है कि इस संसार में हर वस्तु का एक काम है और सभी दिखने वाले वस्तु प्रत्येक दूसरे वस्तु से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे पर आश्रित हैं. ऐसे में अगर कृत्रिम रोशनी का असर मानव पर पड़ा है तो जाहिर सी बात है कि इसका प्रभाव पर्यावरण पर जरूर ही पड़ा है. जिसके चलते पक्षियों के बिगड़ते क्लॉक को आप थोड़ी सी जहमत उठा कर स्वयं ही परख सकते हैं. वहीं कृत्रिम रोशनी को लेकर कछुओं पर किए गए एक शोध में यह भी बात उजागर हुई है कि ज्यादातर कछुए रोशनी का कारण अपना रास्ता अंडे से निकलने के बाद भूल जाते हैं और शिकारियों का आसानी से शिकार हो जाते हैं.
वहीं पेड़ों की बात की जाए तो ऐसा माना जाता है और शोध में भी पता चला है कि पेड़ जहाँ अंधेरे में खुद के जड़ो को बेहतर ढंग से मजबूत करने का काम करते थे वहीं कृत्रिम रोशनी के कारण उनकी गतिविधि में बाधा उत्पन्न हो रही है. जिससे वे समय से पहले ही सूखे जा रहे हैं.
अंधेरे की अहमियत को अपने जीवन में उतारना बहुत ही सरल है लेकिन तभी तक, जब तक पर्यावरण के सहने की क्षमता खत्म न हो गई हो कहने का तात्पर्य है, धनुष से बांड़ छूटने से पहले आप के पास समय है पर बाद में पर्यावरण कोई की दीन-भावना अपने अंदर नहीं रखता. ऐसे में समय रहते हुए इन बातों का पालन कर सकते हैं……..
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