जामिया हूं मै, जामिया हूं मै
By SHUBHAM ROY बड़े-बड़े सपने बुनकर ,अपनी खुद की राह चुन कर,उम्मीदों के नावों में बैठे इन बच्चों का ,बीच भंवर फंसे इन सपनों का,खुद मांझी बन, पतवार थाम,बार-बार, हर…
आइये कुछ नया करते हैं
By SHUBHAM ROY बड़े-बड़े सपने बुनकर ,अपनी खुद की राह चुन कर,उम्मीदों के नावों में बैठे इन बच्चों का ,बीच भंवर फंसे इन सपनों का,खुद मांझी बन, पतवार थाम,बार-बार, हर…
द्वंद्व से मानव घिरा,निज जीवन की आश में ,स्वयं को साध्य अमर्त्य मानताभौतिकता के आभास में !अधर आलिंगन में प्रकृति की ,करता रहा दीदार ,आत्म-अभिव्यक्ति के अन्तःस्थल में ,व्यक्त उद्गार…
निर्झर किंचित की स्वरों से ,एक आस सी मन में रहती है ,संकल्प शक्ति की यह भावना ,निज भाषा से रहती है ! लेकर यह अदम्य कल्पना ,खुद को खुद…
एक खाली गोद ,और एक सामाजिक धब्बा,क्यों बनती हैं वो अकेली इसदुर्भाग्य का हिस्सा?? कुछ मिचलन और उबकाई ,मानो कुछ आशाएं दे जाती हैं। फिर तेज धडकने,उम्मीदों से चमकती आंखें,भीगी…
यह सोच कर कभी -कभी मेरी स्त्रीत्व भी शरमा जाती है कि, बिना कुछ सोचे बिना कुछ समझे… अपनी ही जाति के लिए हमारी उंगलियां… कैसे उठ जाती हैं? हां…
सुनो! नई दिल्ली की पुरानी मकान की तरह हो तुम आधुनिकता की लंपट चुने,प्लास्टर, रंगों से एकदम दूर औरों की तरह मुझे किराएदार नही बनना है तुम्हारा, ना ही मुझे…
You must be logged in to post a comment.