मैंने न्याय और सत्यता (यहां सत्यता का अर्थ अंग्रेजी के “गुड” से है, क्योंकि दर्शन के परिपेक्ष्य में इस शब्द का हिन्द अनुवाद “अच्छा” नहीं लिखा जा सकता है, इसलिए दार्शनिक अनुवाद के लिहाज से सत्यता हिन्दी में समकक्ष शब्द प्रतीत होता है।) के बारे में प्लेटो के डायलॉग यूथेफ्रो में सुकरात के विचारों से बेहतर विचार अभी तक नहीं पढ़ा है। बाकी भविष्य की मैं कुछ कह नहीं सकता हूँ।
हालांकि यूथेफ्रो डायलॉग को पढ़कर यह बहुत हद तक समझा जा सकता है कि न्याय और सत्यता क्या है? और इसके कौन कौन से आयाम परिस्थितियों एवं न्यायिक सन्दर्भों के लिहाज से परिपक्व हो सकते हैं।
प्लेटोनिक डायलॉग यूथेफ्रो में सुकरात जब न्याय की बात करते हैं जो वह इस तथ्य की गहराई से पड़ताल करते हैं कि न्याय की व्याख्या या उसकी अवधारणा किन किन आधारों पर बनती है?
न्याय और सत्यता
अगर हम न्याय का परिसीमन किसी परिस्थिति को मद्देनजर रखते हुए करते हैं तो ऐसे में हमें इन तरह के प्रश्नों का सामना करना पड़ सकता है कि १. उक्त परिस्थितियों की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जरूर क्या रही है और भविष्य में क्या होगी? २. उक्त परिस्थिति की जो अनिवार्यता है वह भविष्य की परिस्थितियों के लिहाज से कितनी सही है? ३. उक्त परिस्थिति को ध्यान में रखकर जो न्याय का मापदंड तैयार किया गया है वह कितना न्यायोचित है?
इसके बाद अगर हम न्याय का परिसीमन किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखते हुए करते हैं तो ऐसे में हमें इस तरह के प्रश्नों का सामना करना पड़ सकता है कि १. उक्त व्यक्ति जिसको ध्यान में रखते हुए हमनें न्याय का मापदंड तैयार किया है लिहाजा उक्त व्यक्ति को मद्देनजर रखते हुए बनाया गया न्यायिक मापदंड समाज को किस तरह से विकसित करता है? २. उक्त व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए बनाए गए न्याय के सिद्धांत उस उक्त व्यक्ति के लिहाज से ठीक हैं, लेकिन समाज की जरूर के हिसाब से वह कितने कारगर हैं?
उपरोक्त लिखित दोनों ही पहलू किसी भी व्यवस्था में न्याय और सत्यता के लिए पृष्टभूमि तैयार करते हैं। ऐसे में किसी राष्ट्र, संघ, राज्य या फिर एक जनजातीय समुदाय ही क्यों न हो, न्याय और सत्यता वहां पर व्याप्त व्यवस्था के अनुसार ही होगी; फिर चाहे वह किसी अन्य व्यवस्था के लिए अन्याय ही क्यों न हो।
अंत में सम्भवतः यह कहा जा सकता है कि न्याय किसी को कभी नहीं मिलता, बल्कि न्याय लेना पड़ता है और हमें कैसा न्याय मिलेगा वह उक्त राष्ट्र, संघ, राज्य या फिर समुदाय में व्याप्त व्यवस्था तय करती है।
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