आधुनिक होती जिंदगी में मां के बच्चों से बदलते रिश्ते…… आधुनिक होना कोई गुनाह नहीं है. परन्तु वहीं आधुनिकता जब आपके और आपके परिवार के बीच नकारात्मक प्रभाव दिखाने लगे तो वह गलत है. मै ये नहीं कहता कि इसके डर से आप अपना विकास करना छोड़ दें और आप इस दुनिया से कट जाएं. लेकिन आपको आधुनिकता और उसके प्रभाव के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव को देख कर ये कदम उठाना चाहिए.
खैर आधुनिक होती जिंदगी में मां के उनके बच्चों से बदलते रिश्ते के बारे में कहूं तो पिछले लगभग दो दशकों में कई परिवर्तन देखने को मिले. जिसमें कई तो सकारात्मक रूप में सामने आए तो कहीं नकारात्मक रूप लेकर मां के रिश्ते पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया.
आधुनिक होती जिंदगी में मां के बच्चों से बदलते रिश्ते
हममें से शायद ही किसी को पता न हो कि मां ही हमारी पहली गुरु होती हैं. जो हमें सिखाती है कि, किसी को अपने जीवन की रूप रेखा कैसे चालानी चाहिए, कैसे सही पथ का चुनाव करना चाहिए, बड़ों से छोटो से कैसे व्यवहार करना चाहिए, सपनों को कैसे संजो कर उससे महल कैसे तैयार करना चाहिए, आदि बातें वे बचपन में ही अपने बच्चों को सीखा देती हैं ताकि उनके बच्चों के पैर कामयाबी के सीढ़ियों पर हमेशा चड़ते रहें और नाम रोशन करते रहें.
परन्तु, अगर मै कहूं की आधुनिकता के इस दौड़ में मां के द्वारा बताए जाने वाले पाठ ठंडे बस्ते में चले गए हैं और आज बच्चे ज्यादातर दूसरी शिक्षा लेने लगे हैं तो क्या कहेंगे आप. हां, आज के समय में भी ऐसी माताएं हैं जो अपने बच्चों को गुरु की पहली शिक्षा दे रही हैं पर अधिकांश महिलाओं ने आज अपने बच्चो को तकनीक और आधुनिकता के डंडे से बांध दिया है. क्योंकि उन्हें अपने को दिखाना है कि वे भी मॉडर्न जमाने से ताल्लुक रखती हैं. जिसके लिए उन्हें अपने बच्चे को नेट के सहारे छोड़ कर जाना पड़ता है.
मै, यहां किसी के विपक्ष में नहीं हूं और न ही मुझे कोई दिक्कत है कि मां बाहर निकलकर पुरुषों से हाथ से हाथ मिलाकर चल रही हैं और मै यह कहने वाला भी कोई नहीं हूं कि कौन क्या कर रहा है. बल्कि यह तो एक सकारात्मक पक्ष है कि माएं घर से बाहर निकलकर देश के विकास में सहयोग कर रही हैं. लेकिन फिर वही प्रश्न उठता है कि मां के बाहर काम करने पर बच्चों के ऊपर कोई प्रभाव पड़ता है तो इसका सीधा सा उत्तर बच्चे के आसपास के पर्यावरण और उसके मां के रवैए से समझा जा सकता है.
आप इसके लिए अनुष्का शर्मा, आलिया भट्ट जैसे माओ के संदर्भ को ले सकते हैं और समझ सकते हैं कि आप काम के साथ परिवार के हर छोटे बड़े कार्यक्रम में बच्चे को कुछ न कुछ ज्ञान दे सकते हैं, उनके साथ बिना कोई भाव दिखाए उनसे खेल सकते हैं.
मसलन उदाहरण के लिए लें तो भारत में रानी लक्ष्मी बाई जैसी योद्धा ने जन्म लिया है. जिसने अपने बच्चे को पीठ पर बांधकर अंग्रेज़ो के दांत खट्टे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. भारत की पहली महिला शिक्षिका सरोजनी नायडू ने अपने घर के साथ पूरे समाज को शिक्षित किया. कस्तूरबा गांधी जिन्होंने भारत देश के आज़ादी के लिए जेल के चक्कर काटे पर फिर भी देवदास गांधी जैसे पुत्र को अच्छे संस्कार से भरा और शिक्षक बनाया.
वहीं आज कि महिलाएं जो मां बन रहीं हैं उनके लिए ये युद्ध जैसा हो गया है कि वे उसको कैसे संभाले और ऐसे में अमृत से ज्यादा जहर का प्रकोप बढ़ रहा है.
मेरे कहने का तात्पर्य बस इतना ही है कि जब वे माएं होकर देश के साथ अपने बच्चे को गुरु के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा दे सकती हैं. तो ऐसे में आज के वर्तमान समय में जब आधुनिकता के उनका काम आसान कर दिया है तो ऐसे में वे स्वावलंबी की शिक्षा और मातृत्व कि शिक्षा की जगह आधुनिकता के काले पन्नों कि शिक्षा ज्यादातर महिलाएं क्यों देते हुए दिख जाती हैं.
आज ज्यादातर महिलाएं अपने स्तन से अपने बच्चे को दूध इसलिए नहीं पिलाना चाहती क्योंकि इससे उनका स्तन कमजोर हो सकता है. वहीं कुछ महिलाएं इसलिए बच्चों को दूसरे पर छोड़ देती हैं क्योंकि इससे उनका स्टेटस निकल कर सामने आता है. कुछ महिलाएं किसी प्रेमी के लिए अपने बच्चे का गला घोंटने में परहेज नहीं करती. वहीं कुछ महीलाएं ऐसी भी हैं जो मजे का लिए बच्चा तो पैदा कर देती हैं पर उसके धरती पर आते ही उनका मजा पूरा हो जाता है और वह शिशु, किसी नाले में, गटर में या कूड़ेदान में मरा या जिंदा मिलता है…
वह बच्चा जो घर में मां के पास न होकर उससे दूर है तो जाहिर सी बात है कि उसके मन में मां के लिए वो प्रेम नहीं आएगा जो कि मां के आंचल में छुप कर उसे प्राप्त हो सकता है. वहीं मैंने देखा हुआ है कि आज कि अधिकतम माएं बच्चो को संभालने में दिक्कत का सामना करती हैं और इसके निदान के लिए अपने बच्चे के हाथ में मोबाइल फोन, टैबलेट या लैपटॉप थमा देती हैं. और फिर अपने काम में मस्त हो जाती हैं. मां का बच्चे के प्रति ये रवैया आधुनिकता के काले पन्ने का गोरा सच होते दिख रहा है. जिसे समय पर समझ कर ठीक कर लेना बहुत ही जरूरी है.
मै इन बातों को समक्ष रख कर आपको अपना एक उदाहरण बताता हूं जो कि मै आज वर्तमान में खुद गलत करते हुए देखता हूं और उसे सुधार करने की कोशिश और आगे न करने का प्रण लेता हूं. मुझे बचपन के वो दिन याद हैं जब मै मां के बिना एक बात भी नहीं रहा सकता था. तकनीक उस समय ज्यादा थी नहीं पर उस समय के हिसाब से बहुत ज्यादा थी.
मां मुझे और मेरी बहन को हमेशा कोइ न कोई अच्छी बात, चाहे वो सोने से पहले, सुबह स्कूल जाने से पहले, समाज में हो रही बुराई को लेकर, अचार व्यवहार के प्रतिदिन मापदंडों को लेकर, चोट लगने पर प्यार से फूंक मारने और कोने में लेकर दुलार करने और भाई- बहन में लड़ाई होने पैर मां के हाथों हर चीज खाई और समझी है. आज भी मां एक अभिन्न रंग के रूप में हमें समझाती हैं और आज भी कुछ होने पर उनके है गोद में सिर रखकर रोता हूं उनसे बातें करता हूं. ये सब इसलिए क्योंकि मां ने हर वो शिक्षा से मुझे नमाजा है जहां आधुनिकता का काला साया हमारे सामने नहीं आया है.
लेकिन आज के समय में ये देखने को मिल रहा है कि आज जो ऊपर लिखे हुए हैं उसका मां ने कारण का एक ही हल ढूंढ लिया है कि चोट लगे तो फोन पकड़ा दो, बात करने का मन हो तो फोन थमा दो, अगर मां के पास लेटना चाहो तो समाज क्या कहेगा, फला का बच्चा वीडियो बना रहा है तो मेरा भी बच्चा बनाए वीडियो.
कहने का तात्पर्य ये है कि आज हर वस्तु जो बच्चे के लिए जरूरी होनी चाहिए उसके स्थान पर प्रतिष्पर्धा ने आकर अपने आवेश में ले लिया है, जिसके लिए आज मां पूरी तरह ध्वस्त होते हुए दिख रही हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि आज वर्तमान को देख कर लगता है कि माओ ने बच्चों को प्रोडक्ट्स समझ रखे हैं जिससे उसका मानसिक विकास भी वैसा ही हो गया है. जिसमे अपनत्व कि महक भंग हो चुकी है.
किसी का प्यार किसी के लिए तब बढ़ता है जब वह पास आए, बैठे, मुस्कराए, उससे बात करे, परेशानियों को समझे उसे हल करने का प्रयास करे. ऐसा न हो कि बच्चा आधुनिकता के चक्कर में किसी बुरे जाल में फंसे जिससे कोई वापसी का रास्ता न हो. और याद रखिए इसके जिम्मेदार हम ही होंगे.
इसी के साथ ये याद रखें कि ये पोस्ट बेशक बच्चे की पहली गुरु मां का उसके बच्चे के साथ आधुनिक होते जिंदगी में बदलाव को लेकर है पर ये सारी चीजे उस बच्चे के पिता, दादा दादी, आस पड़ोस के लोगों पर भी सामान्य रूप से लागू होता है.
अकेले मां को ही अपराध का साक्षी मानना नियत के कालचक्र पर सामान नहीं है, ऐसे में सबका ये कर्त्तव्य है कि बच्चे को मोबाइल को दूसरे बनने से पहले उसे उसके दुनिया से जोड़ा जाए . ताकि अपने कर्त्तव्यों को समझ कर गड्ढों को पाट कर उसे फिर से खुशनुमा बनाया जा सके. फिलहाल अभी भारत देश में इसका प्रभाव बहुत कम देखने को मिलता है पर जो परिस्थिति उत्पन्न होते दिख रही है उससे यही लगता है कि वृद्धा आश्रम की संख्या में कहीं वृद्धि न हो जाए.
आधुनिकता ने चकाचौंध ने बेशक आज हमारी आंखों को चौंधियां दिया है. पर ये मां के साथ हमारे उपर निर्भर करता है कि आपको अपने बच्चे से दूर हो जाना है या पास होकर और आधुनिकता के सकारात्मक विकास को पकड़कर पैर से पैर मिला कर अपने बच्चे के साथ चलना है. समाज आपको इसलिए नहीं पहचानता की आप अमीर है समय नहीं निकाल पा रहे हैं बल्कि, समाज आपके अच्छे शिक्षाओं से प्रभावित होते है अच्छे कार्यों से प्रभावित होता है. जिसके लिए आपको अपने बच्चे के साथ समय निकालना होगा, उसकी बातों को सुनना होगा, उसके अच्छे बुरे में फर्क समझाना होगा. याद रखिए आधुनिक तो हो जाएंगे आप पर अंतिम समय में आधुनिकता नहीं वरन् आपका प्रेम ही आपको साथ लाएगा.
आधुनिक होती जिंदगी में बच्चों से बदलते रिश्ते को देखते हुए इन बिंदुओं से अपने और अपने बच्चे को दूर रखना चाहिए
- भविष्य की राह में बच्चे के वर्तमान को भेंट न चड़ा दें. समय के अनुरूप है उसके साथ व्यवहार करें और समय के जरूरत के हिसाब से सकारात्मक शिक्षा की तरफ उसका मुख मोड़ें.
- स्मार्ट फोन, टैबलेट और लैपटॉप जैसे उपकरणों को बच्चे कि दूसरी मां बनने से रोकें, क्योंकि यह एक ऐसा जाल है जो सुकून देता तो है पर आपके दिमाग को संकुचित और चिड़चिड़ा बना देता है. ऐसे में जहां तक हो सके उसके साथ बाहर घूमने जाएं उसे सच्ची दुनिया दिखाएं, हर चीज जो वह पूछे उसके लिए फोन न थमा दें. और उसे संबंधित उपकरणों के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव को भी समझाए. इसी के साथ यह भी सत्य है कि बच्चे को आधुनिकता से काटा तो नहीं जा सकता परन्तु समय निर्धारण करके उसपर नकेल कसने की पूरी कोशिश करनी चाहिए.
- बच्चे को बच्चे के रूप में देखा जाए न की किसी जगमगाते स्टेज के प्रोडक्ट्स के रूप में.
- परंपराओं का दम घोंट कर उसे राई का पहाड़ पर नहीं चढ़ा देना चाहिए कि उसका जो मन करे वो करे. वास्तव में खुला छोड़ने से पहले उसे अपने संस्कृति, अचार विचार, परंपरा के बारे में जरूर बताना चाहिए ताकि उसे गलत और सही का भान हो. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप किसी को तोड़ना चाहते हैं तो उसके संस्कृति के नींव को हिला दीजिए वो खुद टूट जाएगा. ठीक इसी प्रकार से आज कई लोगों के संस्कृति को तोड़ कर उसे अपना गुलाम बनाने का प्रयास किया जा रहा है.. वहीं आप बच्चों को परंपराओं से अवगत करा कर बच्चो को मजबूत बना सकते हैं.
- बच्चों को ये समझाना चाहिए कि वे सपनों को इस प्रकार से बुने कि उनकी सीमा भी निर्धारित हो सकें. हां, थोड़ा अजीब है कहना लेकिन बिना लगाम के आप अपने सफलता को प्राप्त नहीं कर सकते. ये बात और है कि एक सपने के साकार हो जाएं पर आप उसकी सीमा को और बढ़ा सकते हैं. परन्तु समय के साथ आपको अपने रेखा पर ध्यान रखना चाहिए.
- आज के इस आधुनिक युग में हर वो वस्तु दिमाग को मदहोश कर देने वाली है जो किसी बच्चे के आंखों के सामने तैर जाती है ऐसे में आपका कर्तव्य है कि उसे समझाएं कि वह जिस वर्ष में है उसके लिए वहीं अच्छा है जो उसे अभी मिल रहा है. ऐसे में उसे ये भी बताएं की अमृत सी दिखने वाली वस्तु का एक निश्चित सीमा से ज्यादा दोहन जहर के समान है. जिसके चलते उसे सोच समझ कर कोई विचार को कार्यान्वयन में लाना चाहिए.
- बच्चे को ये भी समझाना जरूरी है कि अपनी से ज्यादा अगर आप अपनत्व में डूबे जा रहे हैं तो समय रहते ही नाव को घुमा लें, वरना आगे चलकर ये जब पतन का कारण बनेगा उस समय नाव आप चाहकर भी नहीं घुमा पाएंगे.
आपको ये याद रखना चाहिए कि आप इन बिंदुओं पर अमल तभी कर सकते हैं जब आप स्वयं अपने बच्चे के लिए समय निकाल पाते हो. तब इन बिंदुओं का कोई महत्व नहीं है जब आप अपने बच्चे को आधुनिकता के उस भेड़चाल में झोख देना चाहते हो. जिसका अंत कितना डरावना होगा ये आप अभी वृद्धा आश्रम में जाकर देख सकते हैं. आधुनिकता बेशक हमारे जीवन का पूरक हो सकता है पर अपनों के खुशियों के भेंट चड़ाकर नहीं. कुम्हार सबको एक ही सांचे में ढालता है वो बाद कि बात है कि उसका परिणाम कैसे निकला है.
(वर्तमान परिदृश्य को देखकर, बहुत विचार- विमर्श, सोच समझकर ये लेख आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ… आप सब पाठक वर्ग के प्रकिया को इंतेजार रहेगा…….)
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