मां अपने बच्चे के लिए क्या नहीं कर सकती है? वास्तव में यह प्रश्न जितना सीधा लग रहा है उतना सीधा है नहीं। कहने का तात्पर्य है कि जो माँ बच्चे के जन्म से पहले उसे अपने कोख में नव महीने तक रखती है उसे अपने अमृत रूपी प्रेम से सींचती है, उसके संसार में जन्म लेने पर उसका अधिकार उसे दिलवाती है उसे सम्मान दिलवाती है, कोई विपत्ति आने पर उसे आंचल में छिपा लेती है.
ऐसी ममता भारी मां के बारे में अगर उसके बच्चे को लेकर पूछा जाए कि वो अपने बच्चे के लिए क्या नहीं कर सकती तो सोचने वाली बात है. असल में हमने ज्यादातर किताबों में माँ के बारे में हुए बखान के बारे में ही सुना, पढ़ा और देखा है। पर आज हम इस लेख के माघ्यम से देखेंगे कि माँ अपने बच्चे के लिए क्या नहीं कर सकती हैं…
माँ एक कुम्हारन
माँ अपने बच्चे के लिए एक कुम्हार की तरह होती है जो अपने घड़े को बनाते हुए इस बात का ध्यान रखती है कि उसके बनाए घड़े गर्मी के मौसम में शीतल और प्रकृति के सौन्दर्य को बनाए रखे ताकि लोग उस घड़े के माध्यम से, घड़े बनाने वाले कुम्हार की सराहना करें.
परन्तु, वहीं घड़ा रूपी बच्चा अपना वर्चस्व या अपने संस्कार को भूलकर आगे बढ़ जाता है तो ऐसे में लोग उसे खराब घड़ा मानकर फेंक देते है जिससे उस कुम्हार के कार्य और बच्चे के संस्कार पर धब्बा लग जाता है और लोग उससे दूर होने लगते है. मां बच्चे की कुम्हार अवश्य हैं परन्तु एक बार सांचे में ढाल देने और उसमें भट्टी में बदलाव आ जाने के बाद वो अपने बच्चे को देखने के सिवाय और कुछ भी नहीं कर सकती हैं.
मां से दूरी है या बच्चे की मजबूरी
हर मां का सपना होता है कि उसका बच्चा एक अच्छा इंसान बने, अपने हर अच्छे सपने को पूरा करे जो उसने बचपन देखा है. ऐसे में कई बार बच्चे को अपने मां से दूर होना पड़ता है जो कि मां चाह कर भी रोक नहीं सकती हैं और उसे अपने से अलग कर देती हैं.
मां के लिए उनका बच्चा दस साल से ज्यादा का नहीं
मां का स्वभाव ऐसा होता है कि अगर उनका बच्चा पचास साल का भी हो जाए, पूरे परिवार को अपने कन्धें पर श्रवण कि तरह लेकर चल रहा हो. लेकिन फिर भी वह अपनी मां के लिए दस वर्ष का बच्चा ही रहेगा और वह अपने बेटे से उसी रूप में बात करेंगी जैसे वो दस साल का हो. ऐसे में मां अपने बच्चे को कभी भी दस वर्ष से ऊपर चाहकर भी नहीं कर पाती हैं और वह मां के नजरो में एक छोटा बच्चा ही रह जाता है.
रोटियों की गिनती मां को नहीं आती
मां अपने बच्चो को रोटियां देते हुए बहुत बढ़ी गलतियां कर जाती हैं. न जाने क्यों इतना पढ़ने और बताने के बाद वे रोटियों की गिनती में गढ़बड़ी कर जाती हैं और हमेशा एक दो रोटी थाली में ज्यादा रख जाती हैं. न जाने क्यों उनकी ये गलती बच्चो के साथ ही होती है अपने लिए रोटी लेते हुए गिनती ठीक हो जाती है.
मां के लिए उनके बच्चे ही सबकुछ होते हैं. पिता बेशक साया बनकर बच्चो के साथ होते हैं पर बच्चों पर ज्यादा फटकार मां को ज्यादा बर्दास्त नहीं होती. वो चाहकर भी अपने बच्चे के लिए गलत नहीं सुन सकती हैं पर वे खुद अपने बच्चे को बेलन, चौके, चिमटे और कभी तो चप्पल से या हाथ से धावा बोल देती हैं. लेकिन फिर भी मां अपने बच्चे के लिए उसके बुरे कर्मों या बीमारियों को नहीं ले सकती है.
READ MORE
- पिता को पत्र
- Radio Day: Celebrating the Legacy of Radio Broadcasting
- शहर के चकाचौंध में गुम होते तारे
- The Titanic: A Tragedy that Shocked the World
- Munshi Premchand: The Literary Genius