आज(नान लीनियर संपादन) के इस 21वीं शताब्दी में जहाँ लोगों को एक सेकेण्ड का भी धैर्य नहीं है ऐसे में फिर कोई अपने कार्य को पूर्ण करने के लिए पुराने उपकरण को क्यों प्रयोग करना चाहेगा. यही बात पूरी तरह से वीडियो संपादन के तरीके पर लागू होती है. हम ये नहीं कह रहे की प्रत्येक विधि ने अपना योगदान नहीं दिया है, पर आज के समय में जब टेकनीक(नान लीनियर संपादन) ने विकास कर लिया है तो पहले आई तकनीक के सामने बड़ी ही लगती है. हाँ, ये बात सही है कि हर तकनीक की अपनी एक खासियत होती है, उसके अपने कुछ फायदे तो कुछ नुकसान भी होते हैं. हालांकि, वर्तमान में देखे तो अधिकांश वीडियो संपादक अपने वीडियो को एडिट करने के लिए प्रोडक्शन में नॉन-लीनियर एडिटिंग का प्रयोग करते हैं. परंतु इसके साथ यह ध्यान देना जरूरी है कि प्रत्येक विधि कैसे काम करती है.
क्यों एडिटर, नॉन- लीनियर मेथड को पसंद करते हैं, इन सब में अंतर क्या है? इन सब को हम विस्तार से आगे जानेंगे…..
पहले तो यह समझ लें की लीनियर मेथड से तात्पर्य एक लाइन से है या रेखाकार है... वहीं नॉन-लीनियर से तात्पर्य जो रेखीय न हो... इसको उदाहरण से समझें तो लीनियर संपादन हाईवे का वह रूट है जिसपर एक बार चड़ जाने के बाद, आपका उसी रूट से वापस पीछे जाना मुश्किलों और खतरों से भरा हो सकता है. ऐसे में आपको दोबारा वापस आने में समय के साथ बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ सकता है. ऐसी मुश्किल न आए इसके लिए आपको पहले ही रोड मैप बनाकर रखना बहुत जरूरी है. फिर वह चाहे ट्रेवलिंग हो या फिर लीनियर माध्यम से वीडियो का संपादन.....
वहीं नॉन-लीनियर वह माध्यम है जिसमें आप कहीं से भी घूम कर रोड पर चल सकते हैं. इसमें आपको जैसे ही पता चलता है कि इस रूट को नहीं लेना था आप उसी समय बिना समय खराब किए मुड़ सकते हैं. कहने का तात्पर्य बस इतना ही है कि यह एक लचीला माध्यम है जिसे समय के अनुसार धार दिया जा सकता है और एडिट किए हुए को फिर से बिना किसी मुश्किल या परेशानी के दोबारा एडिट कर सकते हैं. बस इसी के कारण एडिटर इसे बहुत ज्यादा महत्वता देते हैं.
फिल्म़ स्प्लिसिंग वीडियो संपादन तो नहीं पर संपादन का जड़
फिल्म स्प्लिसिंग को तकनीकी रूप से कहा जाए तो यह वीडियो संपादन नहीं है, बल्कि इसका उपयोग वीडियो के शुरुआती दौर में फिल्म को संपादन करने के लिए फिल्म निर्माताओं द्वारा किया जाता था. परंतु इसका उल्लेख किए बिना वीडियो एडिटिंग के जड़ को नहीं खड़ा किया जा सकता है. इसी के साथ इसका उल्लेख करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह गतिशील तस्वीरों को संपादित करने का पहला सफल तरीका रहा है और इसी कारण के चलते यह यह सभी प्रकार के वीडियो संपादन का आधार या जड़ बनता है.
फिल्म़ स्प्लिसिंग को परम्परागत रूप से देखें तो फिल्म संपादन में फिल्म के शॉट्स या सेक्शन को काटकर उन्हें दोबारा व्यवस्थित करना और उनमें से खराब शाट्स को निकाल देने से है. फिल्म़ स्प्लिसिंग की यह प्रक्रिया जितनी सरल है उतनी ही ज्यादा यांत्रिक भी है. सैद्धांतिक रूप से अगर देखा जाए तो एक फिल्म को एक कैंची और कुछ स्प्लिसिंग टेप के साथ संपादित किया जाता था. हालांकि अगर देखा जाए तो स्प्लिसिंग मशीन ही एकमात्र इसका व्यावहारिक समाधान रहा है.
एक स्प्लिसिंग मशीन के अंतर्गत पहले तो अच्छे फिल्म फुटेज को रेखांकित कर ली जाती है और फिर इसे एक स्थान पर काटने के लिए रख दिया जाता है. इसके बाद इसे एक साथ काटा और स्क्रिप्ट के अनुसार विभाजित किया जाता है और फिर इसे जोड़ दिया जाता है.
लीनियर संपादन या टेप-टू-टेप संपादन
लीनियर संपादन की बात करें तो यह 90 के दशक तक कंप्यूटर में वीडियो संपादित करने से पहले, कंप्यूटर में इलेक्ट्रॉनिक वीडियो टेप को संपादित करने की मूल विधि थी. हालांकि, कंप्यूटर आने के बाद यह विधि प्रड्यूसर के लिए पसंदीदा विकल्प से हटती चली गयी. लेकिन अगर देखा जाए तो कुछ परिस्थितियों में आज के समय में भी इस माध्यम का उपयोग लाया जा सकता है.. और इस बात का निर्णय की यह कितना उपयोगी है उपयोग के बाद ही जाना जा सकता है.
लीनियर संपादन में, वीडियो को एक टेप से दूसरे टेप में बड़े ही चुनिंदा रूप से और बड़े ही धैर्य से कॉपी किया जाता है. लीनियर संपादन करते हुए कम से कम दो वीडियो मशीनों की जरूरत पड़ती है. इन दो वीडियो मशीनों को एक साथ कनेक्ट किया जाता है. कनेक्ट हुए मशीनों में एक मशीन को स्त्रोत के रूप में रखा जाता है और दूसरे मशीन को रिकॉर्डर के रूप में रखा जाता है. बाकी अगर इसके मूल प्रक्रिया की बात करें तो वह काफी सरल है. एक टेप को सोर्स मशीन में रखें जिसे संपादित किया जाना है और दूसरे वीडियो मशीन में खाली टेप रखें. इस खाली टेप में संपादित वीडियो को भरा जाएगा.
इसकी प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है…. पहले तो सोर्स मशीन पर प्रेस बटन को दबाएं और फिर दूसरे वीडियो रिकॉर्डर पर रिकार्ड बटन के प्रेस करें. इसमें एडिटिंग के दौरान सोर्स टेप के कावल उन हिस्सों को रिकार्ड करना है जो आपके विषय से संबंधित हो या फिर उससे आपका कोई प्रायोजन पूरा होने वाला हो. समान्यतः यह बात पूरी तरह से वीडियो संपादक के ऊपर निर्भर करती है कि वह क्या चाहता है.
ऐसे में वांछित फुटेज को एक टेप से सही क्रम में कॉपी कर लिया जाता है और वहीं अब नया रिकार्डेड टेप संपादित संसकरण के नाम से जाना जाता है. संपादित संस्करण की इसी पद्धति को लीनियर संपादन कहा जाता है. यानी अगर कहा जाए तो लीनियर में एक क्रम में शॉट्स लगाकर संपादन करने की एक प्रक्रिया है. सीधे शब्दों में कहें तो पहले शॉट्स से शुरू होकर आखिरी शॉट्स तक एक के बाद एक शॉट्स को, एक साथ जोड़ना ही लीनियर वीडियो संपादन कहलाता है.
लीनियर वीडियो संपादन करने के दौरान यदि संपादक ने अपना मन बदल लिया या फिर उसे वीडियो संपादन में कोई त्रुति का पता चल गया तो वह वीडियो के पिछले हिस्से में वापस जाना और फिर उसे संपादित करना लगभग असंभव सा है. परंतु थोड़े से अभ्यास के बाद, लानियर संपादन अपेक्षाकृत अन्य माध्यमों से समल और आसान हो जाता है.
नान-लीनियर संपादन या डिजिटल/ कंप्यूटर संपादन
इस विधि में, वीडियो फुटेज को कंप्यूटर हार्ड ड्राइव पर रिकॉर्ड या सेव किया जाता है या कहें तो कैप्चर किया जाता है. इसके बाद इसे विशेष एडिटिंग सॉफ्टवेयर के माध्यम से संपादित कर दिया जाता है. एक बार संपादन पूरा हो जाने के बाद, तैयार वीडियो को वापस टेप या ऑप्टिकल डिस्क में रिकॉर्ड किया जाता है.
नान-लीनियर संपादन में लीनियर संपादन के मुकाबले कई लाभ संपादक को प्राप्त होते हैं. मुख्य रूप से पहला यही है कि नान-लीनियर संपादन वीडियो संपादन करने का एक बहुत ही लचीला माध्यम है. जिसके अंतर्गत कभी भी किसी भी समय बिना किसी देरी के वीडियो के किसी भी हिस्से को काटा या उसमें बदलाव या नया कुछ जोड़ा जा सकता है. जबकि लीनियर संपादन में ऐसा नहीं होता है. पर आप कहीं भी कभी भी कुछ भी नान-लीनियर संपादन में कर सकते हैं इसलिए इसे नान-लीनियर संपादन कहा जाता है क्योंकि इसमें लीनियर फैशन में वीडियो संपादित करने की आवश्यकता नहीं होती है.
अगर नान-लीनियर के खामियों और अच्छाइयों को देखें तो यह डिजिटल वीडियो संपादक को सबसे कठिन पहलुओं में से एक , हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के जरूरत से ज्यादा विकल्प मुहैया करवाता है. जिसके कारण एक समस्या यह उत्पन्न हो जाती है कि कई वीडियो फॉर्मेट स़फ्टवेयर से मेल नहीं खाते तो कई सॉफ्टवेयर वीडियो फॉर्मेंट से मेल नहीं खाते ऐसे में असंगत की स्थिति उत्पन्न होने की समस्या सामने खड़ी हो जाती है. इसके चलते कई बार एक मजबूत संपादन प्रणाली स्थापित करना एक चुनौती भरा काम सिद्ध हो सकता है.
नान-लीनियर एडिटिंग के संदर्भ में वीडियो संपादन की प्रक्रिया

डम्पइन:- इसमें रिकॉर्ड किए गए फुटेज को कंप्यूटर सिस्टम के वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर में हार्ड डिस्क या फिर अन्य कोई माध्यम से इन्सर्ट किया जाता है. इसे इम्पोर्ट भी कहा जाता है.
रफ कट:- इस प्रक्रिया में रिकॉर्ड किए गए फुटेज को कंप्यटर सिस्टम के वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर के टाइमलाइन पर कथा-पटकथा या स्क्रिप्ट के अनुसार क्रमवार रखने का कार्य किया जाता है. इसके पश्चात ही आगे का संपादन कार्य संभव हो पाता है. इसे अंग्रेजी में सिक्वेंसिंग भी कहा जाता है.
फाइनल कट:- यह वीडियो एडिटिंग का सबसे महत्वपूर्ण भाग है. इसके अंतर्गत समस्त संपादन का कार्य होता है. जैसे- एनिमेशन, ग्राफिक्स इफेक्टस, डबिंग, मिक्सिंग, ट्रांजीशन इफेक्ट्स, फेड इन-आउट आदि आता है.
डम्प आउट:- यह वीडियो एडिटिंग प्रक्रिया का अंतिम पड़ाव है. इसमें समस्त संपादन कार्य होने के बाद अंतिम रूप में संपादित वीडियो के सामग्री का प्रसारण या भविष्य में अन्य प्रयोग के लिए अपने मेमोरी डिवाइस में संरक्षित कर लिया जाता है.
लाइव एडिटिंग या ऑन-लाइन संपादन
कुछ परिस्थितियों में जब कई कैमरों और अन्य वीडियो स्त्रोतों को केंद्रीय मिश्रण करने वाले कंसोल जिसे विज़न मिक्सर भी कहा जाता है के माध्यम से प्रसारित या रूट किया जाता है और फिर उसे वास्तविक समय या वर्तमान समय में संपादित किया जाता है. लाइव टेलिविज़न कवरेज लाइव एडिटिंग का एक उदाहरण है.
ऑनलाइन एडिटिंग का प्रयोग लाइव टेलिकॉस्ट करने के लिए किया जाता है. टेलिविजन पर लाइव टेलिकॉस्ट होने में 40 सेकेंड का वक्त लगता है और इसके बाद ही वीडियो प्रसारित होता है. READ MORE
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