गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव समाज के प्रत्येक वर्ग में देखने को मिलता है , चाहे वह भारत में हो या वैश्वीक स्तर पर । उनके दर्शन में लगभग सभी बुराइयों ( राजनीतिक, सामाजार्थिक ,सांस्कृतिक , आध्यात्मिक,पर्यावरणीय आदि ) का निवारण है ।

आज विश्व में प्रत्येक राष्ट्र स्वयं को आधुनिकता की दौड़ में सबसे आगे देखना चाहता है । वर्तमान में वैश्वीकरण/ भूमंडलीकरण ( संपूर्ण समाज एक परिवार ) सबसे प्रचलित शब्द है । जिसमें मूलतः मुक्त आर्थिक नीति ( विदेशी पूंजी का मुक्त प्रवाह ) विशेष महत्व रखता है ।
भारतीय विकासवादी/प्रगतिवादी समाज में गांधीवादी विचारधारा शायद ही जीवन के किसी क्षेत्र से अछूता हो। उनके विचारों की प्रासंगिकता इसी बात से है कि अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत दौरे के दौरान कहा था कि यदि गांधी जी नहीं होते तो मैं अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होता । गांधी के विषय में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है , ” यह संसार जो घृणा के आग की लपटों और सद्भावहीनता के कारण खण्डित है। गांधी प्रेम और सद्भावना के अमर प्रतीक हैं वह इतिहास में युगों – युगों से जुड़े हैं ।” स्वयं गांधी जी के अनुसार ” जब भी मुझे निराशा होती है तो गीता मेरा सहारा बनती है ।” गांधी जी ने राजनीति का आध्यात्मीकरण करने की बात करते हुए कहा कि ” धर्म नैतिकता का पर्याय है , वह कर्तव्य का पर्याय है ।”और राजनीति में व्याप्त बुराइयों का उन्मूलन इसके द्वारा किया जा सकता है । आध्यात्म बहुत सारे समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान प्रदान करती है ।
भारत गांव प्रधान ( लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या ) और कृषि प्रधान ( लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या) देश है । उन्हीं के व्यक्तित्व व विचारों का प्रभाव रहा कि नागौर जिला ( राजस्थान ) में पंचायतीराज व्यवस्था का शुभारंभ किया गया । ग्रामीण विकास की जरूरतों ने ही वर्तमान रूप में पंचायतीराज संस्थाओं को मजबूती प्रदान की है । जिसका उद्देश्य स्थानीय शासन , स्थानीय लोगों के हाथ में हो । लोकतंत्र सच्चा तभी हो सकता है जब उसे देश के प्रत्येक वर्ग का शारीरिक , आर्थिक एवं आध्यात्मिक सहयोग प्राप्त हो । और पंचायतीराज व्यवस्था के तहत वर्तमान में ग्रामीण विकास की विभिन्न परियोजनाओं को ग्रामीण विकास का केंद्र मानकर ही निर्मित एवं कार्यन्वित किया जा रहा है जिससे अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी को बल प्राप्त हो । क्योंकि परस्पर सहभागिता , सार्वजनिक उत्तरदायित्व और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण से ही ग्रामीण जीवन में उत्थान संभव है ।
गांधी जी का मानना था कि आर्थिक एवं राजनितिक सत्ता का विकेंद्रीकरण ही सच्ची जनतंत्र का निर्माण करती है । आर्थिक समानता हेतु गांधी जी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धांत ( वर्तमान में CSR नीति ) प्रशस्त किया । समाज के सर्वांगीण विकास हेतु गरीबों के कल्याण में धन खर्च किया जाना चाहिए । सामाजिक समानता हेतु जरूरी है कि आर्थिक असामनता में कमी हो । हालांकि वे Welfare State के नहीं बल्कि Workfare State के समर्थक थे ।
गांधी जी ने दबे – कुचले ( SC / ST वर्ग ) के उत्थान के लिए अछूतपन का विरोध किया । मनुष्य – मनुष्य के बीच व्याप्त ऊंच – नीच की निकृष्ट भावना को खत्म करने का प्रयास किया । उनके अनुसार सभी ईश्वर के संतान हैं, सभी बराबर हैं । उनके अछूतोद्धार आंदोलन से प्रभावित होकर ही भारतीय संविधान द्वारा घोषित किया गया है ‘ राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, जाति, लिंग, जन्म, स्थान किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा ‘प्रावधान है ।भारतीय संविधान में अस्पृश्यता निषेध ( अनु . 17 ) हेतु प्रावधान है । इसके अलावा जातिसूचक शब्दों के प्रयोग पर भी दंड की व्यवस्था की गई है। उनके सामाजिक कार्यक्रमों में सांप्रदायिक एकता को भी प्राथमिक स्थान दिया गया था । पिछले कुछ दशकों में लोगों की मानसिकता में भी व्यापक परिवर्तन देखने को मिल रहा है खासकर शिक्षित वर्ग में भेदभाव कम देखने को मिलता है । निश्चय ही यह गांधी जी के विचारों का ही प्रभाव है ।
किसी भी मांगपूर्ति हेतु सत्याग्रह सबसे अच्छा साधन है । गांधी जी ने भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु तीन प्रमुख आंदोलन – असहयोग , सविनय अवज्ञा एवं भारत छोड़ो आंदोलन चलाए । उन्हीं से प्रेणित होकर वर्तमान में भी कई कृषक , मजदूर , शिक्षक, या फिर छात्र आंदोलन गांधीवादी मार्ग ( अहिंसक ) को ही अपनाते हैं , जिसमें धरना या फिर कार्य बहिष्कार सम्मिलित है । और इस तरह के आंदोलनों को अपनी मांगें मनवाने में सफ़लता भी प्राप्त हुई है ।
गांधी जी का विचार था कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं । वे शांति और अहिंसा के समर्थक थे उनका यह दृष्टिकोण मानवीय मूल्यों पर आधारित था। भारत का अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत ( पंचशील सिद्धांत ) भी आपसी सौहार्द बढ़ाने की बात करता है और ” वसुधैव कुटुंबकम् ” का अनुसरण कर रहा है ।
गांधीवादी विचारों की जो महत्ता आज से 70 साल पहले थी वह आज और अधिक प्रासंगिक हो गई है । समय परिवर्तन होगा , व्यवहार परिवर्तित होंगे , लोग आयेंगे – जायेंगे परंतु प्रत्येक समाज में गांधीवादी विचारों की सार्थकता उनकी सुदृढ़ता समाज को , राष्ट्र का , एवं विश्व को नई दिशा प्रदान करेगी । वे ऐसे युगपुरुष थे जो अपने विचारों के रूप में सदैव जीवित रहेंगे ।।
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