CHHATRAPATI SHIVAJI MAHARAJ

स्वराज को साकार करने वाले शिवाजी महराज की आज जयंती है। शिवाजी का पूरा जीवन प्रेरक प्रसंगों से भरा है। मां से मिले साहस और गुरु से मिले शौर्य का समुचित व सम्यक उपयोग उन्होंने किया। अच्छे योद्धा की तरह तलवार के सापेक्ष बुद्धि की धार का उपयोग किया।

मावड़ों को प्रेरित कर उन्होंने जिन स्वराज का संकल्प सिद्ध किया, वह बहुत व्यापक था। शिवाजी ने स्थानीयता व सामाजिक विभाजन के बंधनों को खुद भी काटा, और अन्य को भी सादर प्रेरित किया। इसका सटीक उदाहरण है, उनका मिर्जा राजा जयसिंह से सामना।

जब महराज जयसिंह ने औरंगजेब के आदेश पर उनके किलों पर घेरा डाला तो, शिवाजी ने महराज ने जयसिंह को एक पत्र लिखा। उस पत्र में उन्होंने राजा जयसिंह को ससम्मान सावधान किया। वह पत्र शिवाजी जी की नीति व धर्म-देश के प्रेम को समझने का अच्छा स्रोत है।

उसी पत्र को आधार बनाकर महाप्राण निराला ने 1922 में एक कविता लिखी थी। शीर्षक था ‘छत्रपति शिवाजी का पत्र।’

कविता पत्र की मूल भावना को इतने रोचक व भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करती है कि उसकी प्रसंशा सहज नहीं। राम की शक्ति पूजा के बाद मुझे निराला जी की यह कविता ही सर्वाधिक प्रिय है। कविता लंबी है। उसका कुछ अंश साझा कर रहा हूँ।

शिवाजी जी जय सिंह को सम्बोधन है—

“वीर! सरदारों के सरदार ! महाराज !
बहु-जाति, क्यारियों के पुष्प-पत्र दल-भरे
वासन्ती सुरभि को हृदय से हरकर
आन-बान-शानवाला भारत उद्यान के नायक हो,

रक्षक हो, दिगन्त भरनेवाला पवन ज्यों ।
वंशज हो— चेतन अमल-अंश
हृदयाधिकारी रविकुल- मणि रघुनाथ के।”

पत्र में जब शिवाजी मिर्जा राजे को चुनौतियों के प्रति सचेत करते हैं तो उनके भावपूर्ण प्रश्न करते हैं। प्रश्न तीखे हैं, लेकिन संबोधन में राजे का पूरा सम्मान रखा गया है।

चाहते हो क्या तुम
सनातन धर्म-धारा शुद्ध
भारत से बह जाय चिरकाल के लिए ?
महाराज !
जितनी विरोधी शक्तियों से
हम लड़ रहे हैं आपस में
सच मानो खर्च है यह
शक्तियों का व्यर्थ ही ।
मिथ्या नहीं,
रहती है जीवों में विरोधी शक्तिः
पिता से पुत्र का,
पति का सहधर्मिणी से
जारी सदा ही है, कर्षण-विकर्षण-भाव
और यही जीवन है— सत्ता है;
किन्तु तो भी
कर्षण बलवान् है
जब तक मिले हैं वे आपस में-
जब तक सम्बन्ध का ज्ञान है-
जब तक वे हँसते हैं, रोते हैं
एक-दूसरे के लिए।

जाति में बंटा समाज राजनीतिक रूप से अशक्त है। उसमें एकता का अभाव है। जबकि शत्रु एकत्र और समर्थ है। शिवाजी समाज की कमजोरी जानते हैं, उसे जगाना चाहते हैं। उनमें स्वराज की सहायक एकता के लिए तड़प है।

शिवाजी की इन बातों को निराला ऐसे प्रस्तुत किया है—

‘मृत्यु का क्या और कोई होगा रूप ?
सोचो कि कितनी नीचता है आज
हिन्दुओं में फैली हुई ।
और यदि एकीभूत शक्तियों से एक ही
बन जाय परिवार,
फैले समवेदना,
एक ओर हिन्दू एक ओर मुसलमान हों,
व्यक्ति का खिंचाव यदि जातिगत हो जाय,
देखो परिणाम फिर,
स्थिर न रहेंगे पैर यवनों के,
पस्त हौसला होगा—
ध्वस्त होगा साम्राज्य |
जितने विचार आज
मारते तरंगें हैं


साम्राज्यवादियों की भोग – वासनाओं में ,
नष्ट होंगे चिरकाल के लिए ।
आयेगी भाल पर भारत की गई ज्योति ,
हिन्दुस्तान मुक्त होगा घोर अपमान से ,
दासता के पाश कट जायँगे ।
मिलो राजपूतों से , घेरो तुम दिल्ली – गढ़ , -गढ़ ,
तब तक मैं दोनों सुलतानों को देख लूँ ।
सेना घन – घटा – सी ,
मेरे वीर सरदार घेरेंगे गोलकुण्डा , बीजापुर ,
चमकेंगे खड्ग सब विद्युद्युति बार – बार ,
खून की पियेंगी धार संगिनी सहेलियाँ भवानी की ,
धन्य हूँगा , देव – द्विज – देश को सर्वस्व सौंपकर निज।’

सबको पता है कि शिवाजी व मिर्जा राजे के बीच युद्ध टल गया था। मिर्जा राजे के आश्वासन पर शिवाजी आगरा आ गए। यहां उनके साथ धोखा हुआ। आगे की सारी घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं।

वहीं, मिर्जा राजे ने उसके बाद कोई अभियान नहीं किया। वह खुलकर औरंगजेब का प्रतिकार तो नहीं कर सके लेकिन उन्होंने मुगलों की सैन्य अगुवाई करनी बंद कर दी थी।

उस बड़े युद्ध को व राजपूत-मराठा संघर्ष जैसी अप्रिय घटना को टालने में शिवाजी जी ने जो सूझ-बूझ दिखाई, वह उनके समकालीन दूसरे भारतीय राजाओं में नहीं थी।

जय भवानी, जय शिवाजी

अरुण प्रकाश सर के फेसबुक वाल से….

और पढ़ें…छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास और जीवनी

By Admin

Copy Protected by Chetan's WP-Copyprotect.

Discover more from अपना रण

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Discover more from अपना रण

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading