अंपायर निर्णय समीक्षा प्रणाली…अगर आप क्रिकेट प्रेमी हैं और आप एशिया के भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान रीजन में रहते हैं तो इसके ज्यादा चान्सेस हैं कि आपको डीआरएस का मतलब और उसका प्रयोग के बारे में पता होगा। क्रिकेट के संदर्भ में देखे तो एशिया के टॉप 5 टीम एशिया से ही आते हैं।

डीआरएस(DRS) का फुल फॉर्म डिसिजन रिव्यु सिस्टम है। क्रिकेट के नियम के अनुसार एक टीम बल्लेबाजी करते हुए या फील्डिंग करते हुए दो बार या अब कोविड महामारी के दौरान 3 बार लिया जा सकता है। डीआरएस को केवल फील्डिंग करने वाली टीम का कैप्टन या फिर आउट होने वाला खिलाड़ी ही प्रयोग कर सकता है।
डिसिजन रिव्यु सिस्टम(डीआरएस) के तहत हर टीम के पास 2 से 3 विकल्प होता है और हर बार डीआरएस, डीआरएस लेने वाले के पक्ष में जाता रहे तो डीआरएस बना रहता है परंतु अगर डीआरएस गलत लिया गया तो वह खत्म हो जाता है। टेस्ट में दो बार एक पारी के अंदर(कोविड के समय मे 3) और वनडे और टी20 में 2-2 बार रिव्यु लिया जा सकता है।
जब खिलाड़ी ऑन फील्ड अंपायर के फैसले के रिव्यु के लिए थर्ड अंपायर के से निवेदन करता है, तो वह प्लेयर रिव्यु कहलाता है। और जब ऑन फील्ड अंपायर कैच या रन आउट जैसे फैसले पर संदेह होने पर तीसरे अंपायर के पास रुख़्सद करता है तो उसे “अंपायर रिव्यु” कहा जाता है। इसमें ज्यादातर डायरेक्ट हिट या मुश्किल कैच आउट जिसे सीमा रेखा पर या फील्ड में बहुत ही जल्दी और अजीब तरह से पकड़े जाने की स्थिति में ऑन फील्ड अंपायर प्रयोग करते हैं।
रिव्यु का सामान्य सा अर्थ है कि कहीं खेले जा रहे या होने वाले क्रिकेट में यदि फील्डिंग टीम के कैप्टन या आउट होने वाले बैटिंग खिलाड़ी को यदि अंपायर का फैसला मन मुताबिक नही लगता तो वह गेंद किए जाने के 15 सेकंड के अंदर एक निश्चित समय मे अंपायर के फैसले को चुनौती दे सकते हैं। इसी को डीआरएस मेथड कहा जाता है।
डीआरएस(अंपायर निर्णय समीक्षा प्रणाली) में हॉक-आई तकनीक क्या है
हॉक-आई वास्तव में एक कंप्यूटर विज़न टेक्निक की प्रक्रिया है, जिसका प्रयोग क्रिकेट, बैडमिंटन जैसे अन्य कई खेलों में बॉल के मूवमेंट को ट्रैक करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- क्रिकेट में डीआरएस के दौरान इसी टेक्निक का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें अंपायर के एलबीडबल्यू फैसलो में गेंदबाज के हाथ से छूती बॉल से लेकर बैट्समैन के पीछे खड़े विकेटकीपर तक कि मूवमेंट को ट्रैक किया जाता है।
- हॉक-आई का इस्तेमाल वर्ष 2001 में पहली बार किया गया था। हॉक आई टेक्निक को यूनाइटेड किंगडम के पॉल विल्सन ने बनाया है।
- पहले डीआरएस का इस्तेमाल केवल टेस्ट क्रिकेट में ही होता था पर बाद में इसका इस्तेमाल वनडे और टी20 में भी किया जाने लगा।
- हॉक-आई को गेंद के सफर को देखने के लिए क्रिकेट मैदान पर अलग-अलग जगह 6 कैमरे लगे होते हैं। जो कि गेंदबाद के गेंद फेके जाने से लेकर डेड एन्ड तक गेंद द्वारा पूरे सफर को रिकॉर्ड करते हैं।
- हॉक-आई जो भी विजुअल जानकारी उन कैमरों से रिकॉर्ड करता है, उसे 3डी प्रोजेक्शन में परिवर्तित करके ये दिखाता है कि एक काल्पनिक पिच पर गेंद ने कैसे ट्रेवल किया है।
- हॉक-आई तकनीक से 5 मिलीमीटर की सीमा के भीतर भी सही आकलन किया जा सकता है।
- वैसे हॉक-आई तकनीक का इस्तेमाल ब्रेन सर्जरी और मिसाइल ट्रेकिंग में इस्तेमाल होता है।
क्या हॉक-आई टेक्निक 100 फीसद सटीक जानकारी देती है?
रिपोर्ट की माने तो हॉक-आई स्पिन, स्विंग और सीम हर तरह के पिच पर गेंद को ट्रैक करने में कारगर है। बीबीसी के रिपोर्ट के मुताबिक, हॉक-आई तकनीक 99 फीसद तक सटीक होती है। हालांकि कई रिपोर्ट्स का मानना है कि हॉक आई तकनीक अभी विकसित हो रही है और यह एकदम सटीक फैसला नही देती है।
स्पोर्ट स्टार की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक इंटरनेशनल अंपायर ने ये कहा है कि डीआरएस इंसान द्वारा संचालित किया जाता है, और इसमें सटीकता इस बात पर निर्भर करती है कि वह सॉफ्टवेयर को कैसे संभालता है। यानी, इसमें गलती होने की संभावना बनी रहती है।
क्रिकेट में कब शुरू हुआ डीआरएस का प्रयोग
डीआरएस का पहली बार प्रयोग 23 जुलाई 2008 से शुरू हुए भारत और श्रीलंका के बीच कोलंबो टेस्ट के दौरान किया गया था।
वनडे में डीआरएस का पहली बार इस्तेमाल जनवरी 2011 में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड सीरीज में हुआ।
जबकि टी20 इंटरनेशनल क्रिकेट में भारत ऑस्ट्रेलिया के बीच अक्टूबर 2017 में हुए सीरीज़ के दौरान हुआ।
मदद ली गई:- दैनिक भास्कर वेबसाइट और गूगल विकिपीडिया से….
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