PHOOLAN DEVI

फूलन देवी को किस रूप देखें, क्या उसे उस लड़की के रूप में देखें जिसने 10 वर्ष की उम्र में ही अपनी जमीन के लिए, अपने चाचा से भिड़ गयी थी या फिर उस रूप में जिसकी 11 वर्ष की उम्र में शादी उससे 35 से 40 साल बड़े उम्र दराज़ वाले व्यक्ति से हो गयी थी, जिसने उसका शारीरिक शोषण किया था या कहा जाए तो वह खतरनाक डाकू जिसका नाम सुनकर बड़े-बड़े तुर्रमखां मैदान छोड़ कर भाग जाते थे या फिर उस महिला के रूप में जिसने 22 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।

वास्तव में वे तब सरकार की निगाहों में आई जब उन्होंने बेहमई हत्याकांड(22 ठाकुरों को एक लाइन में खड़े कर के मार डालना, 1981) को अंजाम दिया और उसके लिए रत्ती भर भी अफसोस नहीं किया।

ऐसी फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 में, उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद के एक छोटे से गांव गोरहा में हुआ था। फूलन के पिता एक मजदूर थे और उनके पास केवल एक ही एकड़ जमीन थी, जिसमे परिवार का निर्वहन होना संभव नहीं था। इसी गांव(गोरहा) से उनकी कहानी शुरू होती है।

फूलन देवी का शुरुआती जीवन

फूलन देवी के चचेरे भाई मायादिन ने फूलन को महज 11 वर्ष की उम्र में गांव से बाहर निकालने के मकसद से उनकी शादी पुट्टी लाल नाम के बूढ़े आदमी से करवा दी थी। असल मे यह उसे अपने चाचा से भिड़ने की सजा उसके परिवार द्वारा मिली थी।

फूलन के पति ने शादी के तुरंत बाद से ही उसके साथ दुराचार करना शुरू कर दिया और उसे प्रताड़ित करने लगा। रेप और प्रताड़ना से परेशान फूलन का स्वास्थ्य धीरे धीरे गिरने लगा और उसका हेल्थ इतना खराब होने लगा कि उसे अपने पति का घर छोड़ कर वापस मां-बाप के पास आकर रहने को मजबूर होना पड़ा लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसे वापस उसके ससुराल भेज दिया गया जहाँ उसे पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी रचा ली है।

फूलन को अपने पति और उसकी नई बीवी से बहुत ज्यादा सुनना पड़ा और बेज़्ज़ती के घूट को पीना पड़ा। इसके बाद फूलन देवी दोबारा अपने मायके आ गयी जहाँ उसने अपने पिता के साथ मज़दूरी करना शुरू कर दिया।

फूलन देवी तब महज 15 साल की थी, जब कुछ दबंगों ने घर में ही उसके मां-बाप के सामने उसके साथ गैंगरेप किया। इसके बावजूद भी फूलन देवी के तेवर कमजोर नहीं पड़े। सामूहिक बलात्कार की पीड़ा से गुजरते हुए फूलन देवी की जिंदगी बद से बदत्तर हो गई। जिसके बाद वह महज 16 साल की उम्र में डाकू बन गई।

हालांकि उन्होंने आत्महत्या करने की बजाय बलात्कार का बदला लेने का प्रण लिया और इसी क्रम में राजपूत समाज के 22 लोगों का सरेआम कत्ल कर दिया था, जो बेहमई हत्याकांड के नाम से मशहूर है। उन्होंने डाकू बनने के संदर्भ में अपने बायोग्राफी में कहा था कि “किस्मत को शायद यही मंजूर था।”

22 लोगों की हत्या

दिन 14 फरवरी 1981, इलाका बेहमई जहाँ फूलन देवी ने 22 लोगों को लाइन में खड़ा करके गोलियों से छल्ली कर दिया। इस घटना के बाद फूलन देवी का नाम सभी के दिलो दिमाग और ज़हन में बस गया।

यह वही फूलन देवी थीं जिनके साथ मात्र 15 वर्ष की आयु में गैंगरेप किया गया था। अब फूलन देवी एक नए तेवर में आ गई थीं जिन्हें न जिंदगी से मोह था और न ही मौत से भय। जब फूलन देवी से यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर यह नरसंहार किस लिए?, तो फूलन देवी का कहना था की उन्होंने ये हत्याकांड बदला लेने के लिए किया था। गौरतलब है कि फूलन देवी का निशाना बड़ा अचूक था। जिससे बचने का कोई रास्ता टारगेट व्यक्ति के पास नहीं होता था।

ये बात पता होना चाहिए कि फूलन जब 15 साल की थीं तब गांव के ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था। जिसके बाद न्याय पाने के लिए उन्होंने कई दरवाजे खटखटाए थे लेकिन हर तरफ से उन्हें निराशा ही हाथ लगी थी।

इंसाफ के लिए जूझती फूलन के गांव में कुछ डकैतों ने हमला किया। इस हमले में डकैत फूलन को उठा कर ले गए और उन्होंने भी उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया। इसके बाद वहीं पर फूलन की मुलाकात विक्रम मल्लासह से हुई और इन दोनों ने मिलकर एक अलग डाकूओं का गिरोह बनाने को सोचा और एक नया गिरोह बनाया। इस तरह फूलन देवी ने 1980 के दशक के शुरुआत में चंबल के बीहड़ों की सबसे खतरनाक डाकू मानी जाने लगीं थी।

फूलन ने अपने साथ हुई हिंसा और कुकर्मों का बदला तो ले लिया था, लेकिन इसी के साथ उनकी जान का खतरा भी हमेशा बना रहता था। इसी बीच फूलन देवी के साथी डाकू विक्रम मल्लाह की भी हत्या हो गई जिससे फूलन देवी टूट गई और उन्होंने हथियार डालने का मन बना लिया। हालांकि फूलन देवी उत्तर प्रदेश की पुलिस के रवैये से बखूबी वाकिफ़ थीं।

ऐसे में आत्मसमर्पण का रास्ता उन्होंने मध्य प्रदेश से होते हुए निकाला। क्योंकि फूलन देवी को पूरा विश्वास था कि उत्तर प्रदेश पुलिस समर्पण के बाद उन्हें गोली मार देगी। इसलिए उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सामने हथियार डालने के लिए सौदेबाजी करना ज्यादा मुनासिब समझा। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाल दिया और उस समय उनकी एक झलक पाने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जमा थीं।

हालांकि आत्मसमर्पण के लिए भी फूलन ने अपनी शर्तें रखी थी। इसमें उसे या उसके किसी साथी को मृत्युदंड नहीं दिया जाए। उसे व उसके गिरोह के लोगों को आठ साल से ज्यादा सजा नहीं दिए जाने की भी शर्त थी। सरकार ने फूलन की सभी शर्ते मान ली। शर्ते मान लेने के बाद ही फूलन ने अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था।

लेकिन फूलन देवी को 11 सालों तक बिना किसी मुकदमे के जेल में रखा गया। इसके बाद साल 1994 में आई मुलायम सरकार ने फूलन को रिहा किया और दो साल बाद 1996 में फूलन ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और वो जीतकर संसद पहुंच गई।

इसके बाद खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाले शेर सिंह राणा ने साल 2001, 25 जुलाई को दिल्ली में फूलन देवी की उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी थी। फूलन की हत्या के बाद दावा किया था कि उसने 1981 में मारे गए सवर्णों की हत्या का बदला लिया है।

फूलन देवी
फूलन देवी

फूलन देवी की लोकप्रियता और उनके संघर्ष की कहानी को बयां करने के मकसद से 1994 में फूलन के जीवन पर शेखर कपूर ने ‘बैंडिट क्वीन’ नाम से फिल्म भी बनाई। जिसे खूब लोकप्रियता मिली। फिल्म अपने कुछ दृश्यों और फूलन देवी की भाषा को लेकर काफी विवादों में भी रही।

क्या बलात्कार की घटना से फूलन देवी बनी डकैत?

अगर बलात्कार के कारण फूलन देवी का जन्म होता तो देश में हजारों फूलन देवियां घूम रही होतीं. यह वास्तव में ‘पुरुषवादी संस्कृति’ की पैदाइश है. जाति, जमीन, औरत, मर्द सब कुछ समेटे हुए है फूलन देवी की कहानी……. – अरुंधति रॉय (लेखिका)

2011 में प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर प्रकाशित अपने अंक में फूलन देवी को इतिहास की 16 सबसे विद्रोही महिलाओं की सूची में चौथे नंबर पर रखा था।

फूलन देवी का दिल गरीबों के लिए धड़कता था: रॉय माक्सहैम

Phoolan Devi Autobiography: फूलन देवी पर ब्रिटेन में आउटलॉ बुक( Outlaw book) नाम से एक किताब प्रकाशित हुई। इस किताब में फूलन देवी के जीवन की, कई पहलुओं पर विचार-विमर्श संग्रहित है। इस किताब के लेखक रॉय माक्सहैम (Roy Moxham) हैं।

फूलन के जेल में रहने के दौरान ही इस लेखक ने उनसे पत्राचार किया था फिर इंडिया आकर उन्होंने इनसे मुलाकात भी की थी।

लेखक रॉय मॉक्सहैम ने फूलन देवी के बारे में एक मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने जिंदगी में बहुत कुछ सहा, लेकिन इसके बावजूद फूलन देवी बहुत हंसमुख थीं. वे हमेशा हंसती रहतीं थीं, मजाक करती रहतीं थीं। रॉय ने ये भी कहा था कि फूलन ने अपना बचपन काफी गरीबी में गुजारा। उनका दिल गरीबों के लिए हमेशा धड़कता था। ये भी कहा कि मुझे लगता है कि वे गलत न्यायिक प्रक्रिया का शिकार हुईं।

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