कल भी सूरज निकलेगा
कल भी पंछी गाएंगे
सब तुझको दिखाई देंगे
पर हम न नज़र आएंगे।

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कल भी सूरज निकलेगा कल भी पंछी गाएंगे
1982 में आई फ़िल्म ‘प्रेमरोग’ का ये गीत जिसे संन्तोष आंनद जी ने लिखा था, लता दीदी ने स्वरबद्ध किया उसी का अंश, मैं समर्पित करता हूँ स्वर साम्राज्ञी को उनके अंतिम विदाई पर।।।
बाकी सभी की तरह मैं अश्रुपूरित विदाई नही दूँगा क्योंकि मानस में दीदी अभी भी जीवंत हैं। उनका बस भौतिक शरीर हमसे दूर हुआ है ।
जो भी इंसान संगीत से थोड़ा भी लगाव रखता हो या संगीत के सरगम को समझता है उससे पूछिये, भले पुरूष की आवाज़ में उसे रफ़ी, किशोर,मुकेश, मन्ना डे पसन्द हों लेकिन उधर एक ही आवाज सबकी पसंद मिलेगी लता दीदी और लता दीदी।
लता मंगेशकर जी भारतीय संगीत की दुनियां में वो सूर्य हैं जिनके सामने सभी प्रकाश धुंधले पड़ जाएंगे। एक आवाज जिसने हमारे पिछली तीन पीढ़ी को भावनात्मक आलम्बन दिया और जाने आगे आने वाली कितनी पीढ़ियों के लिए जीवंत बनी रहेगी।
आज जो आंखे ये पढ़ रही हैं आने वाले 50-60 साल बाद ये आंखे सो जाएंगी अनंत में, लेक़िन दीदी आप तो जबतक संगीत है उसके मर्म को समझने वाले हैं तक तक जीवित हैं।
लता जी की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनियां में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। भारत सरकार ने उन्हें ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया था। इसके साथ ही सिने जगत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ,’दादा साहब फाल्के’ भी उन्हें दिया गया।
बीबीसी के मेरे पसंदीदा उद्घोषक रेहान फ़जल साहब ,नसरीन मुन्नी कबीर की किताब-lata and her own voice किताब के हवाले से कई किस्से बताते हैं ; कैसे लाता जी की गायन की शुरूआत 5 साल की उम्र से हो गई थी? कैसे उन्होंने राग पुरिया धनाश्री से अपनी अपनी यात्रा की शरूआत की?
एक और किताब लता दीदी एक अजीब दास्तान के हवाले से वो कहते हैं, कि कैसे ‘कश्मीर की कली हूँ ‘ गाने में वो इतनी मादक और युवा लगती है। उनकी आवाज की एक ख़ास बात थी समय के साथ उसका युवा होते जाना , इस गाने के 12 वर्ष बाद अनामिका के लिए जब लता जी ‘बाहों में चले आओ रसिया’ गाती हैं तो उतनी ही युवा लगती हैं। 70 बसंत देखने के बाद भी जब काजोल के लिए गाती हैं तो लगता है कोई कम उम्र की लड़की है।
20 से अधिक भाषाओं में 30000 से अधिक गानों की आपकी संग्रहिका किसी को भी अपने तरफ खींच लेती है।आपने जीवन के हर पहलू, परिस्थितियों के लिए गाया-
*जब कोई प्रेम में असफल होगा,उसके लिए- छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ,ये मुनासिब नही आदमी के लिए।प्यार से भी जरूरी कई काम हैं प्यार सब कुछ नहीं आदमी के लिए।
*जब बच्ची माँ से रूठेगी तो-गुड़िया हमसे रूठी रहोगी ,कब तक ना हँसोगी।
- मीरा की तरह जब कोई कृष्ण में अपने को एकाकार कर लेगा- केसरिया बालमा मोहे बाँवरी बोले लोग ना मैं जिउती ना मरियो मैं बिरहा म्हारो रोग रे बाँवरी बोले लोग, लोग रे।
- जब कोई प्रेमी यूँही जीवन के थपेड़ों से थक कर पीछे छोड़ दे-अकेले ही अकेले चला है कहाँ
अकेले ही अकेले चला है कहाँ
कहेंगे क्या कहेगा यह मौसम जवान
ना जा ना ज हो आजा आजा ओ राही अलबेले
हमसफ़र भी कोई साथ ले ले.
*किसी के रूठने पर- अजी रूठ कर अब कहाँ जाइयेगा, जहाँ जाइयेगा हमें पाइयेगा।
- बिरहन के लिए- बीती न बिताई रैना बिरहा की जाई रैना भीगी हुई अंखियों ने लाख बुझाई रैना।
*जिन्हें जीवन की स्वछंद उड़ान भरनी है- आजकल पांव जमी पर नही पड़ते मेरे, बोलो देखा है कभी तुमनें मुझे उड़ते हुए।
*तरुण होते प्रेम के लिए-सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
ऐ प्यार तेरी, पहली नज़र को सलाम..
दुनिया में सब से पहले जिसने ये दिल दिया
दुनिया के सब से पहले दिलबर को सलाम
दिलसे निकलने वाले रस्ते का शुक्रिया
दिल तक पहुँचनी वाली डगर को सलाम
- प्रेम में रिझाने की कला- लग जा गले कि फ़िर ये हसीं रात हो न हो,शायद फ़िर इस जनम में मुलाकात हो न हो।
- देश प्रेम की भावना-ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भरलो पानी।
*किसी की बिदाई- ये गालियां ये चौबारा यहाँ आना ना दोबारा, अब हम तो भये परदेशी कि तेरा यहाँ कोई नही।
- किसी को भावनात्मक आश्रय देते हुए- तू जहां -जहां चलेगा ,मेरा साया साथ होगा।
*मदमस्त होते हुए- ऐ हवा मेरे संग संग चल, मेरे दिल में हुई हलचल।
*प्रेम में आश्वस्त करते हुए- चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो।
- कृतज्ञ होकर- तूने ओ रंगीले कैसा जादू किया, पिया पिया बोले मतवाला जिया।।
ऐसे कितने गाने हैं जिन्हें बताने के लिये शब्द कम पड़ जाएंगे।। जो भी हो लता दीदी की भौतिक कमी समय कभी नही भर पायेगा, लेक़िन आप हम सभी से अधिक समय तक लोगों के अंदर जीवंत रहेंगी।
कभी किसी बच्चे की मुस्कान में, कभी किसी नव युगल में, किसी मां में, किसी युवा की चेतना में, किसी की अलसायी सुबह में तो किसी के माधुर्य रात में, किसी दुल्हन की रात में तो कभी किसी किसान के खेतों की सरसों के बीच बजते गानों में ,तो कभी एक दूसरे से बिछड़ते हुए लोगों में हर जगह।
मेरे जैसा सुर -ताल का अबोध नौनिहाल आपको अंतिम महायात्रा के लिए रुंधे गले से विदाई नही देना चाहता , आप समय के अस्तित्व तक लोककंठ में सर्वश्रेष्ठ बनी रहेंगी ।हर कोई आपकी सीमा तक जाने की कोशिश करेगा लेक़िन वो जा न पायेगा। जैसे एक सूर्य है,एक गगन है ,एक चंद्रमा वैसे एक लता दीदी हैं हमारी । आपके माधुर्य स्वर के ऋण से उऋण हो पाना संगीत जगत के लिए दुष्कर होगा।
कल भी सूरज निकलेगा कल भी पंछी गाएंगे…..POST WRITTEN BY:- Alok Kumar Mishra
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