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अपराध की परिभाषा

अपराध और हिंसा……अपराध एक ऐसी क्रिया है, जिसके लिए दोषी व्यक्ति को कानून द्वारा निर्धारित दण्ड दिया जाता है। अर्थात अपराध कानूनी नियमों को ताक पर रख कर की जाने वाली एक नकारात्मक प्रक्रिया है, जिससे समाज मे शांति और अराजकता को बढ़ावा मिल सकता है।

हिंसा की परिभाषा

हिंसा को अपराध का पहला पग कह सकते हैं। हिंसा मन की एक स्थिति है जिसका संबंध कर्म विशेष से नहीं है। यह किसी भी रूप में किसी भी व्यक्ति के अंदर आ सकती है। अगर हम इसे सीधे शब्दों में समझें तो मन मे किसी के प्रति क्रोध आना, किसी से द्वेष हो जाना, किसी को घृणित नजरों से देखना आदि हिंसा के एक रूप हैं।

जब कोई व्यक्ति इनसे प्रेरित होता है तो उसके व्यवहार में सबसे पहले परिवर्तन आता है और यह परिवर्तन तब और विकराल रूप ले लेता है जब उसके समक्ष वस विषय आ जाता है, जिससे उसके मन मे हिंसा का तत्व आगया है। सामान्यतः आप इसे अपने परिवेश में रख कर लोगों के हाव भाव से समझ सकते हैं की वह व्यक्ति कैसे और किस हिंसा से ग्रसित है।

हिंदू धर्म के अनुसार अगर हिंसा के अर्थ को समझे तो हमें उसमें मिलेगा कि, प्रिय वचन नहीं बोलना, अप्रिय या कड़वे वचन का प्रयोग करना, दूसरे को हिंसा करने की अनुमति देना या प्रोत्साहित करना, दूसरों को डराना या धमकाना आदि हिंसा के श्रेणी में आते हैं। यहाँ एक बात बता दें कि हिंसा के भी सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हो सकते हैं, बशर्ते उससे संबंधित और विपक्षी पक्ष को जान, मान या अपने स्वाभिमान के खोने की शंका न हो। (अपराध और हिंसा)

उदाहरण के लिए विराट कोहली जो कि वर्तमान में केवल टेस्ट क्रिकेट के कैप्टन हैं का अपने प्रतिद्वंदी टीम पर हावी होना, जिससे उनके टीम को लाभ पहुँचाने की कला है,जिसको एक हिंसा कह सकते हैं पर असल मे ये हिंसा का positive पॉइंट है, जहाँ सामने वाले को कॉन्फिडेंस से दूर ले जाना पहला लक्ष्य है। पर फ़िर भी कुछ अपवादों को छोड़ दें तो हिंसा से केवल अपराध ही पनपता है।

अपराध और हिंसा

अपराध और हिंसा किसी भी देश, संस्थान, भूखंड के विकास के लिए अच्छे नहीं होते है। सामान्यतः ऐसे शब्द जब कानों में पड़ते हैं तो इससे एक खौफ उत्पन्न होने लगता है जिससे शरीर मे के शिरन उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है और जिससे डरावनी और भयावह तस्वीर उभरने लगती है। फरवरी 2020 में दिल्ली के नार्थ ईस्ट इलाके में हुए हिंसा को हम एक उदाहरण के रूप में ले सकते हैं।

आज मानव अपने को विकसित करने के लिए जिस प्रकार से नाव को चला रहा है उतने ही तेज स्पीड में वह दुर्घटना को दावत भी दे रहा है। अब वह चाहे प्राकृतिक हो या मानव जनित हो।

उदाहरण के लिए देखें तो टाइटैनिक उस 1912 का सबसे बड़ा और मजबूत जहाज था, जिसके संदर्भ में सबका मानना था कि ये कभी न डूबने वाला जहाज है पर क्या हुआ, कैप्टन को अपने जहाज पर अभिमान था, और यही अभिमान उसके जहाज को ले डूबा। ठीक इसी प्रकार का रवैया हिंसा में भी होता है जोकि समझता है सब कुछ अच्छा है पर अंत मे कानून के फंदे में चला जाता है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि अपराध और हिंसा ने मानव के शुरुआती सभ्यता से ही अपनी पकड़ बना रखी है, बेशक समय समय पर उसके अर्थ अलग अलग रहे हों पर वे विद्यमान रहे है, जिसे हम इतिहास की किताब उठा कर देख सकते है।

ऐसे में ये भी देखा जा सकता है कि आज समाज मे ऐसे असामाजिक तत्व जरूर रहते हैं, जिसको वर्तमान व्यवस्था से परेशानी रहती ही है और अगर समाज मे सब कुछ पर्फेक्ट है तो असामाजिक तत्वों को घुसाने का भरसक प्रयास भी किया जाता है, ताकि अपने लाभ को अपने मुद्दे को बनाया और सही बताया जा सके।

अपराध और हिंसा के वैधानिक प्रावधान

अपराध और हिंसा , दोनों किसी भी देश क्षेत्र, संस्था या संगठन आदि के लिए घातक हो सकते हैं अगर इनपर पाबंदियां न लगाई जाए और इन्हें खुली छूट दे दी जाए तो ये तत्व देश के संविधान के लिए खतरनाक हो सकते हैं।

ऐसे में यह भी देखने में मिलता है कि समय-समय पर और लगभग हर कालखंड में अपराध और हिंसा के लिए राज्य, समाज, भूखंड के अनुसार अलग-अलग प्रावधान किए जाते रहे हैं। यही नीति भारत ने औपनिवेशिक शासन से आज़ाद होने के बाद बनाई। भारत ने विभिन्न अपराध और हिंसा के तत्वों पर लगाम लगाने के लिए विभिन्न प्रावधान किए, जिनमे से कुछ प्रावधान निम्नलिखित हैं:-

  1. दहेज विरोधी अधिनियम 1961
  2. ताक झांक करना- सेक्शन IPC 354 जिसमें 2016 में संशोधन हुआ।
  3. पीछा करना- IPC 354d
  4. महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाना:- IPC SECTION 366।
  5. मानव तस्करी IPC SECTION 370 और
  6. चल संपत्ति को बेईमानी से हड़पने का ipc सेक्शन 378 है।
  7. यौन उत्पीड़न:- IPC 354a
  8. जबरन शादी के लिए अपरहण:- IPC SECTION 366
  9. महिला अपहरण:- IPC सेक्शन 366
  10. हत्या के लिए अपहरण:- IPC 364
  11. आत्महत्या के लिए उकसाना:- IPC सेक्शन 306
  12. Acid attack:- 326 A
  13. दंगो से संबंधित section:- IPC 147, 148, 149, 159.
  14. Murder:- IPC 299, 300, 302.
  15. हत्या का प्रयास:- IPC 307

अपराध, हिंसा और पत्रकारिता

विभिन्न प्रकार के टीवी कार्यक्रमों , फिल्मों, वेब सीरीजों, समाचार पत्रों और न्यूज़ चैंनलों में लाभ का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। मीडिया द्वारा अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि हम वही दिखाते हैं जो समाज मे घटित हो रहा है और उनका कहना काफी हद तक ठीक भी है क्योंकि पाठक और दर्शक, जिस प्रकार का कंटेंट पढ़ना, लिखना, देखना चाहते हैं, उसी प्रकार का कंटेंट मीडिया दिखाते हैं। असल मे ये मुद्दे रोचक होते हैं जिसको ज्यादातर लोग देखना पसंद करते हैं।(अपराध और हिंसा)

आज हिंसक कंटेंट का दायरा बाल फिल्म, कार्टून और एनिमेशन तक फैल गया है। कई बार हिंसक दृश्यों को देखकर बच्चों के व्यवहार में आक्रामकता और हिंसा के प्रति संवेदनशीलता जन्म ले लेती है। सोशल मीडिया मैं भी कंटेंट को लेकर पहले आचार संहिता नहीं थी पर अब आचार संहिता आने से शायद हिंसक कंटेंट के भरमार में कमी आई।

ऐसे में पत्रकारिता के रूप में देखा जाए तो आज अपराध और हिंसा पत्रकारिता पर हावी हुए दिखते हैं पर इनमें से कुछ ऐसे पत्रकार अभी भी हैं जो जान की परवाह किए बगैर और मसाला लगाए बगैर खबरों का प्रवाह करते हैं। पर देखा जाए तो इनकी संख्या बहुत कम है क्योंकि ऐसे क्षेत्र में सही रूप से पत्रकारिता करना अपने शरीर पर लगे बंदूक की तरह है जो कभी भी चल सकती है।

इसके साथ ही पत्रकारिता से जुड़े लोगों को अपने दायित्व और कर्तव्य को नहीं भूलना चाहिए और हिंसा के कारण से ज्यादा हिंसा क्यों हुआ और उसे किस प्रकार से रोका जा सकता था या रोका जा सकता है, पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। तभी जाकर अपराध और हिंसा को समय रहते सुलझाया जा सकता है अगर ऐसा नहीं हुआ तो मीडिया आगे चलकर इसका पंगु भी बन सकता है। (अपराध और हिंसा)

मीडिया के पंगु होना कहना एक आंतरिक वेदना को जगा देता है परंतु जब लखीमपुर खीरी जैसे केस सामने आता है तो बस यही देखने मे आता है कि ज्यादातर मीडिया हाउसेस तब तक ही कवरेज और उसका फॉलो अप करते है जब तक TRP का खेल चल रहा हो और जब तक उन्हें लाभ मिल रहा हो। इसका एक पक्ष ये भी जोड़ना जरूरी है की आज मीडिया ऐसे तमाम घटनाओं से कन्नी काट लेते हैं जिससे trp या कॉन्ट्रैक्ट जैसे बिंदु खतरे में आ जाते हैं।

आज पत्रकारिता क्षेत्र में आगे बढ़ने की होड़ है, पर इस होड़ में न्यूज़ कम मसाला ज्यादा होते जा रहा है और मसाले के लिए अपराध और हिंसा एक नंबर पर हैं; इससे चैनल को trp और दर्शक का मनोरंजन तो हो जाता है पर किस कसौटी को ताक पर रख कर और किन मूल्यों को भूल कर ये सब किया जा रहा है और उसका कारण क्या है यह समझना बहुत जरूरी है।

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