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प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव

प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव….प्राकृतिक आपदा से तात्पर्य ऐसी अकस्मात घटनाएं जिसकी भनक जीवित प्राणी को घटना के घटने के बाद पता चले जिससे मानवीय जीवन और संसाधनों पर काफी दबाव बढ़ जाता है।

मुख्य प्राकृतिक आपदा है:- भूकंप, ज्वालामुखी, सुनामी, सूखा, बाढ़ और भूस्खलन आदि और कई प्राकृतिक आपदाएं है। पर इन सब में मानवीय क्रियाकलापों का भी बहुत बड़ा योगदान है। परंतु कुछ प्राकृतिक आपदा, प्राकृतिक व स्वयं अपने, समय के अनुसार निर्धारित होते हैं।

मनुष्य अपने क्षति को कम करने और आपदा के दौरान आपदा से हुई क्षति की पूर्ति करने के लिए आपदा से पूर्व ही(पता चलने पर) उसका प्रबंधन करने का प्रयास करते हैं। आपदा प्रबंधन के कई आधार होते हैं।

प्रत्येक संस्थान या राज्यों की सरकारें आपदा प्रबंधन कार्यक्रम समय-समय पर अपने क्षेत्र, जिले, संस्थान या संगठन में कराती रहती हैं। (प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)

अधिकतर क्षेत्रों, संस्थानों और संगठनों में, आपदा प्रबंधन के प्रति लोगों और अपने कर्मचारियों तक, इसके प्रति, जागरुक करने का कार्य जनसंपर्क अधिकारियों द्वारा कराया जाता है।

प्राकृतिक आपदा में जनसंपर्क का महत्व व कार्य

  1. सूचना देने का कार्य:- प्राकृतिक आपदा के दौरान अधिकतर संचार के माध्यम निष्क्रिय हो जाते हैं जिससे उस आपदा क्षेत्र की सूचना संप्रेषित नहीं हो पाती है। ऐसे में जनसंपर्क अधिकारी का कार्य महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह किस तरह आपदा क्षेत्र से सूचना और संचार के माध्यम को शुरू करें और निरंतर सुरक्षा बलों और अस्पताल से अपने संपर्कों बनाए रखें। (प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)
  2. अफवाह फैलने ना दें:- आपदा क्षेत्रों में आपदा के दौरान कई न्यूज़ चैनल जल्दी खबर प्रसारित करने के उद्देश्य से खबरों के तथ्यों को नहीं जांचते, ऐसे में समाज में घटनास्थल के बारे में गलत जानकारियां फैलती है जो बाद में जाकर धीरे धीरे अफवाह का रूप धारण करने लगती हैं। इस कारण जनसंपर्क करता को न्यूज़ चैनलों पर आकर अफवाह को दूर करना चाहिए और प्राथमिक स्त्रोत होने के नाते सही तथ्यों को प्रस्तुत करना । (प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)
  3. परिवहन तंत्र स्थापित करना:- घटनास्थल पर परिवहन की सुविधाएं यदि नष्ट हो जाए तो जनसंपर्क अधिकारी का यह दायित्व है कि वह सुरक्षा बल या किसी अन्य संस्थान से संपर्क कर किसी भी परिवहन माध्यम तंत्र को जल्दी से शुरू करवाना। जिससे घटनास्थल पर घायल लोगों को अस्पताल ले जाया जा सके और अन्य लोगों के लिए रहने की व्यवस्था की जा सके। इसके अलावा घटनास्थल पर मौजूद लोगों के लिए आवश्यक सामग्री भी आसानी से मुहैया कराई जाए जैसे, भोजन, पानी, कपड़े, दवाइयां, आदि।
  4. कर्मचारियों या लोगों का मनोबल बनाए रखें:- जनसंपर्क अधिकारी को, घटनास्थल पर स्थित, लोगों से बातचीत करते रहनी चाहिए। उन्हें आश्वासन देते रहना , उनकी समस्याओं को सुनना और उसका समाधान खोजने का प्रयास करना । जिससे घटनास्थल पर मौजूद व्यक्तियों का आत्मविश्वास बना रहे।(प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)
  5. सूचना केंद्र की स्थापना करना:- जनसंपर्क अधिकारी का कर्तव्य है कि वह घटनास्थल पर एक सूचना केंद्र की स्थापना करे, जिसमें व्यक्ति अपने परिवार से अलग हो गया है या किसी व्यक्ति की खोज करनी हो तो वह सूचना केंद्र से घोषणा करवा सके और अन्य संबंधित व्यक्तियों तक सूचना पहुंचा सके। इसके द्वारा वहां के लोग अपने परिवार के सदस्यों को खोज सकते हैं। (प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)

आपदा से पूर्व आपदा के प्रबंधन के कार्य

  1. नियोजित कार्यक्रम आयोजित करना
  2. आपदा प्रबंधन की कक्षा का आयोजन
  3. जनसंपर्क अधिकारी को अपने संस्थान की प्रचार पुस्तक में संस्था के आपदा के दौरान की गई सुविधाएं जैसे विकास के मार्ग हॉस्पिटल आदि के बारे में सूचनाएं अंकित पहले ही करके रखना, ताकि समय पर उसका प्रयोग किया जा सके।

सामाजिक तनाव

आज समाज में तनाव लोगों के लिए बहुत ही समान अनुभव बन चुका है। जो कि अधिक संख्या दैहिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है। तनाव की पारंपरिक परिभाषा दैहिक प्रतिक्रिया पर केंद्रित है।

‘हैन्स शैल’ ने ‘तनाव’ (stress) शब्द की खोज की और इनकी परिभाषा शरीर की किसी भी आवश्यकता के आधार पर अनिश्चित प्रतिक्रिया के रूप में की है। उनका मानना है कि हमारे अनुसार कोई गतिविधि ना होने पर होने वाला दबाव, क्रोध, ठेस, आदि तनाव है। (प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)

सामाजिक तनाव कम होता है जब समाज में किसी विशेष क्षेत्र के लोग किसी विषय पर बट या बांट दिए जाते हैं। जब वह उस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं। अधिकतर यह विषय किसी क्षेत्र के धर्म, जाति, रंग, लिंग, जैसे विषयों पर आधारित होते हैं।

जैसे किसी क्षेत्र में दो अलग-अलग धर्म या जाति के बीच में क्षेत्र के संसाधन को लेकर मतभेद हो, ऐसे में क्षेत्र की संख्या दो भागों में बट जाती है और, समाज में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। (प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)

सामाजिक तनाव में जनसंपर्क

  1. जागरूकता
  2. समाज में तनाव कम हो सकता है यह लोगों को अपने अधिकारी के बारे में पता हो। यह तो उन्हें अधिकारी पर विश्वास हो कि वह सही निर्णय लेगा और उन्हें न्याय दिलाएगा।
  3. जनसंपर्क अधिकारी ऐसा होना चाहिए जो क्षेत्र की स्थिति संभालने में सक्षम हो और ऐसे मुद्दों के बारे में समझता और जरूरत पड़ने पर नम्रता या कड़े कदम से मामले को सुलझाने में सक्षम हो।
  4. जनसंपर्क अधिकारी को लोगों से बात करने का ऐसे माध्यम का प्रयोग करना चाहिए जिसमें दोनों गुटों की बराबर की हिस्सेदारी हो दोनों पक्ष अपनी बात स्वतंत्र और अच्छे से बोल सकें।(प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)
  5. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का ध्यान रखना भी जनसंपर्क अधिकारी का ही कार्य है। जनसंपर्क अधिकारी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की निगरानी करें यदि ऐसी संस्थाओं को घटना की तस्वीरें मिल जाए तब कोई मुद्दा बड़ा बन जाता है। इसलिए जनसंपर्क अधिकारी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस(कोई भी संबंधित घटना जो देश के हिट में न हो या उसका गलत प्रयोग होने की पूरी संभावना हो) घटना की कोई तस्वीरें या खबरें बिना जानकारी के बाहर ना जाए। (प्राकृतिक आपदा व सामाजिक तनाव)
  6. जनसंपर्क अधिकारी को मुद्दे से जुड़ी सही जानकारी मीडिया तक पहुंचाने चाहिए। ताकि घटना की सही जानकारी मिल सके और लोग दिग्भ्रमित ना हो। ऐसे करने पर जनसंपर्क अधिकारी लोगों को अफवाहों से दूर रख सकता है।

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