भंडारा हमारे समाज में चली आ रही एक पुरानी प्रथा है, यह समय समय पर अन्य नामों और रूपों में देखने को मिलती है तो ऐसे में भंडारा खाने से क्यों रोका जाता है |यह हमें पता है की लोग भंडारा करते हैं और उस भंडारे में लोग खाने भी आते हैं| लेकिन भंडारा खाने से पहले क्या आपको यह पता होता है कि भंडारा करने वाला वह व्यक्ति कौन है| यह हम जानते है ज्यादातर लोग पहले अपने स्वार्थ सिद्ध के दुनिया भर के पाप करते हैं और फिर भंडारा भी कर लेते हैं | एक बात किसी ने कहा है कि जैसा धन वैसा मन, आपको क्या पता है कि जो व्यक्ति भंडारा कर रहा है वह उसकी कमाई और ईमानदारी की है या फिर उसने ये सब पाप करके कमाया है, अगर उसने पाप की कमाई से भंडारा किया है तो कहीं न कहीं उसके पाप का अंश, आप में भी विद्यमान हो सकता है | इसके लिए एक कथन प्रचलित है वह साझा करता हूँ|
एक बार एक सेठ ने भंडारा किया जिसमें उसने एक साधु बाबा को भी न्योता दिया जो कि बहुत ज्ञानी महापुरुष थे, साधु बाबा उस नामी सेठ के न्योते पर भंडारा खाने आ गए, सेठ ने उनकी बहुत आवभगत की और स्वयं उनके लिए भोजन परोसा, साधु महात्मा जी उनसे बहुत संतुष्ट हुए, लेकिन जब वह भोजन के उपरांत विश्राम करने के लिए लेटे तो उनकी आँखों के सामने एक सोलह सत्रह वर्ष की लड़की का चित्र घूमने लगा, वह आराम नहीं कर पाए तो उन्होंने सेठ जी को बुलाया और पूछा कि उनके पास इतनी दौलत कैसे आई, सेठ भी उस पुण्यात्मा के सामने झूठ नहीं बोल सके और उसने क़बूल किया कि वह एक भले आदमी के यहां मुंशी था और उनके पैसे का हिसाब किताब रखता था, उनकी एक बेटी थी l उस भले आदमी की मौत के बाद उसने धोखे से उनकी सारी धन दौलत पर उनकी सोलह साल की बेटी के हस्ताक्षर करवा लिए थे l
पूरी कहानी सुनने के बाद महात्मा जी की आंखे खुल आई और तभी से उन्होंने भंडारे का खाना छोड़ दिया | यह कथा कहने का अभिप्राय यह है कि भंडारे के लिए खर्च किया हुआ पैसा आखिर कैसा है, किस प्रकार से वह धन अर्जित किया गया है|
कहते हैं, “जैसा अन्न वैसा मन”, यही कारण है कि भंडारे का खाना नहीं तब तक नहीं खाना चाहिए जब तक उसके प्रयोजन का मूल तत्त्व न पता चल जाए | अगर भंडारा अपने मेहनत पर, बिना किस छल-कपट या अन्य अपने सुखों को ध्यान में न रखकर लोगों का ध्यान रख कर किया गया है तो उसमें बुराई नहीं हो सकती|
अब इसको दुसरे सन्दर्भ से देखते हैं…
ऐसा कहा जाता है कि भंडारा करने से पाप कम हो जाते हैं और अगर यह बात विज्ञान के नजरिये से देखें तो गलत साबित होता दिखता है परन्तु लोक-कथाओ या अन्य धार्मिक किताबों में देखे तो वहां किसी को खिलाना पुण्य का काम माना गया है| वैसे आज भी किसी को खिलाना गलत नहीं है पर कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि भंडारा रखने वाले पापी का पाप खाने वाले पर भी आ जाता है| पर शायद वास्तव में ऐसा नहीं है… आज भी बहुत सारे पड़ोसी और रिश्तेदार तो प्रभु भक्ति का वातावरण और संबंधियों के साथ मधुर संबंध रखने के लिए भी भंडारे में जाते हैं व आयोजन करवाते हैं | इसमें किसी प्राणी को कष्ट कहाँ हुआ जो पाप होगा? मन निर्मल तो सब अच्छा। अपितु आज हमें वास्तविक परिवेश को देखना भी आवश्यक है। अगर कोई चोर पाप मिटाने हेतु भंडारा रखता है तो वहाँ खाकर, चोरी नामक गलत कर्म को प्रोत्साहन देना अनुचित होगा। परंतु देखें तो चोर भी कहाँ बता कर भंडारा आयोजित करने वाले हैं। हाँ, अगर चोर का साथ दे कर पाप धोने की तकनीक तलास रहे हों और भंडारा रख रहे हों तो पाप के हिस्सेदार जरूर बनेंगे। एक को प्रताड़ित कर दूसरे को खाना खिलाने से पाप कम नहीं होता है। यह ध्यान रखिये जिसकी मेहनत की कमाई चुरा ली, वह तो रो रहा होगा। भंडारा आयोजन करने से उसकी भूख नहीं मिट जाएगी। यही कारन है की भंडारा खाने के लिए रोका जाता है|
You must log in to post a comment.