दोस्तों हर देश मे हर जुर्म के लिए अपने-अपने कानून हैं और प्रत्येक देश उन कानूनों का पालन करते हुए उसी प्रकार का दंड या कहें सजा देता है। आज हम बताने जा रहे हैं कि आखिर क्यों जज तोड़ देता है उस पेन के निब को, जिससे उसने किसी को मृत्युदंड देने का फरमान सुनाया है?

भारत में फांसी की सजा सबसे बड़ी सजा है क्योंकि इसमें अपराधी को मौत के अलावा और कुछ नहीं मिलता। यह एक ऐसी भयावह स्थिति है जिसमें मुजरिम के गले मे फंदे डाल कर उसे तब तक लटकने के लिए जल्लाद द्वारा छोड़ दिया जाता है जब तक उसके प्राण पखेरू न उड़ जाए।
अब आपको कलम के निब के तोड़ने का कारण बताए तो इसका सीधा सा मतलब है कि, इस कलम से किसी और को मौत की सजा ना लिखी जा सके, लोग गुनाह करने से बच सके। और यह सजा कहा जाए तो बहुत ही रेयर या उसके अलावा कोई और उपचार न होने पर ही किया जाता है क्योंकि इस सजा की वजह से व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाते हैं।
हम आपको बता दें कि फांसी की सजा सुनाने पर कलम तोड़ने की प्रथा आज से नहीं बल्कि अंग्रेजों के जमाने से ही भारत में चलता आ रहा है। जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी तब भी सजा सुनाने के बाद जज द्वारा कलम को तोड़ा दिया जाता था।
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर सजा और कलम का क्या संबंध है । हम बता दें की सजा और कलम, इन दोनों में एक गहरा संबंध होता है जिस तरह कलम से लिखी हुई बात को मिटाया नहीं सकता उसी तरह कोर्ट के द्वारा दी हुई सजा को कोई भी ताकत नहीं रोक सकती हैं, हाँ राष्ट्रपति चाहें तो मुजरिम द्वारा दी गयी दया याचिका से उसे फांसी से बचा सकते हैं, पर अभी तक ऐसा हुआ नही है।
एक बार फिर, यदि हम भारत के इतिहास पर गौर करें, तो हम जानते हैं कि भारत पर अंग्रेजों द्वारा लंबे समय तक शासन रहा। जिन्होंने हमारे देश में अपने कानून और व्यवस्था को लागू किया, जिस तरह से उन्होंने काम किया और उनकी व्यवस्था का प्रबंधन किया, आज़ादी के इतने वर्षों के बाद भी, हम अपने वर्तमान संवैधानिक कार्यों में उनकी कुछ पुरानी संस्कृति का पालन कर रहें हैं, देख सकते हैं। जिनमें से जज द्वारा पेन तोड़ने की प्रक्रिया भी शामिल है। यह एक सिंबॉलिक कार्य को दर्शाती है, सैद्धांतिक तौर पर देखे तो मृत्युदण्ड किसी भी मुकदमें के समझौते का अंतिम एक्शन होता है।जैसा की हम सभी जानते है कि मृत्युदण्ड की सजा ज्यादा संगीन कार्य के लिए दी जाती हैं और यह तब दी जाती है जब कोई अन्य विकल्प शेष ना बचा हो। ऐसे में जब इस सजा की वजह से किसी भी व्यक्ति के जीने के अधिकार को छीन लिया जाता है तो जज पेन की निब तोड़ देता है । ऐसा इसलिए ताकि उसको दुबारा से इस्तेमाल न किया जा सके। सज़ा-ए-मौत एक दुख की बात है, लेकिन कभी-कभी ऐसी सजा देना जरूरी भी हो जाता है और इस सजा को सुनाने के बाद जज पेन की निब को तोड़कर एक प्रकार से अपने दुःख को व्यक्त करता है ताकि किसी भी प्रकार का दोष मन में न रहे। आपको पता ही होगा कि, आपराधिक प्रक्रिया संहिता – 1973 में इस तरह के नियम का कोई जिक्र नहीं है, जिससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते है कि पेन की निब तोड़ने की प्रक्रिया एक व्यक्तिगत न्यायाधीश के एकमात्र विश्वास की ही हो सकती है ना कि किसी कानून में दी गई प्रक्रिया ।
उपरोक्त लेख से यह पता चलता है कि जज मृत्युदण्ड देने के बाद पेन की निब क्यों तोड़ देता है और आपराधिक प्रक्रिया संहिता – 1973 में इस तरह की प्रक्रिया का कोई भी उल्लेख नहीं हैं। यह चलती आयी एक परंपरा है जिस कारण जज मृत्युदंड देने के बाद पेन की निब तोड़ देता है।