दैनिक समाचार पत्रों का संपादन
दैनिक समाचार, न्यूज डेस्क पर आते हैं, ये समाचार टेलीप्रिंटर , टेलीफोन, तार, टेलीफैक्स और साधारण डाक से प्राप्त होते हैं। मुख्य उप संपादक, टेलीप्रिंटर से प्राप्त समाचारों को छातने के पश्चात , उप संपादकों में समाचारों को बांट देता है। इसी तरह तार, टेलीफैक्स और डाक से प्राप्त समाचार भी उपसंपादक को दे दिया जाता है। उदाहरण के लिए खेल समाचार खेल उप संपादक को, विदेश समाचार, विदेश से संबंधित जानकारी रखने वाले उप संपादक को और राज्य के समाचार, राज्यों से संबंध या जानकारी रखने वाले उप संपादक को सौंप दिए जाते हैं। उप संपादक इन समाचारों में अनावश्यक लेखन एवं काट छांट कर इन्हें तैयार करता है। समाचार संपादक काम समाप्त करने से पहले विज्ञापन विभाग से यह जानकारी प्राप्त कर लेता है कि कुल विज्ञापन कितने हैं। यदि विज्ञापन अधिक हो तो वह प्रबंध विभाग से पृष्ठ संख्या बढ़ाने की सिफारिश कर सकता है/करता है। यदि पृष्ठ संख्या नहीं पहनी हो तो वह अपनी टीम को समाचारों का आकार, छोटा करने का निर्देश भी दे सकता है।
उप संपादक समाचार में काट छात करके यदि आवश्यक समझी तो उन्हें दोबारा अपने हाथ से लिख कर उसको शीर्षक देकर वरिष्ठ उप संपादक या मुक्त उप संपादक को सौंप सकता है। वे दोनों सभी समाचारों के शीर्षक देखकर उनके एक, दो या तीन कॉलम जो भी ठीक समझें, साइज देकर समाचार संपादक को सौंप देते हैं। समाचार संपादक एक नजर में सभी खबरों को देखकर उन्हें प्रेस में भेज देता है। कौन-सी खबर किस पेज पर जाएगी यह निशान वह अपने विवेक के अनुसार सभी समाचारों पर लगा देता है। कंपोजिंग में अनुचित ढंग का विलंब ना हो इसलिए सभी समाचारों पर भेजने का समय लिख दिया जाता है। कंपोजिंग के बाद समस्त सामग्री प्रूफ रीडिंग विभाग के पास आ जाता है। तब प्रूफ रीडिंग में उसकी रीडिंग कर मूल प्रति से मिलाया जाता है। फिर यह सामग्री गलतियों को सही और बदलाव को सुधारने के लिए कंपोजिंग विभाग में दोबारा जाती हैं। गलतियां ठीक हो जाने के बाद प्रूफ रीडर्स इन्हीं एक बार फिर से पढ़ते हैं और संतुष्ट होने के बाद ही इसे आगे भेजते हैं।
पत्रिका संपादन
पत्रिका संपादन का कार्य करते हुए संपादक का दृष्टिकोण दैनिक संपादकीय से भिन्न रहता है क्योंकि सामान्य रूप से वह दूसरे दिन बासी हो जाता है, पर साप्ताहिक या पाक्षिक पत्रिका में प्रकाशित संपादकीय बासी ना हो कर, पुनर पठन के योग्य होता है। पत्रिका चाहे साप्ताहिक हो या मासिक अथवा पाक्षिक हो, सभी के संपादकीय किसी मुख्य घटना का समाहार करते हैं। पत्रिकाओं के संपादकियो में संपादक की वैचारिक दृष्टि का स्पष्ट पता चल जाता है तथा यह भी ज्ञात होता है कि उसके संपादकीय में विषय विश्लेषण किस रूप में और किस भाषा में किया गया है। सामान्य पाठक उस संपादकीय में संपादक की लेखनी की सस्वता, प्रखरता और विवेक शीलता का परिचय तो पता ही है, साथ ही संपादक की वैचारिक दृष्टि और विश्लेषणो के निष्कर्षों की जानकारी भी प्राप्त करता है। कभी-कभी संपादकीय में संपादक तथ्यात्मक जानकारी जुटा ता है तो कभी स्थित विशेष में विषय का गहन व्याख्या अपने विशेष ज्ञान और विशेषज्ञों के निष्कर्षों पर कहता है। कभी बिखरे सूत्रों का संकलन करके महत्वहीन घटनाओं से भी सामूहिक महत्व और उपादेयता सिद्ध करने में पीछे नहीं रहता तथा भविष्य वक्ता के रूप में समाज को सतर्क और सजग बनाता है।
कभी-कभी सामाजिक हित साधन की दृष्टि से संपादक किसी विषय विशेष पर बार-बार लेखनी उठाता है और जनमानस को प्रेरित कर नेतृत्व प्रदान करने की चेष्टा भी करता है। भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिक समस्या, नवीन सुधारों और विस्तृत बातों को सामने लाकर वह समाज को सजग बनाता है। यही नहीं वह किसी घटना व विषय विशेष का मूल्यांकन करते हुए जो कुछ भी संपादकीय के माध्यम से वह नितांत निर्व्यक्ति और आक्षेप रहित होता है। संपादन करते समय संपादक ही सारे पृष्ठों की सामग्री स्वयं नहीं लिख सकता और ना इस प्रकार की कोई अपेक्षा ही की जा सकती है, क्योंकि संपादक को और भी कार्य संपन्न करने होते हैं। इसके साथ यह भी है कि भाषा और कथ्य की समरसता के कम होने के कारण पाठक में पत्रिका के प्रति लगाव और अभिरुचि का अभाव उत्पन्न हो सकता है।
सामग्री चयन में विषयानुरूप सामग्री की दृष्टि सर्वोपरि होती है यदि सृजनात्मक साहित्य संबंधी पत्रिका है तो उसमें कहानी, कविता , एकांकी , नाटकांश ,लघुकथा आदि के साथ सरस स्वाललित निबंध या संस्मरण का चयन किया जाना उचित प्रतीत होता है।
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