
आपदा प्रबंधन– हाल ही के दिनों में हमनें देखा कि जिस तरह उत्तराखंड के चमोली(2021) में तबाही का मंजर था और जिस तरह मीडिया ने खबर को कवर किया है एक बहुत बड़ी चुनौती थी। पर मीडिया में इस आपदा को लेकर मीडिया संस्थान कई positive तो कई negative रूप में नजर आए, लोगों ने भी इसपर चर्चा की। अभी मई 2021 में आए ताउते चक्रवात की चर्चा भी मीडिया में जोरों से रही है। पर इसके साथ यह देखना जरूरी है कि मीडिया का इन सब आपदाओं में क्या भूमिका रही है?
क्या मीडिया ने इन आपदाओं के पहले या बाद कोई आपदा प्रबंधन कार्यक्रम चलाया है या आपदा के बाद उसका फॉलो अप लिया है? पिछले 10 से 20 सालों के बीच की तुलना करें तो मीडिया ने आपदा के क्षेत्र में अपने दायित्व को समझा तो है पर अब भी ऐसे मीडिया संस्थान कम ही है जिनके चैनल पर दैनिक, साप्ताहिक या मासिक रूप से कोई स्लॉट दिया गया हो। ऐसी खबरे तभी आती हैं जब आपदा का अलार्म बजने की संभावना होती है पर फिर भी मीडिया में आपदा प्रबंधन का मुद्दा पहले की तुलना में तो विकसित हुआ है।
किसी आपदा का प्रभावित क्षेत्र एक बहुत बड़ा भाग या भू पृष्ठ हो सकता है ऐसे में इसका प्रभाव भी उसी तरह से घातक सिद्ध हो सकता है। जिसको देखते हुए आपदा प्रबंधन में मीडिया का महत्व बहुत बढ़ जाता है और सही (नियोजित) ढंग से किया गया आपदा प्रबंधन जानवरों ,मनुष्यो के जीवन के साथ-साथ उनके जान माल के नुकसान को काफी हद तक सीमित कर सकती है।
आपदा प्रबंधन क्या है?
आपदा एक ऐसी परिस्थिति है, जिसमें भयानक मात्रा में मनुष्य या जान-माल, जीव-जंतुओं के प्राणों का संकट उत्पन्न हो जाए तो उसे आपदा कहते हैं। ऐसे में आपदा प्रबंधन से तात्पर्य आपदा को आने से पहले उसे रोकने का प्रयास,उसके प्रभाव को कम करने,लोगों को जागरुक करने ,तथा आपदा के आने के पश्चात किए गए बचाव और सुरक्षा के तौर- तरीकों से है।
उदाहरण के तौर पर कोरोना महामारी को लिया जा सकता है, जिससे पूरी मानव जाति विश्व स्तर पर इससे जूझ रही है।देश में सभी इस महामारी से जूझ रहे हैं। व्यक्ति, समाज और सरकार के स्तर पर एक दैनिक संघर्ष चल रहा है ।
युद्ध स्तर पर इस महामारी से निपटने के उपाय किए जा रहे हैं। विभिन्न तरह के उपाय ,बचाव और सुरक्षा के लिए मीडिया भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । यानि व्यक्ति, समाज और सरकार के साथ मीडिया भी सक्रिय है । दूसरे महायुद्ध के बाद दुनिया के समक्ष यह महामारी सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। सोशल मीडिया इसे लेकर तरह-तरह की बातें कर रहा है। फेक वीडियो, टेक्स्ट और फोटो परोसी जा रही है लेकिन इसके साथ साथ सकारात्मक सूचनाएं भी लगातार आ रही हैं जो इस संकट के समय हमें निरंतर आश्वस्त करती हैं।
इसरो के साइट पर देखें तो प्रभावित जनक्षेत्र के रूप में भू-जलवायु परिस्थितियों के आधार पर भारत पारंपरिक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। भारत के 60 प्रतिशत भूभाग में विभिन्न प्रबलताओं के भूकंप का खतरा बना रहता है। 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बारंबार बाढ़ आती है। कुल 7516 किलोमीटर लंबी तट रेखा में से 5700 किलोमीटर में चक्रवात का खतरा बना रहता है।
खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति संवेदनशील है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिमी घाट के कई भागों में पतझड़ी व शुष्क पतझड़ी वनों में आग लगना आम बात है। हिमालई क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिमी घाट के इलाकों में अक्सर भूस्खलन का खतरा बना रहता है।
यह बात स्पष्ट है कि आपदाओं से बचा नहीं जा सकता खास कर जब विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ होने लगे तो ऐसे में हमें हर तरह से तैयार रहने की जरूरत है। जिसके लिए मीडिया को अपने दायित्व को सही ढंग से पालन करना आवश्यक है और उसे नवीन से नवीन तकनीकों के साथ देश को निस्वार्थ भाव से अद्यतित(अपडेट) करते रहने की जरूरत है, ताकि संकट के आने से पहले ही इसका उपचार किया जा सके।
पर आज मीडिया जिस दौर में है उसे अगर गला काट प्रतियोगिता का दौर कहा जाए तो गलत नहीं होगा और आज देखे तो मीडिया पूंजी के दबाव में दम तोड़ते जा रही है, जिसका मुख्य कारण कॉर्पोरेट जगत का मीडिया में आजाना है, पर अब बिल्ली के गले में घंटा कौन बाधे यह सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि आज अगर कम्पटीशन में खड़ा होना है तो आपको अपने चैनल पर trp चाहिए और trp के लिए ऐसे कार्यक्रम तो ज्यादा लाभान्वित शायद ही ज्यादा हो।
ऐसे में मीडिया में आपदा प्रबंधन हो, पर्यावरण हो या कोई और मुद्दा हो वे तभी मीडिया में आते हैं जब उनसे लाभ होने वाला होता है। यहाँ मीडिया से हमारा संबंध मेनस्ट्रीम मीडिया या कहें तो रास्ट्रीय मीडिया से है।
आपदा प्रबंधन के संदर्भ में वैज्ञानिक पक्ष
आपदा चाहे प्राकृतिक हो या मानवजनित हो एक आपदा आपदा है, जिसका पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता और अगर पता भी चल गया तो उसे केवल एक हद तक ही सीमित किया जा सकता है और सुरक्षित किया जा सकता है। ऐसे में अगर कहा जाए तो आपदा से बचाव के लिए केवल वैज्ञानिक पक्ष और तरीकों से ही बचाव किया जा सकता है। किसी भी आपदा के आने से पहले वैज्ञानिक पक्ष के अनुसार निम्नलिखित बातों का प्रबंधन और ध्यान अवश्य रखना चाहिए:-
- कम-से-कम 3 दिन का पक्का खाना संग्रहण(याद रहे 6 मास से अधिक खाद्य या जल का संग्रहण न हो)।
- फर्स्ट एड किट को हमेशा तैयार कर के रखना।
- जरूरी औजार जो कि आपदा के समय काम आ सकते हैं उनका बंदोबस्त। इसमें नकदी(रुपए) , प्लास्टिक के प्याले, प्लास्टिक के बिछावन, अग्निशामक, कागज आदि सम्मिलित हैं।
- स्वच्छता बनाए रखने के लिए छोटी तोलिया ,साबुन, तरल पदार्थ, डिटर्जेंट आदि को तैयार करके रखना।
- बच्चों और बूढ़ों का विशेष ध्यान रखते हुए उनके जरूरी चीजों का ध्यान रखें।
- आवश्यक दस्तावेज को सुरक्षित रखें।
- ऐसे स्थान या भूखंड जहाँ पर आपदाओं के आने का ज्यादा खतरा हो, उस जगह पर सुरक्षा का सुनियोजित इंतजाम पहले करके रखें और संबंधित विभाग से हमेशा जुड़े रहें या उस स्थान पर जाने से बचें।
- सरकार के आपदा प्रबंधन आदेशों का पालन करें।
आपदा प्रबंधन के संदर्भ में वैज्ञानिक पक्ष आने के बाद मीडिया का कर्तव्य है कि वह सत्यनिष्ठा और तत्परता के साथ लोगों को इस बात से जागरूक करे कि आने वाली आपदा कितनी खतरनाक है और किस क्षेत्र में इसका ज्यादा प्रभाव हो सकता है, ऐसे में उन्हें यह भी आस्वासन दें कि किस प्रकार से वे सुरक्षित स्थान पर जाए और कितने दिन के लिए यह खतरा उत्पन्न हो सकता है। पर ज्यादातर यही देखा गया है कि मीडिया आपदा से संबंधित प्रबंधन की खबरे तभी दिखाती हैं जब वह सामने आ जाता है।
उदाहरण के लिए उत्तराखंड में 2014 में आए आपदा को लेकर मीडिया ने तभी संज्ञान लिया जब वह बढ़ी त्रासदी बनकर सामने आया। शायद कुछ एक मीडिया ने ही इस आपदा को कवर किया पर देखा जाए तो इनकी संख्या कम ही है। जिसके आंकड़े अब कुछ सही हुए है पर आज भी इनकी खबरे और फॉलोअप बहुत ही नगण्य है।
मीडिया में आपदा के कारण से ज्यादा कारण को कैसे सुलझाया जाए , इसका नियोजन या पुनर्स्थापन कैसे हो आदि बातो का ध्यान रखा चाहिए। भारत के हर इलाके के लिए विकास का सामान मॉडल नहीं हो सकता है। पहाड़ी इलाकों की बनावट और जरूरत मैदानी इलाकों से अलग है। लेकिन देश के हर इलाके में विकास एक विचारधारा के तौर पर दाखिल हुआ है और इसमें मीडिया भागीदारी के तौर पर सामने आया है।
ऐसे में आपदा या आपदा प्रबंधन की रिपोर्टिंग करते हुए हर उस साक्ष्य या क्रियाओं को ध्यान में रखना जरूरी है जो आपदा से संबंधित हो सकती हैं। मीडिया के पास सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दे भी जुड़े होते हैं लिहाजा आपदा प्रबंधन पर बात करते हुए मीडिया के पास बड़ा दायरा होता है जिसमें वे चीजों को पेश कर सकते हैं। लेकिन यह मुद्दे मेंस्ट्रीम मीडिया से ज्यादा इंटरनेट ,वैकल्पिक पत्रिकाओं और NGO के परिचय में ज्यादा दिखते हैं।
बांध, नदी और पानी को लेकर बड़े फलक पर बहुत कम बात हो पाती है पर आपदा प्रबंधन या आपदा से जुड़ी ज्यादातर रिपोर्टिंग या तो किसी घटना के बाद तत्कालीन तेवर की होती है या फिर बीच-बीच में इसे डरावने तरीके से पेश किया जाता है। कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो मीडिया में ऐसे मुद्दों को लेकर गंभीर रिपोर्टिंग नहीं होती। जबकि यह सीधे-सीधे हमारी पूरी सामाजिकता से जुड़े हुए हैं।
भारत का आपदा प्रबंधन से संबंधित मुद्दों पर कब ध्यान गया
भारत में आपदा प्रबंधन को संबंधित गहन चिंतन की शुरुआत 1999 में उड़ीसा के तूफान और 2000 में गुजरात में भूकंप के आने और उसमें हजारों लोगों की जानमाल के नुकसान होने के पश्चात हुआ। जिसके चलते भारत सरकार ने 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम बनाया। इस अधिनियम के द्वारा विभिन्न मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव ,सुरक्षा और निपटारे के उपाय की रूपरेखा को पहली बार वैधानिक रूप से तय की गया।
पहली बार व्यवस्थित रूप से आपदा जैसे जोखिम से निपटने की व्यवस्थित तैयारी के लिए, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की गई। इस कानून के माध्यम से आपदा प्रबंधन को परिभाषित करते हुए इस अधिनियम में बताया गया कि आपदा प्रबंधन का तात्पर्य योजना, समन्वय और कार्यान्वयन की निरंतर और एकीकृत प्रक्रिया से है,जो निम्नलिखित के लिए आवश्यक है:-
■किसी आपदा के खतरे या उसकी आशंका का निवारण
■किसी आपदा या उसकी गंभीरता या उसके परिणामों के जोखिम के शमन की क्षमता निर्माण।
■किसी आपदा से निपटने की तैयारियां।
■किसी आपदा की आशंका की स्थिति या आपदा से तुरंत बचाव।
■किसी आपदा के प्रभाव की गंभीरता या परिणाम का निर्धारण।
■आपदा निष्क्रमण, बचाव और राहत आपदा के बाद पुनर्वास और पुनर्निर्माण।
इस अधिनियम के तहत राज्य एवं जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरण गठित किए जाने का प्रावधान किया गया है । धारा 138 के तहत जिला योजना के अंतर्गत, जिला स्तर पर, आपदा प्रबंधन योजना को बनाने का प्रावधान प्किया गया है जिसमें पंचायतों, नगर पालिका, जिला बोर्ड ,छावनी बोर्ड ,नगर योजना प्राधिकरण या जिला परिषद को शामिल किया गया है ।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में एक अध्यक्ष जिसमें प्रधानमंत्री (पदेन अध्यक्ष) होते हैं सहित नौ सदस्य और होते हैं । राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण किसी भी तरह के आपदा के समय पर , प्रभावी निवारण को सुनिश्चित करने के लिए नीतियां, योजनाएं और मार्ग निर्देशक सिद्धांत बनाने के लिए उत्तरदाई होता है।
राज्य स्तर पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अध्यक्षता राज्य का मुख्यमंत्री करता है। जिला स्तर पर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अध्यक्षता का जिम्मा जिले के जिला मजिस्ट्रेट या उपायुक्त के पास होता है ।
कानून के तहत एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के गठन का प्रावधान भी किया गया है।यह संस्थान आपदा प्रबंधन के दस्तावेजीकरण और आपदा प्रबंधन की नीति, निवारण तंत्र, शमन के उपायों की रूपरेखा तैयार करता है। इस कानून के तहत एक राष्ट्रीय आपदा संकट मोचन बल का गठन भी किया गया है जो आपदा के समय राहत और बचाव कार्य करता है ।
आपदा प्रबंधन कानून के तहत निम्नलिखित बाते सम्मलित हैं
आपदा के समय जो व्यक्ति एनडीआरएफ के कार्य में बाधा डालेगा या ऐसा प्रयास करने की कोशिश करते हुए पाया गया तो उसके दोष सिद्ध होने पर, उसे 2 वर्ष के कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है ।
यदि कोई जानबूझकर आपदा के समय राहत सहायता मरम्मत निर्माण के लिए, गलत दावा या क्लेम करता हुआ मिलेगा या मिथ्या जानकारी देगा तो दोष सिद्ध होने पर उसे 2 साल के कारावास की सजा या दंड या दोनों का प्रावधान किया गया है।
राहत सामग्री के दुरुपयोग या दुरुपयोग के लिए प्रेरित करने पर दोषी सिद्ध होने पर 2 वर्ष की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
गलत सूचना या अफवाह फैलाने से लेकर उसके परिमाण के संबंध में आतंकित करने वाली मिथ्या, संकट सूचना या चेतावनी देता हुआ पाया गया तो उसके दोषित सिद्ध होने पर 1 वर्ष का कारावासकी या जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
आपदा के समय पीड़ित व्यक्तियों को लिंग,जाति, समुदाय या धर्म के आधार पर कोई भेद नहीं किया जाएगा। सब को एक समान सुरक्षा और सहायता प्रदान करने का प्रावधन।
आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका
- आपदा के दौरान पीड़ित लोगों तक सुविधा पहुँचाना।
- प्रभावित क्षेत्र की जानकारी पहुँचाना।
- प्रभावित क्षेत्र की मदद करने के लिए प्रोत्साहन करना।
- प्रभावित क्षेत्र के परिवहन( सड़क) तंत्र की जानकारी।
- प्रभावित जन के परिवार के लोगों से बात करना।
- प्रभावित क्षेत्रों और लोगों की समस्याएं जानना और बताना।
- घटना घटने के कारण का पता लगाना।
- सरकार का आपदा पीड़ित लोगों तक ध्यान खींचने की ओर अग्रणी होना।
- आपदा और महामारी के समय किसी भी जरूरी सामग्री का काला बाज़ारी न हो सुनिश्चित करना।
- घटना का फॉलो बैक करना।
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