
अंतड़ियों में जकड़ है,
पर मन में खटास है,,
एक पल की जिंदगी में,
न घर है और न घनश्याम है,,
जीने की चाहत है,
पर किराए की किल्लत है,,
इस जीवन के जीवनी में अब,
बस रुखसद होने की रवायत है,,
बुझे मन से चला है वो,
अब कर्म का झोला लिए,,
कि, लालची बना रहा,
इस संसार में किसके लिए,,
एक पल की जिंदगी में,
न घर है और न घनश्याम है,,
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