
छा चुका है घोर अंधेरा,
मानवता के दरवाजे पर,,
रो रही है पृथ्वी बेचारी,
अपने कर्म के विधानों पर,,
खो दिया है उसने प्रेम सागर,
आज, वर्तमान के लालचियों पर,,
बेरंग कर दिया है मानव ने जिसको,
एक नए लव के चाहत पर,,
Photo credit:- google photo’s
आइये कुछ नया करते हैं
छा चुका है घोर अंधेरा,
मानवता के दरवाजे पर,,
रो रही है पृथ्वी बेचारी,
अपने कर्म के विधानों पर,,
खो दिया है उसने प्रेम सागर,
आज, वर्तमान के लालचियों पर,,
बेरंग कर दिया है मानव ने जिसको,
एक नए लव के चाहत पर,,
Photo credit:- google photo’s