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पंचवर्षीय योजना हर 5 साल के लिए केन्द्र सरकार द्वारा देश के लोगों के लिए आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए 1950 में पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू की गई योजना थी। यह केंद्रीकृत और एकीकृत राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम था। इस योजना के अंतर्गत अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएं जारी की जा चुकी थी और 13वीं पंचवर्षीय योजना को खारिज करके नीति आयोग का निर्माण किया गया है।

पिछले 12 पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत देश में कृषि विकास, रोजगार के अवसर प्रदान करना, मानवीय व भौतिक संसाधनों का उपयोग कर उत्पादकता को बढ़ावा देना, आदि सुविधाएं उपलब्ध कराने का काम किया गया। पंचवर्षीय योजना को चलाने का धेय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी को जाता है।

‘ मैं तब तक आराम से नहीं बैठ सकता जब तक कि इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम सुविधाएं हासिल नहीं हो जाती। एक राष्ट्र को जांचने के लिए पांच छः साल का वक्त काफी कम होता है। आप 10 साल और इंतजार कीजिए उसके बाद आप पाएंगे कि हमारी योजनाएं इस देश का नजारा ऐसे बदल देंगी कि दुनिया भौचक्की रह जाएगी।’ यह बात प्रधानमंत्री नेहरू ने पहली पंचवर्षीय योजना (1951 से 1956) के शुरू होने के 2 साल बाद 1953 में कही थी, यह बात इसलिए भी कही गई थी क्योंकि ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल सहित कई आलोचकों ने एक लोकतांत्रिक रूप में भारत की सत्ता का बचा रह पाने पर, संदेह प्रकट कर दिए थे।

आजादी के आंदोलन में तपे नेता इन चुनौतियों से अनजान नहीं थे । 1946 में ही पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने केसी नियोगी की अध्यक्षता में एक सलाहकार नियोजन बोर्ड बना दिया था। इसने अपनी रिपोर्ट में योजना आयोग बनाने का सुझाव दिया था जिसको सरकार ने 15 मार्च 1950 को अपनी सहमति दे दी और यह संस्था वजूद में आ गई।

प्रधानमंत्री नेहरू के पंचवर्षीय योजना को लाने का प्रमुख कारण सोवियत संघ की 4 वर्षीय योजना और उसकी सफलता थी जिसने नेहरू जी को प्रभावित किया। इसलिए उन्होंने इसी तर्ज पर 1 अप्रैल 1951 से देश में इस योजना की शुरूआत कर दी। इस योजना के अध्यक्ष प्रधानमंत्री थे अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री पदेन सदस्य थे। तब से चल रही इस योजना का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12वीं योजना के बाद रोक दिया है। यह सिलसिला 12 योजनाओं सहित 7 वार्षिक योजनाओं से मिलकर बना था।

पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई थी जबकि, दूसरी (1956 से 1961) में औद्योगिक क्षेत्रों को। इन 5 वर्षों में दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), भिलाई (छत्तीसगढ़) और राउरकेला (उड़ीसा) में स्पात संयंत्र की स्थापना की गई।

तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961 से 1966) में पहले से तय की गई विकास की गति को, और आगे बढ़ाने का लक्ष्य था। लेकिन इस दौरान देश को नई मुश्किलों का सामना करना पड़ा 1962 में चीन का हमला, इसके 2 साल बाद नेहरू का निधन, और फिर 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी, जिसके कारण या योजना पूरी तरह से विफल रही।

1966 में चौथी पंचवर्षीय योजना की शुरुआत ना करके 1959 तक तीन वार्षिक योजनाएं चलाई गई। इन वार्षिक योजनाओं के दौरान ही हरित क्रांति की शुरुआत हुई, जिसकी वजह से देश न केवल खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ बल्कि दूसरे देश को अनाज निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

चौथी पंचवर्षीय योजना (1969 से 1974) में तेजी से विकास दर हासिल करने का लक्ष्य तय किया गया था। पहले 2 वर्षों तक स्थिति अच्छी थी, परंतु उसके बाद बिजली संकट, मंहगाई के साथ बांग्लादेश शरणार्थी की समस्या और 1971 में पाकिस्तान के साथ एक और युद्ध ने इस योजना की गति को पीछे धकेल दिया। इसके बाद पंचवर्षीय योजना को 1974 में शुरू किया गया , पर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी सरकार ने इसे 1978 में खत्म कर दिया और इसकी जगह 6 साल की अनवरत योजना (रोलिंग प्लान) की शुरुआत की गई। लेकिन 1980 में श्रीमती गांधी के सत्ता में वापसी करने पर तत्काल रुप से इसे रद्द कर , फिर से पंचवर्षीय योजना की शुरुआत की गई।

छठी पंचवर्षीय योजना (1980 से 1985) में गरीबी और क्षेत्रीय विषमता को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया था। जिसके सकारात्मक प्रभाव मिले । इसके बाद सातवीं पंचवर्षीय योजना 1985 से 1990 आई । इसके तहत खाद्यान्न उत्पादन और रोजगार के अवसरों में तेजी लाने की बात कही गई थी, विकास दर की दृष्टि से यह योजना भी सफल रही थी।

1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनने से पंचवर्षीय योजना पर एक बार फिर से रोक लगा दिया गया। जिसके स्थान पर 1990 से 1992 के बीच 2 आर्थिक योजनाएं चलाई गई। यह वह वक्त था जब भारत विदेशी मुद्रा संकट की वजह से आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। लेकिन राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आई और आर्थिक सुधारों के साथ आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992 से 1997) की शुरुआत की गई , जिसके सकारात्मक विकास दर प्राप्त हुए।

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997 से 2002) लाई गई जिसमें सामाजिक न्याय के साथ विकास का मुद्दा तय किया गया । इस पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत विकास दर का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाया । जिसके बाद दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002 से 2007) में 8 फीसद के साथ तय लक्ष्य की जगह 7.2 फीसद और 11वीं योजना 2007 से 2012 में 7.7 फीसद विकास दर हासिल की जा सकी।

2012 में 12वीं पंचवर्षीय योजना की शुरुआत की गई जिसमें दीर्घकालीन समावेशी विकास और आठ फ़ीसदी जीडीडी वृद्धि का लक्ष्य रखा गया । इस योजना की अवधि 31 मार्च 2017 को खत्म हो गई इस योजना के भी सकारात्मक विकास दर प्राप्त हुए।

वैसे तो 2017 में 13वीं पंचवर्षीय योजना की शुरुआत को जानी चाहिए थी जिसके अंतर्गत पुस्तकें क्लासरूम आदि दुरुस्त किया जाना था। रिमेडियल क्लासेस के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़े वर्ग के कमजोर विद्यार्थियों को अलग से पढ़ाए जाने की योजना आदि शामिल थी। पर 2014 में आई नए मोदी सरकार ने पंचवर्षीय योजना को हाशिए पर धकेलना शुरू कर दिया था। और जनवरी 2015 में मोदी सरकार ने इस योजना आयोग को खत्म कर एक नीति आयोग का गठन कर, नए रूप में योजना बनाने का काम शुरू किया।

नीति आयोग(नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफारमिंग इंडिया) पं. जवाहरलाल नेहरू के युग में शुरू की गई योजना आयोग का 30 साल के बाद पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आप्रतिस्थापन है। नेहरू काल में शुरू किए गए योजना आयोग ने भारत के पंचवर्षीय विकास की योजना को कई सालों तक लागू किया। भारत में भाजपा सरकार ने वर्षों पुरानी योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग रख दिया है। 

साथ में इस आयोग की कार्यप्रणाली में भी एक बड़े स्तर पर बदलाव किया गया है। इस नई संस्था को थिंक-टैंक के रूप में वर्णित किया गया है। इस आयोग का प्राथमिक कार्य सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर सरकार को सलाह देने का है ताकि सरकार ऐसी योजना का निर्माण करे जो लोगों के हित में हो। 

नीति आयोग किस प्रकार योजना आयोग से भिन्न है :  नीति आयोग ने लोगों के विकास के लिए नीति बनाने के लिए विकेन्द्रीयकरण (सहकारी संघवाद) को शामिल किया है। इसके आधार पर केंद्र के साथ राज्य भी योजनाओं को बनाने में अपनी राय रख सकेंगे।  इसके अंतर्गत योजना निचले स्तर पर स्थित इकाइंयों गांव, जिले, राज्य, केंद्र के साथ आपसी बातचीत के बाद तैयार की जाएगी। इसका उद्देश्य जमीनी हकीकत के आधार पर योजना बनाना होगा।

उपर्युक्त बातों से स्पष्ट हो जाता है कि जितनी भी पंचवर्षीय योजनाएं थी उनमें से कुछ योजनाओं को छोड़कर देखा जाए तो पंचवर्षीय योजनाओं का लाभ तो हुआ है। पर उस मात्रा में नहीं जिस मात्रा में इस योजना का प्रारंभ किया गया था। अगर जानकार की बात माने तो किसी भी योजना या नीति के लिए पंचवर्षीय योजना की जगह ले पाना कतई आसान नहीं होगा। हां ,लेकिन प्रायोगिक तौर पर इसे नकारा भी नहीं जा सकता और उनका यह भी मानना है कि भारत की विकास की इमारत आज जो इतनी बड़ी दिख रही है, वह दरअसल इन योजनाओं की बुनियाद पर खड़ी है जिसने भारत जैसे विकासशील देशों को एक मार्ग प्रदान किया है। नीति आयोग के बारे में आगे के वर्षों में पता चलेगा कि यह कितना सफल हो पाया है।

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