“रूपा मैं तुम्हारे मरते दम तक तुमसे प्यार करता रहुंगा,और तुम्हारे साथ ही अपने जीवन का अंत करूँगा”। ये शब्द आठ साल के उस लडके द्वारा कहना,जिसको अभी प्यार की परिभाषा भी नही पता हो और उसने दुनिया और समाज में अपने कदम भी नहीं रखा हो को ऐसा कहना अजीब लगता है।पर उस लड़के के लिए शायद एक बहुत छोटी बात थी। जिसे सुनकर रूपा ने बहुत तेज़ सरोज की तरफ देख कर हँसा था।
यह कहानी तब शुरू होती है जब सरोज के पिता अपने दोस्त को घर के नीचे का फ्लोर रहने के लिए दे देते हैं और समय के साथ दोनों ही दोस्तों के घर में किलकारी गूँजती है। जहाँ एक तरफ सरोज तो वहीं दूसरी तरफ रूपा से घर का माहौल बन गया था। दोनों बचपन से ही एक साथ खेलते, घूमते और कहीं जाते थे।
इसी पल से वे दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए थे और एक दूसरे के कामों में हाथ बताने लगे थे।धीरे-धीरे दोनों समय के साथ बड़े होते गए, दोनों ने ही एक साथ अपनी पढ़ाई शुरू की, दोनों के एक जैसे ही नंबर आये, और एक साथ ही दोनों ने ग्रेजुएशन कर आगे की तैयारी शुरू की। इस समय में कई बार वो दोनों एक साथ घर से बाहर रहे,कई जगहों पर साथ में घूमा पर किसी ने कभी उन पर संदेह नहीं किया। संदेह करने का कारण इसलिए भी क्योंकि समाज में अभी भी लड़का-लड़की को अकेले साथ घूमने पर कहीं-कहीं संदेह भरी निगाहों से देखा देखा जाना है।
पर उनका साथ रहना इसलिये भी समाज के संदेह की नजर से बचाये रखा और उनके प्यार को छुपाये रखा क्योंकि दोनों एक साथ बचपन से पढ़े-लिखे और घूमें थे और उनका परिवार भी एक साथ ही एक ही घर में रहता था। पर सरोज और रूपा जैसे-जैसे बढ़ रहे थे उनका प्यार और गहरा होता जा रहा था।
अब वे प्यार की संज्ञा भी जानने लगे थे और समाज के रंग-ढंगों को भी। पर प्यार उनमें अब इतना बढ़ गया था कि एक घर में रहते हुए भी दोनों एक दूसरे को आमने सामने ही देखना चाहते थे और एक के कहीं चले जाने पर दूसरे का रहना मुश्किल हो जाता था।कुछ समय बाद दोनों को एक ही कंपनी में नौकरी मिल गयी जिसके बाद तो दोनों ने यह मान लिया कि बिना शादी के समाज उनके रिश्ते को नहीं अपनाएगा लेकिन इस बात को अपने परिवार से कहने में शर्म आरही थी और ज्यादा दिन इसे छुपाये रखना अब प्यार से धोका करना था पर अभी भी दोनों ने संयम बनाये रखा था।
नौकरी करते-करते उस ऑफिस में सरोज और रूपा को लगभग एक साल हो रहे थे और उनके परिवार वाले शादी करने के लिए जोर डाल रहे थे पर वे दोनों सारे आये रिस्तों को ठुकराते जा रहे थे। अब इतने लंबे समय से नौकरी करते हुए ऑफिस के लोगों को इनके प्यार की दास्तान समझ आने लगी थी पर अभी भी कोई इनसे कुछ नहीं कहता था यह सोचकर कि ये दोनों हमेशा साथ मे रहे हैं और इनमें भाई-बहन का प्यार है। पर धीरे धीरे ये शंका भी उनकी दूर हो गयी जब इन्होंने ऑफिस में जोर-जोर से अपने रिश्ते को आगे बढ़ाने की बात कही।
उस दिन ऑफिस के लोगों ने यह बात कहकर दोनों को ताना मारा कि उनके परिवार वाले कैसे मानेंगे, तुम तो अपने दोस्त जैसे परिवार को तोड़ने पर लगे हो, तुम्हारे पापा ने क्या इसलिए दोनों परिवार को साथ रखा था… अभी वहाँ पर ऐसी बाते हो ही रही थी कि दोनों घर के लिए रोते हुए निकल गए।
घर पहुँच कर जो उन्होंने देखा उसने इन दोनों की आँखों में दोबारा आँसू भर दिये।आज सरोज को देखने के लिए लड़की वाले आये थे जिन्हें रूपा के पिता ने बुलाया था।सरोज और रूपा के घर में जाते ही सरोज के पिता ने फ्रेश होकर जल्दी से आने को कहा और रूपा की माँ ने रूपा को फ्रेश होकर अपने साथ काम बताने को कहा।
आधे घंटे बाद सरोज बेमन के सोफे पर आकर बैठ गया और उधर रूपा किचेन में काम करने चली गयी। दोनों का ही मन आज कोई भी देख कर कह सकता था कि दोनों को किसी बात की समस्या है पर अभी इनके परिवार वालों को इस पर कोई चर्चा न कर शादी पर चर्चा करनी थी।
रिश्ता देखने वाले तो सरोज को देख कर चले गए पर इसके साथ सरोज को दुख का पहाड़ भी सौंप गए।अभी उन मेहमानों के गये एक घंटे भी नहीं हुए थे कि रूपा और सरोज पार्क में घूमने के लिए निकल गए। पर आज उनके घूमने में भी एक दर्द भरा था जिसे लेकर दोनों को ही ठेस पहूँची थी।
वह दर्द था एक दूसरे से बिछड़ने का, वह दर्द था दूर हो जाने का, वह दर्द था बचपन के सपनों को टूट जाने का…कि अगर उनकी शादी किसी और से हो गयी तो वो कैसे जियेंगे। यही सब सोचते हुए और घर पर उन दोनों की शादी की बात करने के लिए परिवार से बात करने की बात मान कर दोनों घर की तरफ चल दिये। पर घर पर पहुँचते हुए ही एक अजीब बदलाव की शंका हुई।
आज उनके परिवार वाले दोनों को अजीब ढंग से घूर रहे थे। उन दोनों को इस बात की शंका होने लगी थी कि कुछ तो गलत हुआ है पर जब परिवार वालों ने उनसे बात करना शुरू किया तो वे समझ गए कि आज ऑफिस के किसी कर्मचारी ने उनके ऑफिस में हुए बातचीत को बता दिया है।
कुछ ही समय में यह शंका सही साबित हुई, उनके ही ऑफिस के बॉस ने इसकी सूचना अन्य कर्मचारियों के कहने पर दी थी। अब उन दोनों के ऊपर धीरे-धीरे परिवार वालों ने प्रश्नों के बौछार करना शुरू कर दिए थे जिसे ज्यादा देर तक दोनों को झेल पाना मुश्किल था। जिसके चलते दोनों ने अपने आप को अपने कमरे में जाकर बंद कर लिया।
उस शाम उन्होंने समाज के उस विकराल रूप को समझा जिससे वे अभी अपने प्यार को बचाये हुए थे। दोनों को कमरे में बंद हुए आठ घंटे से भी ज्यादा हो गए थे पर अभी तक कोई भी अपने कमरे से बाहर नहीं आया था। घर वाले अभी भी हॉल में बैठ कर इस कारण को मिटाना चाह रहे थे जिसके सोच में कब सुबह हो गयी किसी को पता नहीं चला। उन्होंने एक बात तो मान ली की उन्हें अपने बच्चों से इस तरह से व्यवहार नहीं करना था और उन्हें उनके स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता थी पर वे अभी किसी भी विषय को लेकर और विवाद में नहीं जाना चाहते थे। जिसके कारण किसी की हानि हो।
अगले दिन शाम को रूपा के परिवार वाले रूपा को लेकर गांव चले गए। सरोज के पिता ने उनसे बहुत विनती की पर वे नहीं माने। ऐसा नही है कि वे क्रोधित नहीं थे पर उन्हें अपने दोस्ती पर भी भरोसा था।पर रूपा और सरोज के प्यार के बंधन को समाज नहीं तोड़ सका। एक साल बाद दोनों के परिवार एक साथ मिले क्योंकि इस एक साल में जो इन दोनों की स्थिति में परिवर्तन हुआ था उससे दोनों परिवार वाले डर गए थे। और आगे वे किसी भी हालत में अपने बच्चों को खोना नहीं चाहते थे।
इसी बात को लेकर दोनों परिवार ने ये मान लिया कि प्यार के बंधन से इन दोनों को अलग करना उनके बच्चों के साथ गलत करना है।इसलिए उनको शादी के बंधन में बांध देना ही अच्छा है।ताकि समाज भी उन्हें स्वीकार कर ले और प्यार से एक नए कल का जन्म देकर वे अपने जीवन को सफल भी बना सकें………..
इसी के साथ सरोज और रूपा की शादी सारे विधाओं से धूमधाम से हुई और इस शादी ने समाज को एक नए गंतव्य की तरफ मोड़कर एक नए कल के प्रकाश की ओर सरोज और रूपा को लेकर चल दिया। जहाँ एक नए युग को लिखने के लिए उनकी प्रतीक्षा हो रही थी।।
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